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सद्भावना ही श्रेष्ठ है जीवन का लक्ष्य

  जो व्यवहार हम चाहते हैं कि लोग हमसे करें, वैसा व्यवहार हमें स्वयं भी औरों से करना चाहिए। कोई नहीं चाहता कि उससे छल हो तो वह स्वयं किसी को...

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20230227

 जो व्यवहार हम चाहते हैं कि लोग हमसे करें, वैसा व्यवहार हमें स्वयं भी औरों से करना चाहिए। कोई नहीं चाहता कि उससे छल हो तो वह स्वयं किसी को क्यों छले? प्रायः लोग अपने से तो भला व्यवहार चाहते हैं पर दूसरों से सरल सीधा व्यवहार नहीं करना चाहते।


यही कारण आपस के सन्देह का होता है। क्या एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र की राष्ट्रीयता को भंग करके वहाँ के लोगों को पददलित करके अपना स्वार्थ पूरा करे? पर इतिहास साक्षी है कि सबल राष्ट्रों ने ऐसा किया है। लूट-खसोट ही नहीं मानवता के नाते भी भुला दिये गये और विजित देश के लोग दास बनाये गये उनके उद्योग धंधे नष्ट किये गये और उन्हें बुरी तरह दबाया गया और यह सब विजित लोगों के ही हितों के नाम पर किया गया। यह क्यों हो सका? कारण स्पष्ट है विजित देशों में जब सहानुभूति नहीं रहती, सम्वेदना नहीं रहती, तो आपस का सहयोग भी नहीं रहा करता। 

यह अनुभूति जैसी देशों की जनता के विषय में सत्य हुई वैसी ही व्यक्तियों में भी देखी गई। जिन लोगों में आपस की सद्भावना नहीं रहती उनमें सहानुभूति भी नहीं रहती और वे मिलकर एक उद्देश्य से कार्य भी नहीं कर सकते। इन्हीं दुर्बलताओं को आक्रमणकारी राष्ट्र भांप लेता है और अपनी स्वार्थ पूर्ति करता है। विजित लोगों के हृदय आपस में तो मिले हुए होते ही नहीं उनमें और चौड़ी खाई बना दी जाती है, और विजेता लोगों को हर प्रकार से वृद्धि तथा विजित लोगों का ह्रास आरम्भ हो जाता है। दुःख की अनुभूति भी पुनरुत्थान के लिये मनुष्य को उत्तेजित करने में सहायक होती है और विजित लोग जिन्हें अपनी दासता असह्य हो जाती है वे विजेताओं से उकता कर आपस में मिलकर आपस में एक उद्देश्य के लिए संगठित होकर तत्परता और पूरी लगन से कार्य करना सीख लेते हैं। 

सहानुभूति का उदय होता है, स्वार्थ नहीं उभरने पाता और आपस के सहयोग तथा विजेताओं से पूर्ण असहयोग करके वे शक्ति संपन्न हो जाते हैं। सहयोग में अनुपम शक्ति है। जो कार्य व्यक्ति से नहीं हो पाता वही कार्य मिलकर करने में सुगम हो जाता है और सहर्ष सम्पन्न होता है। सहयोग से इस प्रकार पुनः चक्र बदलने लगता है और वही जनता जो पहले पददलित और तिरस्कृत थी वश प्राप्त करती है और विश्व में उसकी कीर्ति फैलती है सहयोग महान अद्भुत शक्ति है। भारतीय जनता इसी प्रकार अपना खोया हुआ गौरव पा सकी है और अब हमारा जनतंत्र विश्व भर में आदर पा रहा है। सहयोग से सफलता और कीर्ति निहित है।

सद्भावना से एक दूसरे को ठीक-ठीक जानना और आपस में प्रेम उत्पन्न करना, सहानुभूति से आपस में एक दूसरे के हृदय में प्रवेश करना और हृदयों का समन्वय करना तथा सहयोग से सामर्थ्य प्राप्त करना यह क्रम है महत्वाकांक्षी की पूर्ति का। सहयोग ही यज्ञ है, यज्ञ कभी विफल नहीं हुआ। सभी शक्तियों में सहयोग होने से एक अत्यंत महान शक्ति का उदय होता है जिससे सभी में नया उत्साह साहस और वस्तुतः कार्यक्षमता युक्त नवजीवन उदय होता है।

 मुख्यमंत्री योगी ने दिया जवाब, सभी थानों में महिला हेल्प डेस्क और महिला बीट गठित की

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मातृ शक्ति के सशक्तिकरण को लेकर यूपी विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान विपक्ष को जवाब दिया। उन्होंने कहा कि सदन में मातृ शक्ति की बात हो रही थी। नेता विरोधी दल कह रहे थे कि कहां पर महिला हेल्प डेस्क बना है। प्रदेश के सभी 1537 थानों में और जीआरपी के थानों को मिलाएंगे 1584 थानों में महिला हेल्प डेस्क की स्थापना हो चुकी है।प्रत्येक जनपद में एक अतिरिक्त महिला थाने के साथ-साथ अतिरिक्त महिला परामर्श चौकी की स्थापना हो चुकी है। प्रदेश के सभी 1537 थानों में 10417 महिला बीट गठित की गई हैं और प्रदेश के सभी ग्राम पंचायतों में जहां पर ग्राम सचिवालय का निर्माण हो चुका है वहां एक मिशन शक्ति कक्ष का भी निर्माण किया जा चुका है।

✒ अलीगढ़ के गभाना में अवैध रोडवेज बस पलटी, शीशे तोड़कर निकाले यात्री, 27 यात्री घायल
अलीगढ़ के गभाना में राजमार्ग चूहरपुर के पास शनिवार की दोपहर अवैध रोडवेज बस अनियंत्रित होकर सड़क किनारे गढ्डे में पलट गई। हादसे में करीब 27 यात्री घायल हो गई हैं। जबकि सड़क किनारे खडी बाइक बस के नीचे दबकर क्षतिग्रस्त हो गई। हादसे के बाद चालक- परिचालक मौका देखकर भाग गए। मिली जानकारी के अनुसार सुबह फर्रुखाबाद के कायमगंज से अवैध रोडवेज बस यूपी 17 टी 4993 करीब 45 सवारियां लेकर दिल्ली जा रही थी। जैसे ही बस राजमार्ग चूहरपुर के पास पहुंची कि किसी वाहन को ओवर टैक करने के प्रयास में बस अनियंत्रित होकर सड़क किनारे गड्ढे में पलट गई। सड़क किनारे खड़ी बाइक भी दबकर क्षतिग्रस्त हो गई।

व‍िधानसभा में दहाड़े मुख्यमंत्री योगी आद‍ित्‍यनाथ, रामचर‍ितमानस पर द‍िया बड़ा बयान, अख‍िलेश पर भड़के
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को विधान सभा में राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा से पहले प्रयागराज में हुए हत्याकांड पर दुख जताया और आश्वासन दिया कि प्रदेश में किसी भी माफिया को पनपने नहीं दिया जाएगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि उनकी सरकार माफिया को मिट्टी में मिला देगी,सीएम योगी ने कहा कि प्रयागराज की घटना दुखद है, सरकार ने उसका संज्ञान लिया है। जीरो टॉलरेंस की नीति के परिणाम बहुत जल्द सामने आएंगे, इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए। उन्होंने विपक्षी दल सपा पर निशाना साधते हुए कहा कि आखिर ये अपराधी पाले किसके द्वारा गये हैं ? जिस माफिया के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है, क्या ये सच नहीं है कि सपा ने उसे सांसद बनाया था? आप सारे अपराधियों को पालेंगे, उनका माल्यार्पण करेंगे, उसके बाद तमाशा बनाते हैं आप लोग। उन्हें गले का हार बनाएंगे फिर दोषारोपण करेंगे,सदन में अख‍िलेश यादव ने यूपी की कानून व्‍यवस्‍था पर सवाल उठाते हुए कहा क‍ि आपको शर्म आनी चाह‍िए। जवाब में मुख्‍यमंत्री योगी आ‍द‍ित्‍यनाथ ने कहा क‍ि शर्म तो आपको करनी चाह‍िए। आप अपने बाप का भी सम्‍मान नहीं कर सके। इस पर सदन में समाजवादी पार्टी के सदस्‍यों ने हंगामा शुरु कर द‍िया।
सोनिया गांधी बोलीं- 'भारत जोड़ो यात्रा मेरी राजनीतिक पारी का अंतिम पड़ाव हो सकती है'
छत्तीसगढ़ के रायपुर में कांग्रेस के अधिवेशन में  कांग्रेस सांसद सोनिया गांधी ने शनिवार को राजनीति से संन्यास लेने की ओर इशारा किया है। उन्होंने कहा है कि "मनमोहन सिंह के सक्षम नेतृत्व के साथ 2004 और 2009 में हमारी जीत ने मुझे व्यक्तिगत संतुष्टि दी लेकिन मुझे सबसे ज्यादा खुशी इस बात की है कि मेरी पारी भारत जोड़ो यात्रा के साथ समाप्त हो सकती है, जो कांग्रेस के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था।बीजेपी-आरएसएस ने देश की हर एक संस्था पर कब्जा कर लिया है और उसे बर्बाद कर दिया है। कुछ व्यापारियों का पक्ष लेकर आर्थिक तबाही मचाई है,छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में पार्टी के तीन दिवसीय सम्मेलन के दूसरे दिन लगभग 15 हजार प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए, सोनिया ने कहा कि भारत के लोग सद्भाव, सहिष्णुता और समानता चाहते हैं।

हज कमेटी ऑफ इंडिया ने आजमीन को सुनाया नया फरमान- नहीं मिलेगी रियाल, स्वयं लेकर जाएं विदेशी मुद्रा
हज कमेटी ऑफ इंडिया ने रियाल को लेकर इस बार नियम बदल दिया है। अब आजमीन को विदेशी मुद्रा (सऊदी रियाल) स्वयं लेकर जाने होंगे। हज कमेटी की ओर से कोई पैसा नहीं दिया जाएगा। पहले हज कमेटी की ओर से खर्च के लिए 1500 (सऊदी रियाल) दिए जाते थे। इस बार हज जाने वालों को यह सुविधा नहीं मिलेगी।सऊदी अरब में हज के दौरान आजमीन अपने पास से भी रुपये खर्च करते थे। इसके लिए हज कमेटी आफ इंडिया आजमीन को 1500 (सऊदी रियाल) देती थी। इस बार से यह व्यवस्था आजमीन को नहीं मिलेगी।

✒ हज कमेटी ऑफ इंडिया नहीं देगा यात्रियों को सिम कार्ड, आरटीपीसीआर जांच भी होगी जरूरी
इस बार हज कमेटी ऑफ इंडिया यात्रियों को सिम कार्ड नहीं देगा। हज यात्रियों को अपने साथ सिम कार्ड ले जाना होगा। सऊदी अरब में भी वह सिम कार्ड आसानी से खरीद सकते हैं। हज यात्रियों के लिए आरटीपीसीआर जांच जरूरी है। इसके लिए सरकारी अस्पताल या रेलवे के अस्पताल के जांच प्रमाण पत्र मान्य होंगे।हर हज यात्री अपने साथ 7 किलोग्राम का हैंड बैग, 20-20 किलोग्राम के दो-दो सूटकेस ले जा सकेंगे। हज यात्रियों की पहली उड़ान दिल्ली से मदीना जाएगी, जो 21 मई 2023 से शुरू होगी। अंतिम उड़ान 22 जून को होगी। वापसी उड़ान 3 जुलाई से शुरू होकर 2 अगस्त को अंतिम उड़ान होगी

छह दिन जमा नहीं होंगे बिजली के बिल, ऑनलाइन सिस्टम होगा अपग्रेड
अगर आप बिजली विभाग के बकायेदार हैं और बिजली से संबंधित कोई ऑनलाइन कामकाज है, तो आज 25 फरवरी शाम तक निपटा लें। आज के बाद छह दिन के लिए बिजली विभाग का पूरा ऑनलाइन सिस्टम बंद रहेगा। यह व्यवस्था सिस्टम के अपग्रेड होने के कारण प्रभावित होगी। हां, इसमें बड़े बकायेदारों को आरटीजीएस के जरिये बकाया जमा करने की सुविधा होगी,प्रदेश भर में पावर कारपोरेशन का ऑनलाइन सिस्टम अपग्रेड किया जा रहा है। यह काम 26 फरवरी से शुरू होगा और 3 मार्च तक चलेगा। इस दौरान बिजली विभाग के ऑनलाइन कामकाज बंद रहेगी। न तो बिल काउंटर पर बिल जमा हो सकेंगे और न अन्य काम हो सकेंगे। यह जानकारी देते हुए नगर क्षेत्र के एसई एसके जैन ने बताया कि जिन लोगों के बिल बकाये हैं, वे आज यानि शनिवार तक जमा कर सकते हैं। इसके बाद यह व्यवस्था छह दिन को बंद रहेगी।

अतरौली में पालीमुकीमपुर में पोखर के किनारे मिले दो दोस्तों के शव, पास में मिलीं कीटनाशक की पुड़िया
अतरौली में पालीमुकीमपुर थाना क्षेत्र के गांव धुर्रा प्रेमनगर के जंगल में पोखर के किनारे दो दोस्तों के शव मिलने से अफरातफरी मच गई। शवों के पास कीटनाशक की पुड़िया भी मिली हैं। इससे जहर खाकर आत्महत्या की आशंका व्यक्त की जा रही है। पुलिस ने दोनों के शव पोस्टमार्टम के लिए भेजे हैं। पुलिस मामले की जांच में जुटी है। गांव धुर्रा प्रेमनगर निवासी 22 वर्षीय विकास जाट पुत्र श्याम सिंह व 19 वर्षीय आंसू शर्मा उर्फ गहरी पुत्र रिंकू शर्मा आपस मे दोस्त थे। शुक्रवार की शाम करीब 8 बजे से दोनों घरों से गायब थे। परिजनों ने काफी तलाश किया, मगर उनका कहीं पता नहीं चला। शनिवार सुबह करीब 10 बजे लोग पोखर की तरफ गए तो करीब 20 मीटर की दूरी पर दोनों के शव मिले।सूचना पर ग्रामीणों की भीड़ जमा हो गई। इंस्पेक्टर ऋषिपाल सिंह पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंचे। शवों के पास कीटनाशक दवाओं के खाली रैपर मिले। इससे आशंका है कि दोनों ने जहर का सेवन किया हो। शरीर पर कहीं भी कोई चोट के निशान भी नहीं है। पुलिस के द्वारा शवों को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम भिजवाया गया। एसपीआरए पलाश बंसल ने बताया कि मौत का सही कारण जानने के लिए पोस्टमार्टम कराया जा रहा है। जरूरत पड़ने पर बिसरा जांच को भेजा जाएगा। इस मामले में कोई तहरीर परिजनों द्वारा नहीं दी गई है।


 अब निशुल्क नहीं हो पाएगा बिजली खंभों का इस्तेमाल, दूरसंचार व केबल ऑपरेटरों को देना होगा शुल्क
अब उत्तर प्रदेश के बिजली खंभों का इस्तेमाल दूरसंचार कंपनियां और केबल ऑपरेटर नहीं कर पाएंगे। इसके इस्तेमाल के लिए इन्हें निर्धारित शुल्क देना होगा। शुल्क के रूप में मिलने वाली राशि का 70 फीसदी हिस्सा उपभोक्ताओं की बिजली दरों एवं 30 फीसदी बिजली कंपनियों को दिया जाएगा। इस संबंध में दूरसंचार नेटवर्क सुविधा नियमावली-2022 लागू कर अधिसूचना जारी कर दी गई है। यह कानून लागू करने वाला उत्तर प्रदेश पहला राज्य बन गया है,विद्युत नियामक आयोग ने नवंबर-2022 में जारी नियमावली को राज्य सरकार को अधिसूचना जारी करने के लिए भेजा गया था, जो अब जारी हो गया है। इसके लागू होने के बाद अब बिजली कंपनियां शुल्क वसूलने से जुड़ी कार्यवाही शुरू कर सकेंगी। अब बिजली खंभों एवं टावरों पर कोई भी प्राइवेट अथवा सरकारी दूरसंचार कंपनी, ब्रॉडबैंड, केबल ऑपरेटर अथवा अन्य कोई भी अपना सिस्टम अथवा तार व केबल का उपयोग नहीं करेगा। इसका उपयोग करने के लिए पहले अनुमति लेनी होगी और निर्धारित शुल्क देना होगा।


 राममंदिर: पुलिस की वर्दी में हमला कर सकते हैं फिदायीन, छह स्तरीय किया गया मंदिर का सुरक्षा घेरा
उत्तर प्रदेश के अयोध्या में 70 एकड़ जमीन पर बनाए जा रहे राम मंदिर परिसर की सुरक्षा को अभेद बनाया जा रहा है।आतंकियों द्वारा हमला करने की धमकी आती रहती है। मंदिर परिसर को 'नो-फ्लाइंग जोन' घोषित करने की पूरी तैयारी हो चुकी है। इसके बाद ड्रोन, हवाई जहाज या चॉपर, कोई भी यहां से नहीं गुजर सकेगा। ऐसे अलर्ट मिल रहे हैं कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के आतंकी समूह नेपाल सीमा के जरिए मंदिर पर हमला करने की रणनीति बनाते रहते हैं। अब एक नया खतरा फिदायीन अटैक का है। मंदिर में 'पुलिस और फौज' की वर्दी में घुसकर हमला हो सकता है। ऐसे हमले में आतंकी पहले धमाका करते हैं और उसके बाद फायरिंग होती है। इस तरह के संभावित हमलों के मद्देनजर मंदिर परिसर की सुरक्षा को और ज्यादा पुख्ता बनाया जा रहा है। जिस तरह से मंदिर की सुरक्षा में सीआरपीएफ, स्थानीय पुलिस और पीएसी तैनात है, उसी तर्ज पर इंटेलिजेंस इनपुट जुटाने के लिए अलग से एजेंसियों को जिम्मेदारी सौंपी गई है। अब मंदिर का सुरक्षा घेरा 6 स्तरीय हो गया है। सटीक खुफिया जानकारी जुटाने के लिए आईबी, एलआईयू 'खुफिया संपर्क इकाई' और सीआरपीएफ की इंटेलिजेंस विंग, को विशेष टॉस्क दिया गया है।



 जो व्यवहार हम चाहते हैं कि लोग हमसे करें, वैसा व्यवहार हमें स्वयं भी औरों से करना चाहिए। कोई नहीं चाहता कि उससे छल हो तो वह स्वयं किसी को क्यों छले? प्रायः लोग अपने से तो भला व्यवहार चाहते हैं पर दूसरों से सरल सीधा व्यवहार नहीं करना चाहते।


यही कारण आपस के सन्देह का होता है। क्या एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र की राष्ट्रीयता को भंग करके वहाँ के लोगों को पददलित करके अपना स्वार्थ पूरा करे? पर इतिहास साक्षी है कि सबल राष्ट्रों ने ऐसा किया है। लूट-खसोट ही नहीं मानवता के नाते भी भुला दिये गये और विजित देश के लोग दास बनाये गये उनके उद्योग धंधे नष्ट किये गये और उन्हें बुरी तरह दबाया गया और यह सब विजित लोगों के ही हितों के नाम पर किया गया। यह क्यों हो सका? कारण स्पष्ट है विजित देशों में जब सहानुभूति नहीं रहती, सम्वेदना नहीं रहती, तो आपस का सहयोग भी नहीं रहा करता। 

यह अनुभूति जैसी देशों की जनता के विषय में सत्य हुई वैसी ही व्यक्तियों में भी देखी गई। जिन लोगों में आपस की सद्भावना नहीं रहती उनमें सहानुभूति भी नहीं रहती और वे मिलकर एक उद्देश्य से कार्य भी नहीं कर सकते। इन्हीं दुर्बलताओं को आक्रमणकारी राष्ट्र भांप लेता है और अपनी स्वार्थ पूर्ति करता है। विजित लोगों के हृदय आपस में तो मिले हुए होते ही नहीं उनमें और चौड़ी खाई बना दी जाती है, और विजेता लोगों को हर प्रकार से वृद्धि तथा विजित लोगों का ह्रास आरम्भ हो जाता है। दुःख की अनुभूति भी पुनरुत्थान के लिये मनुष्य को उत्तेजित करने में सहायक होती है और विजित लोग जिन्हें अपनी दासता असह्य हो जाती है वे विजेताओं से उकता कर आपस में मिलकर आपस में एक उद्देश्य के लिए संगठित होकर तत्परता और पूरी लगन से कार्य करना सीख लेते हैं। 

सहानुभूति का उदय होता है, स्वार्थ नहीं उभरने पाता और आपस के सहयोग तथा विजेताओं से पूर्ण असहयोग करके वे शक्ति संपन्न हो जाते हैं। सहयोग में अनुपम शक्ति है। जो कार्य व्यक्ति से नहीं हो पाता वही कार्य मिलकर करने में सुगम हो जाता है और सहर्ष सम्पन्न होता है। सहयोग से इस प्रकार पुनः चक्र बदलने लगता है और वही जनता जो पहले पददलित और तिरस्कृत थी वश प्राप्त करती है और विश्व में उसकी कीर्ति फैलती है सहयोग महान अद्भुत शक्ति है। भारतीय जनता इसी प्रकार अपना खोया हुआ गौरव पा सकी है और अब हमारा जनतंत्र विश्व भर में आदर पा रहा है। सहयोग से सफलता और कीर्ति निहित है।

सद्भावना से एक दूसरे को ठीक-ठीक जानना और आपस में प्रेम उत्पन्न करना, सहानुभूति से आपस में एक दूसरे के हृदय में प्रवेश करना और हृदयों का समन्वय करना तथा सहयोग से सामर्थ्य प्राप्त करना यह क्रम है महत्वाकांक्षी की पूर्ति का। सहयोग ही यज्ञ है, यज्ञ कभी विफल नहीं हुआ। सभी शक्तियों में सहयोग होने से एक अत्यंत महान शक्ति का उदय होता है जिससे सभी में नया उत्साह साहस और वस्तुतः कार्यक्षमता युक्त नवजीवन उदय होता है।

 मुख्यमंत्री योगी ने दिया जवाब, सभी थानों में महिला हेल्प डेस्क और महिला बीट गठित की

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मातृ शक्ति के सशक्तिकरण को लेकर यूपी विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान विपक्ष को जवाब दिया। उन्होंने कहा कि सदन में मातृ शक्ति की बात हो रही थी। नेता विरोधी दल कह रहे थे कि कहां पर महिला हेल्प डेस्क बना है। प्रदेश के सभी 1537 थानों में और जीआरपी के थानों को मिलाएंगे 1584 थानों में महिला हेल्प डेस्क की स्थापना हो चुकी है।प्रत्येक जनपद में एक अतिरिक्त महिला थाने के साथ-साथ अतिरिक्त महिला परामर्श चौकी की स्थापना हो चुकी है। प्रदेश के सभी 1537 थानों में 10417 महिला बीट गठित की गई हैं और प्रदेश के सभी ग्राम पंचायतों में जहां पर ग्राम सचिवालय का निर्माण हो चुका है वहां एक मिशन शक्ति कक्ष का भी निर्माण किया जा चुका है।

✒ अलीगढ़ के गभाना में अवैध रोडवेज बस पलटी, शीशे तोड़कर निकाले यात्री, 27 यात्री घायल
अलीगढ़ के गभाना में राजमार्ग चूहरपुर के पास शनिवार की दोपहर अवैध रोडवेज बस अनियंत्रित होकर सड़क किनारे गढ्डे में पलट गई। हादसे में करीब 27 यात्री घायल हो गई हैं। जबकि सड़क किनारे खडी बाइक बस के नीचे दबकर क्षतिग्रस्त हो गई। हादसे के बाद चालक- परिचालक मौका देखकर भाग गए। मिली जानकारी के अनुसार सुबह फर्रुखाबाद के कायमगंज से अवैध रोडवेज बस यूपी 17 टी 4993 करीब 45 सवारियां लेकर दिल्ली जा रही थी। जैसे ही बस राजमार्ग चूहरपुर के पास पहुंची कि किसी वाहन को ओवर टैक करने के प्रयास में बस अनियंत्रित होकर सड़क किनारे गड्ढे में पलट गई। सड़क किनारे खड़ी बाइक भी दबकर क्षतिग्रस्त हो गई।

व‍िधानसभा में दहाड़े मुख्यमंत्री योगी आद‍ित्‍यनाथ, रामचर‍ितमानस पर द‍िया बड़ा बयान, अख‍िलेश पर भड़के
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को विधान सभा में राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा से पहले प्रयागराज में हुए हत्याकांड पर दुख जताया और आश्वासन दिया कि प्रदेश में किसी भी माफिया को पनपने नहीं दिया जाएगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि उनकी सरकार माफिया को मिट्टी में मिला देगी,सीएम योगी ने कहा कि प्रयागराज की घटना दुखद है, सरकार ने उसका संज्ञान लिया है। जीरो टॉलरेंस की नीति के परिणाम बहुत जल्द सामने आएंगे, इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए। उन्होंने विपक्षी दल सपा पर निशाना साधते हुए कहा कि आखिर ये अपराधी पाले किसके द्वारा गये हैं ? जिस माफिया के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है, क्या ये सच नहीं है कि सपा ने उसे सांसद बनाया था? आप सारे अपराधियों को पालेंगे, उनका माल्यार्पण करेंगे, उसके बाद तमाशा बनाते हैं आप लोग। उन्हें गले का हार बनाएंगे फिर दोषारोपण करेंगे,सदन में अख‍िलेश यादव ने यूपी की कानून व्‍यवस्‍था पर सवाल उठाते हुए कहा क‍ि आपको शर्म आनी चाह‍िए। जवाब में मुख्‍यमंत्री योगी आ‍द‍ित्‍यनाथ ने कहा क‍ि शर्म तो आपको करनी चाह‍िए। आप अपने बाप का भी सम्‍मान नहीं कर सके। इस पर सदन में समाजवादी पार्टी के सदस्‍यों ने हंगामा शुरु कर द‍िया।
सोनिया गांधी बोलीं- 'भारत जोड़ो यात्रा मेरी राजनीतिक पारी का अंतिम पड़ाव हो सकती है'
छत्तीसगढ़ के रायपुर में कांग्रेस के अधिवेशन में  कांग्रेस सांसद सोनिया गांधी ने शनिवार को राजनीति से संन्यास लेने की ओर इशारा किया है। उन्होंने कहा है कि "मनमोहन सिंह के सक्षम नेतृत्व के साथ 2004 और 2009 में हमारी जीत ने मुझे व्यक्तिगत संतुष्टि दी लेकिन मुझे सबसे ज्यादा खुशी इस बात की है कि मेरी पारी भारत जोड़ो यात्रा के साथ समाप्त हो सकती है, जो कांग्रेस के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था।बीजेपी-आरएसएस ने देश की हर एक संस्था पर कब्जा कर लिया है और उसे बर्बाद कर दिया है। कुछ व्यापारियों का पक्ष लेकर आर्थिक तबाही मचाई है,छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में पार्टी के तीन दिवसीय सम्मेलन के दूसरे दिन लगभग 15 हजार प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए, सोनिया ने कहा कि भारत के लोग सद्भाव, सहिष्णुता और समानता चाहते हैं।

हज कमेटी ऑफ इंडिया ने आजमीन को सुनाया नया फरमान- नहीं मिलेगी रियाल, स्वयं लेकर जाएं विदेशी मुद्रा
हज कमेटी ऑफ इंडिया ने रियाल को लेकर इस बार नियम बदल दिया है। अब आजमीन को विदेशी मुद्रा (सऊदी रियाल) स्वयं लेकर जाने होंगे। हज कमेटी की ओर से कोई पैसा नहीं दिया जाएगा। पहले हज कमेटी की ओर से खर्च के लिए 1500 (सऊदी रियाल) दिए जाते थे। इस बार हज जाने वालों को यह सुविधा नहीं मिलेगी।सऊदी अरब में हज के दौरान आजमीन अपने पास से भी रुपये खर्च करते थे। इसके लिए हज कमेटी आफ इंडिया आजमीन को 1500 (सऊदी रियाल) देती थी। इस बार से यह व्यवस्था आजमीन को नहीं मिलेगी।

✒ हज कमेटी ऑफ इंडिया नहीं देगा यात्रियों को सिम कार्ड, आरटीपीसीआर जांच भी होगी जरूरी
इस बार हज कमेटी ऑफ इंडिया यात्रियों को सिम कार्ड नहीं देगा। हज यात्रियों को अपने साथ सिम कार्ड ले जाना होगा। सऊदी अरब में भी वह सिम कार्ड आसानी से खरीद सकते हैं। हज यात्रियों के लिए आरटीपीसीआर जांच जरूरी है। इसके लिए सरकारी अस्पताल या रेलवे के अस्पताल के जांच प्रमाण पत्र मान्य होंगे।हर हज यात्री अपने साथ 7 किलोग्राम का हैंड बैग, 20-20 किलोग्राम के दो-दो सूटकेस ले जा सकेंगे। हज यात्रियों की पहली उड़ान दिल्ली से मदीना जाएगी, जो 21 मई 2023 से शुरू होगी। अंतिम उड़ान 22 जून को होगी। वापसी उड़ान 3 जुलाई से शुरू होकर 2 अगस्त को अंतिम उड़ान होगी

छह दिन जमा नहीं होंगे बिजली के बिल, ऑनलाइन सिस्टम होगा अपग्रेड
अगर आप बिजली विभाग के बकायेदार हैं और बिजली से संबंधित कोई ऑनलाइन कामकाज है, तो आज 25 फरवरी शाम तक निपटा लें। आज के बाद छह दिन के लिए बिजली विभाग का पूरा ऑनलाइन सिस्टम बंद रहेगा। यह व्यवस्था सिस्टम के अपग्रेड होने के कारण प्रभावित होगी। हां, इसमें बड़े बकायेदारों को आरटीजीएस के जरिये बकाया जमा करने की सुविधा होगी,प्रदेश भर में पावर कारपोरेशन का ऑनलाइन सिस्टम अपग्रेड किया जा रहा है। यह काम 26 फरवरी से शुरू होगा और 3 मार्च तक चलेगा। इस दौरान बिजली विभाग के ऑनलाइन कामकाज बंद रहेगी। न तो बिल काउंटर पर बिल जमा हो सकेंगे और न अन्य काम हो सकेंगे। यह जानकारी देते हुए नगर क्षेत्र के एसई एसके जैन ने बताया कि जिन लोगों के बिल बकाये हैं, वे आज यानि शनिवार तक जमा कर सकते हैं। इसके बाद यह व्यवस्था छह दिन को बंद रहेगी।

अतरौली में पालीमुकीमपुर में पोखर के किनारे मिले दो दोस्तों के शव, पास में मिलीं कीटनाशक की पुड़िया
अतरौली में पालीमुकीमपुर थाना क्षेत्र के गांव धुर्रा प्रेमनगर के जंगल में पोखर के किनारे दो दोस्तों के शव मिलने से अफरातफरी मच गई। शवों के पास कीटनाशक की पुड़िया भी मिली हैं। इससे जहर खाकर आत्महत्या की आशंका व्यक्त की जा रही है। पुलिस ने दोनों के शव पोस्टमार्टम के लिए भेजे हैं। पुलिस मामले की जांच में जुटी है। गांव धुर्रा प्रेमनगर निवासी 22 वर्षीय विकास जाट पुत्र श्याम सिंह व 19 वर्षीय आंसू शर्मा उर्फ गहरी पुत्र रिंकू शर्मा आपस मे दोस्त थे। शुक्रवार की शाम करीब 8 बजे से दोनों घरों से गायब थे। परिजनों ने काफी तलाश किया, मगर उनका कहीं पता नहीं चला। शनिवार सुबह करीब 10 बजे लोग पोखर की तरफ गए तो करीब 20 मीटर की दूरी पर दोनों के शव मिले।सूचना पर ग्रामीणों की भीड़ जमा हो गई। इंस्पेक्टर ऋषिपाल सिंह पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंचे। शवों के पास कीटनाशक दवाओं के खाली रैपर मिले। इससे आशंका है कि दोनों ने जहर का सेवन किया हो। शरीर पर कहीं भी कोई चोट के निशान भी नहीं है। पुलिस के द्वारा शवों को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम भिजवाया गया। एसपीआरए पलाश बंसल ने बताया कि मौत का सही कारण जानने के लिए पोस्टमार्टम कराया जा रहा है। जरूरत पड़ने पर बिसरा जांच को भेजा जाएगा। इस मामले में कोई तहरीर परिजनों द्वारा नहीं दी गई है।


 अब निशुल्क नहीं हो पाएगा बिजली खंभों का इस्तेमाल, दूरसंचार व केबल ऑपरेटरों को देना होगा शुल्क
अब उत्तर प्रदेश के बिजली खंभों का इस्तेमाल दूरसंचार कंपनियां और केबल ऑपरेटर नहीं कर पाएंगे। इसके इस्तेमाल के लिए इन्हें निर्धारित शुल्क देना होगा। शुल्क के रूप में मिलने वाली राशि का 70 फीसदी हिस्सा उपभोक्ताओं की बिजली दरों एवं 30 फीसदी बिजली कंपनियों को दिया जाएगा। इस संबंध में दूरसंचार नेटवर्क सुविधा नियमावली-2022 लागू कर अधिसूचना जारी कर दी गई है। यह कानून लागू करने वाला उत्तर प्रदेश पहला राज्य बन गया है,विद्युत नियामक आयोग ने नवंबर-2022 में जारी नियमावली को राज्य सरकार को अधिसूचना जारी करने के लिए भेजा गया था, जो अब जारी हो गया है। इसके लागू होने के बाद अब बिजली कंपनियां शुल्क वसूलने से जुड़ी कार्यवाही शुरू कर सकेंगी। अब बिजली खंभों एवं टावरों पर कोई भी प्राइवेट अथवा सरकारी दूरसंचार कंपनी, ब्रॉडबैंड, केबल ऑपरेटर अथवा अन्य कोई भी अपना सिस्टम अथवा तार व केबल का उपयोग नहीं करेगा। इसका उपयोग करने के लिए पहले अनुमति लेनी होगी और निर्धारित शुल्क देना होगा।


 राममंदिर: पुलिस की वर्दी में हमला कर सकते हैं फिदायीन, छह स्तरीय किया गया मंदिर का सुरक्षा घेरा
उत्तर प्रदेश के अयोध्या में 70 एकड़ जमीन पर बनाए जा रहे राम मंदिर परिसर की सुरक्षा को अभेद बनाया जा रहा है।आतंकियों द्वारा हमला करने की धमकी आती रहती है। मंदिर परिसर को 'नो-फ्लाइंग जोन' घोषित करने की पूरी तैयारी हो चुकी है। इसके बाद ड्रोन, हवाई जहाज या चॉपर, कोई भी यहां से नहीं गुजर सकेगा। ऐसे अलर्ट मिल रहे हैं कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के आतंकी समूह नेपाल सीमा के जरिए मंदिर पर हमला करने की रणनीति बनाते रहते हैं। अब एक नया खतरा फिदायीन अटैक का है। मंदिर में 'पुलिस और फौज' की वर्दी में घुसकर हमला हो सकता है। ऐसे हमले में आतंकी पहले धमाका करते हैं और उसके बाद फायरिंग होती है। इस तरह के संभावित हमलों के मद्देनजर मंदिर परिसर की सुरक्षा को और ज्यादा पुख्ता बनाया जा रहा है। जिस तरह से मंदिर की सुरक्षा में सीआरपीएफ, स्थानीय पुलिस और पीएसी तैनात है, उसी तर्ज पर इंटेलिजेंस इनपुट जुटाने के लिए अलग से एजेंसियों को जिम्मेदारी सौंपी गई है। अब मंदिर का सुरक्षा घेरा 6 स्तरीय हो गया है। सटीक खुफिया जानकारी जुटाने के लिए आईबी, एलआईयू 'खुफिया संपर्क इकाई' और सीआरपीएफ की इंटेलिजेंस विंग, को विशेष टॉस्क दिया गया है।



20230212

                                                                विचारणीय बाते 👇

उत्त्तर  प्रदेश का सबसे बड़ा डॉन मुख़्तार अंसारी .

बिहार का सबसे बड़ा डॉन शहाबुद्दीन ..

महाराष्ट्र का सबसे बड़ा डॉन दाऊद इब्राहिम ..

आंध्र प्रदेश का सबसे बड़ा डॉन अकबरुद्दीन ओवैसी ..

जम्मू कश्मीर का सबसे बड़ा डॉन यासीन मलिक ....

हम कहाँ हैं और हमारा वजूद कहाँ है ??

और भाई चारे की चादर ओढ़े हिंदुओं ,,,,

तुम्हारा अंजाम शायद दर्द से भी ज्यादा दर्दनाक होगा ।।

हम हिंदुओं को अच्छे से पता है कि ---

झुमका बरेली वाला अच्छा होता है ,

अमरुद इलाहाबाद का मीठा होता है ,

सेब कश्मीर के बेहतर होते हैं ,

चूड़ी फिरोज़ाबादी गजब की होती है ,

सलवार पटियाला का शानदार होता है ,

नारियल केरल का अच्छा होता है ,,

सुरमा भोपाल का बेहतर होता है ,

बनारस का पान लाजवाब होता है ,,

पर ,

किसी हिन्दू को नहीं पता कि ---

पिस्टल कहाँ की मारक होती है ?

बंदूकें कहाँ की घातक होती हैं ?

बारूद कहाँ बनाया जाता है ?

खंज़र कहाँ छुपाया जाता है ?

यही वजह है कि जिन्हें पूरा संसार मार रहा है , , वो हमें मार रहे हैं ।।।।

*तरस आता है उन औलादों पर जिन्हें कल *किसी नए बाबर की गुलामी करनी है ।।।।।।।।।

राजनीति के कडुवे प्रश्न?

प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता क्या है?

उत्तर- हिन्दुओ को गाली देना।

प्रश्न- असहिष्णुता क्या है?

उत्तर- हिन्दू हित की बात करना।

प्रश्न- पिछड़ा कौन है?

उत्तर- लालू और मुलायम का परिवार।

प्रश्न- समाजवाद क्या?

उत्तर- मुलायम-अखिलेश की सोच।

प्रश्न- एकमात्र दलित महिला?

उत्तर- मायावती।

प्रश्न- बेगुनाह कौन है?

उत्तर- सिर्फ मुसलमान।

प्रश्न- सबसे ज्यादा गुनाहगार?

उत्तर- RSS और बजरंग दल।

प्रश्न- त्याग की मूर्ति?

उत्तर- सोनिया गांधी।

प्रश्न- किसके बगैर देश निर्माण असंभव है?

उत्तर- नेहरू परिवार।

प्रश्न- एकमात्र उम्मीद की किरण?

उत्तर- राहुल गांधी।

प्रश्न- धर्म निरपेक्ष राज्य?

उत्तर- जम्मू कश्मीर।

प्रश्न- अनैतिक राज्य?

उत्तर- गुजरात।

प्रश्न- राष्ट्रीय बहु?

उत्तर- सोनिया गांधी।

प्रश्न- राष्ट्रीय अब्बा?

उत्तर- गुलाम नबी आजाद।

प्रश्न- सबसे ईमानदार?

उत्तर- केजरीवाल।

प्रश्न- सादगी की परकाष्ठा?

उत्तर- ममता बनर्जी।

प्रश्न- सम्प्रदायिकता क्या है?

उत्तर- आरती और पूजा करना।

प्रश्न- अहिंसा क्या है?

उत्तर- बकरीद।

प्रश्न- धर्म की सुंदरता क्या है?

उत्तर- नमाज़ के वक़्त रोड जाम हो।

प्रश्न- राष्ट्रीय अतिथि?

उत्तर- बांग्लादेशी।

प्रश्न- बुद्धजीवी कौन है?

उत्तर- जो देश को गाली देने की वकालत करे।

प्रश्न- एकमात्र छात्र?

उत्तर- कन्हैया कुमार।

प्रश्न- गुमराह और बेगुनाह?

उत्तर- कश्मीरी पत्थरबाज।

प्रश्न- इस्लाम की खूबसूरती?

उत्तर- कश्मीरियत।

प्रश्न- राष्ट्रीय समस्या?

उत्तर- टमाटर और प्याज़।

प्रश्न- सबसे गरीब?

उत्तर- बसपा वाले।

प्रश्न- एक मात्र प्रदूषण वाला त्योहार

उत्तर- दीपावली।

प्रश्न- देश का दुश्मन?

उत्तर- नरेंद मोदी।

प्रश्न- सच्चा देश भक्त?

उत्तर- औवैसी।

प्रश्न- किसे नागरिकता मिलनी चाहिए?

उत्तर- रोहिंग्या मुसलमान।

प्रश्न- देश से किसे निकालना चाहिए।

उत्तर- कश्मीरी पंडितों को 

अब इसको शेयर करने में भी मर जायेंगे हिन्दू 

 चैटिगँ छोडकर इस पोस्ट को जरूर पढेँ वर्ना सारी जिन्दगी चैट ही करते रह जाओग...


1378 मेँ भारत से एक हिस्सा अलग हुआ, इस्लामिक राष्ट्र बना - नाम है इरान.

1761 मेँ भारत से एक हिस्सा अलग हुआ, इस्लामिक राष्ट्र बना - नाम है अफगानिस्तान.

1947 मेँ भारत से एक हिस्सा अलग हुआ, इस्लामिक राष्ट्र बना - नाम है पाकिस्तान.

1971 मेँ भारत से एक हिस्सा अलग हुआ, इस्लामिक राष्ट्र बना - नाम हैँ बांग्लादेश.

1952 से 1990 के बीच भारत का एक राज्य इस्लामिक हो गया - नाम है कशमीर...


और अब उत्तरप्रदेश, आसाम और केरला इस्लामिक राज्य बनने की कगार पर है !

और हम जब भी हिँदुओँ को जगाने की बात करते हैँ, सच्चाई बताते हैँ तो कुछ लोग हमेँ RSS, VHP और SHIV-SENA, BJP वाला कहकर पल्ला झाङ लेते हैँ !


1 मिनट चैटिगँ छोडकर इस पोस्ट को जरूर.

 पढेँ 

 भारत में मुसलमान कौन है

मैसेज का आखिरी हिस्सा ज़रूर पढें तभी पूरा मतलब समझ आयेगा


धर्म के नाम पर भारत के टुकड़े किये जिसने -

वों जिन्नाह मुसलमान था |


करोडो हिंदुओ का खून बहाया जिसने -

वों हर सुल्तान मुसलमान था ||


हिंदुओ से जबरन इस्लाम कबुल करवाया जिसने -

वों अरब मुसलमान था |


राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनायीं जिसने -

वों बाबर मुसलमान था ||


गुरु तेग बहादुर का सर कलम किया जिसने-

वों औरंगजेब मुसलमान था |


कश्मीर में पंडितो का नरसंहार किया जिसने -

वों हर आतंकी मुसलमान था ||


मुंबई में बम धमाके करवाए जिसने -

वों दाउद मुसलमान था |


भारत में घुसे 5 करोड जाहिलो में -

हर बांग्लादेशी मुसलमान था ||


बुद्ध महावीर कि मुर्तिया तोड़ी जिसने -

वों हर दंगाई मुसलमान था |


भारत के संसद पर हमला किया जिसने-

वों अफजल मुसलमान था ||


गोधरा में कारसेवको कों जिन्दा जलाया जिसने -

वों हर जेहादी मुसलमान था |

पाकिस्तान, असम से हिंदुओ को खदेड़ा जिसने -

वों हर शख्स मुसलमान था ||

कों हिंदुओ कों गोलियों से भुना जिसने -

वों कसाब मुसलमान था |


अमरनाथ यात्रा पर पाबंदी कि मांग कि है जिसने -

वों गिलानी मुसलमान था ||


अमरनाथ यात्रियों पे जजिया लगाया है जिसने -

वों मंत्री मुसलमान था |


100 करोड हिंदुओ कों काटने कि कसम खायी है जिसने-

वों ओवैसी भी मुसलमान हे ||


इसमें आगे की पंक्तिया 


जो गाय काट के खाता हैं -

वो हर शख्स मुस्लमान हैं |


वो वन्देमातरम नहीं गाता -

वो हर शक्श मुस्लमान हैं ||


कश्मीर में भारत मुर्दाबाद बोलता हैं -

वो शक्श मुस्लमान हैं |


हैदराबाद में तिरंगा जलाने वाला -

हर शक्श मुस्लमान हैं ||


जो लव जिहाद करता हैं -

वो हर शक्श मुस्लमान हैं |


जो देश बर्बाद करने की सोचने वाली -

हर हाथ मुसलमान है!!!!


मुसलमानो को करारा जवाब है हर हिन्दु को शेयर करना चाहिये!!!


आज पता चलेगा कितने हिन्दु एक हो गये है!!

जागो...हिन्दु.....जागो.....


भारत माता की जय 


                                                                विचारणीय बाते 👇

उत्त्तर  प्रदेश का सबसे बड़ा डॉन मुख़्तार अंसारी .

बिहार का सबसे बड़ा डॉन शहाबुद्दीन ..

महाराष्ट्र का सबसे बड़ा डॉन दाऊद इब्राहिम ..

आंध्र प्रदेश का सबसे बड़ा डॉन अकबरुद्दीन ओवैसी ..

जम्मू कश्मीर का सबसे बड़ा डॉन यासीन मलिक ....

हम कहाँ हैं और हमारा वजूद कहाँ है ??

और भाई चारे की चादर ओढ़े हिंदुओं ,,,,

तुम्हारा अंजाम शायद दर्द से भी ज्यादा दर्दनाक होगा ।।

हम हिंदुओं को अच्छे से पता है कि ---

झुमका बरेली वाला अच्छा होता है ,

अमरुद इलाहाबाद का मीठा होता है ,

सेब कश्मीर के बेहतर होते हैं ,

चूड़ी फिरोज़ाबादी गजब की होती है ,

सलवार पटियाला का शानदार होता है ,

नारियल केरल का अच्छा होता है ,,

सुरमा भोपाल का बेहतर होता है ,

बनारस का पान लाजवाब होता है ,,

पर ,

किसी हिन्दू को नहीं पता कि ---

पिस्टल कहाँ की मारक होती है ?

बंदूकें कहाँ की घातक होती हैं ?

बारूद कहाँ बनाया जाता है ?

खंज़र कहाँ छुपाया जाता है ?

यही वजह है कि जिन्हें पूरा संसार मार रहा है , , वो हमें मार रहे हैं ।।।।

*तरस आता है उन औलादों पर जिन्हें कल *किसी नए बाबर की गुलामी करनी है ।।।।।।।।।

राजनीति के कडुवे प्रश्न?

प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता क्या है?

उत्तर- हिन्दुओ को गाली देना।

प्रश्न- असहिष्णुता क्या है?

उत्तर- हिन्दू हित की बात करना।

प्रश्न- पिछड़ा कौन है?

उत्तर- लालू और मुलायम का परिवार।

प्रश्न- समाजवाद क्या?

उत्तर- मुलायम-अखिलेश की सोच।

प्रश्न- एकमात्र दलित महिला?

उत्तर- मायावती।

प्रश्न- बेगुनाह कौन है?

उत्तर- सिर्फ मुसलमान।

प्रश्न- सबसे ज्यादा गुनाहगार?

उत्तर- RSS और बजरंग दल।

प्रश्न- त्याग की मूर्ति?

उत्तर- सोनिया गांधी।

प्रश्न- किसके बगैर देश निर्माण असंभव है?

उत्तर- नेहरू परिवार।

प्रश्न- एकमात्र उम्मीद की किरण?

उत्तर- राहुल गांधी।

प्रश्न- धर्म निरपेक्ष राज्य?

उत्तर- जम्मू कश्मीर।

प्रश्न- अनैतिक राज्य?

उत्तर- गुजरात।

प्रश्न- राष्ट्रीय बहु?

उत्तर- सोनिया गांधी।

प्रश्न- राष्ट्रीय अब्बा?

उत्तर- गुलाम नबी आजाद।

प्रश्न- सबसे ईमानदार?

उत्तर- केजरीवाल।

प्रश्न- सादगी की परकाष्ठा?

उत्तर- ममता बनर्जी।

प्रश्न- सम्प्रदायिकता क्या है?

उत्तर- आरती और पूजा करना।

प्रश्न- अहिंसा क्या है?

उत्तर- बकरीद।

प्रश्न- धर्म की सुंदरता क्या है?

उत्तर- नमाज़ के वक़्त रोड जाम हो।

प्रश्न- राष्ट्रीय अतिथि?

उत्तर- बांग्लादेशी।

प्रश्न- बुद्धजीवी कौन है?

उत्तर- जो देश को गाली देने की वकालत करे।

प्रश्न- एकमात्र छात्र?

उत्तर- कन्हैया कुमार।

प्रश्न- गुमराह और बेगुनाह?

उत्तर- कश्मीरी पत्थरबाज।

प्रश्न- इस्लाम की खूबसूरती?

उत्तर- कश्मीरियत।

प्रश्न- राष्ट्रीय समस्या?

उत्तर- टमाटर और प्याज़।

प्रश्न- सबसे गरीब?

उत्तर- बसपा वाले।

प्रश्न- एक मात्र प्रदूषण वाला त्योहार

उत्तर- दीपावली।

प्रश्न- देश का दुश्मन?

उत्तर- नरेंद मोदी।

प्रश्न- सच्चा देश भक्त?

उत्तर- औवैसी।

प्रश्न- किसे नागरिकता मिलनी चाहिए?

उत्तर- रोहिंग्या मुसलमान।

प्रश्न- देश से किसे निकालना चाहिए।

उत्तर- कश्मीरी पंडितों को 

अब इसको शेयर करने में भी मर जायेंगे हिन्दू 

 चैटिगँ छोडकर इस पोस्ट को जरूर पढेँ वर्ना सारी जिन्दगी चैट ही करते रह जाओग...


1378 मेँ भारत से एक हिस्सा अलग हुआ, इस्लामिक राष्ट्र बना - नाम है इरान.

1761 मेँ भारत से एक हिस्सा अलग हुआ, इस्लामिक राष्ट्र बना - नाम है अफगानिस्तान.

1947 मेँ भारत से एक हिस्सा अलग हुआ, इस्लामिक राष्ट्र बना - नाम है पाकिस्तान.

1971 मेँ भारत से एक हिस्सा अलग हुआ, इस्लामिक राष्ट्र बना - नाम हैँ बांग्लादेश.

1952 से 1990 के बीच भारत का एक राज्य इस्लामिक हो गया - नाम है कशमीर...


और अब उत्तरप्रदेश, आसाम और केरला इस्लामिक राज्य बनने की कगार पर है !

और हम जब भी हिँदुओँ को जगाने की बात करते हैँ, सच्चाई बताते हैँ तो कुछ लोग हमेँ RSS, VHP और SHIV-SENA, BJP वाला कहकर पल्ला झाङ लेते हैँ !


1 मिनट चैटिगँ छोडकर इस पोस्ट को जरूर.

 पढेँ 

 भारत में मुसलमान कौन है

मैसेज का आखिरी हिस्सा ज़रूर पढें तभी पूरा मतलब समझ आयेगा


धर्म के नाम पर भारत के टुकड़े किये जिसने -

वों जिन्नाह मुसलमान था |


करोडो हिंदुओ का खून बहाया जिसने -

वों हर सुल्तान मुसलमान था ||


हिंदुओ से जबरन इस्लाम कबुल करवाया जिसने -

वों अरब मुसलमान था |


राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनायीं जिसने -

वों बाबर मुसलमान था ||


गुरु तेग बहादुर का सर कलम किया जिसने-

वों औरंगजेब मुसलमान था |


कश्मीर में पंडितो का नरसंहार किया जिसने -

वों हर आतंकी मुसलमान था ||


मुंबई में बम धमाके करवाए जिसने -

वों दाउद मुसलमान था |


भारत में घुसे 5 करोड जाहिलो में -

हर बांग्लादेशी मुसलमान था ||


बुद्ध महावीर कि मुर्तिया तोड़ी जिसने -

वों हर दंगाई मुसलमान था |


भारत के संसद पर हमला किया जिसने-

वों अफजल मुसलमान था ||


गोधरा में कारसेवको कों जिन्दा जलाया जिसने -

वों हर जेहादी मुसलमान था |

पाकिस्तान, असम से हिंदुओ को खदेड़ा जिसने -

वों हर शख्स मुसलमान था ||

कों हिंदुओ कों गोलियों से भुना जिसने -

वों कसाब मुसलमान था |


अमरनाथ यात्रा पर पाबंदी कि मांग कि है जिसने -

वों गिलानी मुसलमान था ||


अमरनाथ यात्रियों पे जजिया लगाया है जिसने -

वों मंत्री मुसलमान था |


100 करोड हिंदुओ कों काटने कि कसम खायी है जिसने-

वों ओवैसी भी मुसलमान हे ||


इसमें आगे की पंक्तिया 


जो गाय काट के खाता हैं -

वो हर शख्स मुस्लमान हैं |


वो वन्देमातरम नहीं गाता -

वो हर शक्श मुस्लमान हैं ||


कश्मीर में भारत मुर्दाबाद बोलता हैं -

वो शक्श मुस्लमान हैं |


हैदराबाद में तिरंगा जलाने वाला -

हर शक्श मुस्लमान हैं ||


जो लव जिहाद करता हैं -

वो हर शक्श मुस्लमान हैं |


जो देश बर्बाद करने की सोचने वाली -

हर हाथ मुसलमान है!!!!


मुसलमानो को करारा जवाब है हर हिन्दु को शेयर करना चाहिये!!!


आज पता चलेगा कितने हिन्दु एक हो गये है!!

जागो...हिन्दु.....जागो.....


भारत माता की जय 


20221011

 *"हिजड़ों ने भाषण दिए लिंग-बोध पर,* 

*वेश्याओं ने कविता पढ़ी आत्म-शोध पर"।*

*महिलाओं का दैहिक शोषण करने वाले नेता ने भाषण दिया नारी अस्मिता पर।*

*भ्रष्ट अधिकारियों ने शुचिता और पारदर्शिता पर उद्बोधन दिया विश्वविद्यालय मैं कभी ना पढ़ाने वाले प्रोफेसर कर्म योग पर व्याख्यान दे रहे हैं।*

     असल मे दोष इनका नहीं है। 

*इस देश की प्रजा प्रधानमंत्री को मंदिर में पूजा करते देखने की आदी नहीं है।* 


*इस देश ने एडविना माउंटबेटन की कमर में हाथ डाल कर नाचते प्रधानमंत्री को देखा है।*


इस देश ने 

*मजारों पर चादर चढ़ाते प्रधानमंत्री को देखा है।*

यह जनता *प्रधानमंत्री को*

*पार्टी अध्यक्ष के सामने नतमस्तक होते देखती आयी है। मंदिर में भगवान के समक्ष नतमस्तक प्रधानमंत्री को लोग कैसे सहन करें ?*

     

बिहार के *एक बिना अखबार के पत्रकार मंदिर से निकल कर सूर्य को प्रणाम करते प्रधानमंत्री का उपहास उड़ा रहे हैं।*


एक महान लेखक जिनका सबसे बड़ा प्रशंसक भी उनकी चार किताबों का नाम नहीं जानता, 

*प्रधानमंत्री के भगवा चादर की आलोचना कर रहे हैं।*


एक कवियित्री जो अपनी कविता से अधिक मंच पर चढ़ने के पूर्व सवा घण्टे तक मेकप करने के लिए जानी जाती हैं, *प्रधानमंत्री के पहाड़ी परिधान की आलोचना कर रही हैं।*


भारत के इतिहास में आलोचना कभी इतनी निर्लज्ज नहीं रही, ना ही बुद्धिजीविता इतनी लज्जाहीन हुई कि 

*गांधीवाद के स्वघोषित योद्धा भी*

*बंगाल की हिंसा के लिए ममता बनर्जी का समर्थन करें।*


क्या कोई व्यक्ति इतना हताश हो सकता है कि किसी की पूजा की आलोचना करे ? 

*क्या इस देश का प्रधानमंत्री अपनी आस्था के अनुसार ईश्वर की आराधना भी नहीं कर सकता ?* 

क्या बनाना चाहते हैं देश को आप ? 

*सेक्युलरिज्म की यही परिभाषा गढ़ी है आपने ?* 


एक हिन्दू नेता का टोपी पहनना उतना ही बड़ा ढोंग है, जितना किसी ईसाई का तिलक लगाना। 

लेकिन जो लोग इस ढोंग को भी बर्दाश्त कर लेते हैं, उनसे भी 

*प्रधानमंत्री की शिव आराधना बर्दाश्त नहीं हो रही।*


संविधान की प्रस्तावना में वर्णित 

*"धर्म, आस्था और विश्वास की स्वतंत्रता" का* 

*यही मूल्य है आपकी दृष्टि में ?*

      

व्यक्ति विरोध में अंधे हो चुके मूर्खों की यह टुकड़ी चाह कर भी नहीं समझ पा रही कि 

*मोदी एक व्यक्ति भर हैं,*

*आज नहीं तो कल हार जाएगा* 

*कल कोई और था,*

*कल कोई और आएगा।*

*देश न इंदिरा पर रुका था,* 

*न मोदी पर रुकेगा।*

       

समय को इस बूढ़े से जो करवाना था वह करा चुका। 

*मोदी ने भारतीय राजनीति की दिशा बदल दी है।*

मोदी ने *ईसाई पति की पत्नी से*

*महाकाल मंदिर में रुद्राभिषेक करवाया है.*

मोदी ने *मिश्रित DNA वाले इसाई को हिन्दू बाना धारण करने के लिए मजबूर कर दिया है।*

मोदी ने *ब्राम्हणिक वैदिक के विरोध मे राजनीतिक यात्रा शुरू करनेवाले से शिवार्चन करवाया है। मोदी ने रामभक्तों पर गोली चलवाने वाले के पुत्र से राममंदिर का चक्कर लगवाया है।*

*हिन्दुओं में हिन्दुत्व की चेतना जगानेवाले*


*मोदी के बाद*

*अब वही आएगा*

जो *मोदी से भी बड़ा मोदी होगा।*

       

*"मोदी नाम केवलम"* का 

जाप करने वाले *मूर्ख जन्मान्ध विरोधियों, अब मोदी आये न आये, तुम्हारे दिन कभी नहीं आएंगें।* 


_*अब ऐसी कोई सरकार नहीं आएगी जो घर बैठा कर मलीदा खिलाये!*_

.

💐💐 *भारत बदल चुका है।* 💐💐


*🚩सनातन की चेतना जाग चुकी है।* 💫

🚩🚩🚩🚩🚩

 कृपया अपने पांच मित्रों से शेयर अवश्य करें धन्यवाद।जय सनातन। जय श्री कृष्ण।


खैर अभी भी हिंदू कुम्भकर्णिय निद्रा मे शयन कर रहा है जब कि देखा जाये तो देश मे क्या चल रहा है विधर्मी लोग केवल और केवल हिंदू को ही लक्ष्य बनाते है हिंदू कहता है हिंदू मुस्लि सिख्ख इसाई आपस मे हम सब भाई भाई अन्य धर्मो के आयोजन कार्यक्रम मे हिंदू काफी बड चड कर हिस्सा लेता है बधाइ शुभकामना संदेश ईद इसामसी क्रिसमश डे आदि मे सामिल होता है  

हिंदू अपने त्योहारो मे उनसे आपेक्षा भी नही करता और कहता है वो दूसरे धर्म के है जब आप सामिल होते है उनके त्योहारो पर तो आप भी उनको अपने यहा पूजा पाठ आदि मे बुलाए सामिल करे मूर्ति पूजा कराए आदि क्यो क्या कभी सोचा है नही 

आज देश मे क्या परिस्थिति है खुद देखिए हिंदू अपने आपको हिंदू नही कहता जाति वर्ग समुदाय मे बटा है कितनी भिन्नता है 

इसाई द्वारा हिंदू धर्मांतरण मे प्रोत्साहन 

ब्राम्हण को धर्मांतरण मे 7से 8 लाख रुपया 

क्षत्रिय को धर्मांतरण मे 5 से 6लाख 

पिछड़ा वर्ग को धर्मांतरण मे 3 से 4 

हरिजन धर्मांतरण मे 2से3 

आदिवाशी को 1 से 2 लाख 

आदि तरह तरह के प्रलोभन सुख सुविधा देने कि बात करेंगे 

इसे प्रका मुस्लिम भी कर रहे है विदेशो से काफी अच्छी फंडिग आती है इन सब का उद्देश्य अल्प संख्यक से बहु संख्यक होना भारत मे अपना अधिपत्य लाना आदि है 

अपने धर्म मे अडिग रहे विचलित ना हो हमारे धर्म मे जिनको माने आप उनकी पूजा अर्चना कर सक्ते है प्रति दिन तीत त्योहार है ब्रत उपवाश आदि नदिओ पेड पौधो की भी पूजा की जाती है 

जी हा सत्य सनातन धर्म की जय जय श्री राम 🚩🛕👏

 *"हिजड़ों ने भाषण दिए लिंग-बोध पर,* 

*वेश्याओं ने कविता पढ़ी आत्म-शोध पर"।*

*महिलाओं का दैहिक शोषण करने वाले नेता ने भाषण दिया नारी अस्मिता पर।*

*भ्रष्ट अधिकारियों ने शुचिता और पारदर्शिता पर उद्बोधन दिया विश्वविद्यालय मैं कभी ना पढ़ाने वाले प्रोफेसर कर्म योग पर व्याख्यान दे रहे हैं।*

     असल मे दोष इनका नहीं है। 

*इस देश की प्रजा प्रधानमंत्री को मंदिर में पूजा करते देखने की आदी नहीं है।* 


*इस देश ने एडविना माउंटबेटन की कमर में हाथ डाल कर नाचते प्रधानमंत्री को देखा है।*


इस देश ने 

*मजारों पर चादर चढ़ाते प्रधानमंत्री को देखा है।*

यह जनता *प्रधानमंत्री को*

*पार्टी अध्यक्ष के सामने नतमस्तक होते देखती आयी है। मंदिर में भगवान के समक्ष नतमस्तक प्रधानमंत्री को लोग कैसे सहन करें ?*

     

बिहार के *एक बिना अखबार के पत्रकार मंदिर से निकल कर सूर्य को प्रणाम करते प्रधानमंत्री का उपहास उड़ा रहे हैं।*


एक महान लेखक जिनका सबसे बड़ा प्रशंसक भी उनकी चार किताबों का नाम नहीं जानता, 

*प्रधानमंत्री के भगवा चादर की आलोचना कर रहे हैं।*


एक कवियित्री जो अपनी कविता से अधिक मंच पर चढ़ने के पूर्व सवा घण्टे तक मेकप करने के लिए जानी जाती हैं, *प्रधानमंत्री के पहाड़ी परिधान की आलोचना कर रही हैं।*


भारत के इतिहास में आलोचना कभी इतनी निर्लज्ज नहीं रही, ना ही बुद्धिजीविता इतनी लज्जाहीन हुई कि 

*गांधीवाद के स्वघोषित योद्धा भी*

*बंगाल की हिंसा के लिए ममता बनर्जी का समर्थन करें।*


क्या कोई व्यक्ति इतना हताश हो सकता है कि किसी की पूजा की आलोचना करे ? 

*क्या इस देश का प्रधानमंत्री अपनी आस्था के अनुसार ईश्वर की आराधना भी नहीं कर सकता ?* 

क्या बनाना चाहते हैं देश को आप ? 

*सेक्युलरिज्म की यही परिभाषा गढ़ी है आपने ?* 


एक हिन्दू नेता का टोपी पहनना उतना ही बड़ा ढोंग है, जितना किसी ईसाई का तिलक लगाना। 

लेकिन जो लोग इस ढोंग को भी बर्दाश्त कर लेते हैं, उनसे भी 

*प्रधानमंत्री की शिव आराधना बर्दाश्त नहीं हो रही।*


संविधान की प्रस्तावना में वर्णित 

*"धर्म, आस्था और विश्वास की स्वतंत्रता" का* 

*यही मूल्य है आपकी दृष्टि में ?*

      

व्यक्ति विरोध में अंधे हो चुके मूर्खों की यह टुकड़ी चाह कर भी नहीं समझ पा रही कि 

*मोदी एक व्यक्ति भर हैं,*

*आज नहीं तो कल हार जाएगा* 

*कल कोई और था,*

*कल कोई और आएगा।*

*देश न इंदिरा पर रुका था,* 

*न मोदी पर रुकेगा।*

       

समय को इस बूढ़े से जो करवाना था वह करा चुका। 

*मोदी ने भारतीय राजनीति की दिशा बदल दी है।*

मोदी ने *ईसाई पति की पत्नी से*

*महाकाल मंदिर में रुद्राभिषेक करवाया है.*

मोदी ने *मिश्रित DNA वाले इसाई को हिन्दू बाना धारण करने के लिए मजबूर कर दिया है।*

मोदी ने *ब्राम्हणिक वैदिक के विरोध मे राजनीतिक यात्रा शुरू करनेवाले से शिवार्चन करवाया है। मोदी ने रामभक्तों पर गोली चलवाने वाले के पुत्र से राममंदिर का चक्कर लगवाया है।*

*हिन्दुओं में हिन्दुत्व की चेतना जगानेवाले*


*मोदी के बाद*

*अब वही आएगा*

जो *मोदी से भी बड़ा मोदी होगा।*

       

*"मोदी नाम केवलम"* का 

जाप करने वाले *मूर्ख जन्मान्ध विरोधियों, अब मोदी आये न आये, तुम्हारे दिन कभी नहीं आएंगें।* 


_*अब ऐसी कोई सरकार नहीं आएगी जो घर बैठा कर मलीदा खिलाये!*_

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💐💐 *भारत बदल चुका है।* 💐💐


*🚩सनातन की चेतना जाग चुकी है।* 💫

🚩🚩🚩🚩🚩

 कृपया अपने पांच मित्रों से शेयर अवश्य करें धन्यवाद।जय सनातन। जय श्री कृष्ण।


खैर अभी भी हिंदू कुम्भकर्णिय निद्रा मे शयन कर रहा है जब कि देखा जाये तो देश मे क्या चल रहा है विधर्मी लोग केवल और केवल हिंदू को ही लक्ष्य बनाते है हिंदू कहता है हिंदू मुस्लि सिख्ख इसाई आपस मे हम सब भाई भाई अन्य धर्मो के आयोजन कार्यक्रम मे हिंदू काफी बड चड कर हिस्सा लेता है बधाइ शुभकामना संदेश ईद इसामसी क्रिसमश डे आदि मे सामिल होता है  

हिंदू अपने त्योहारो मे उनसे आपेक्षा भी नही करता और कहता है वो दूसरे धर्म के है जब आप सामिल होते है उनके त्योहारो पर तो आप भी उनको अपने यहा पूजा पाठ आदि मे बुलाए सामिल करे मूर्ति पूजा कराए आदि क्यो क्या कभी सोचा है नही 

आज देश मे क्या परिस्थिति है खुद देखिए हिंदू अपने आपको हिंदू नही कहता जाति वर्ग समुदाय मे बटा है कितनी भिन्नता है 

इसाई द्वारा हिंदू धर्मांतरण मे प्रोत्साहन 

ब्राम्हण को धर्मांतरण मे 7से 8 लाख रुपया 

क्षत्रिय को धर्मांतरण मे 5 से 6लाख 

पिछड़ा वर्ग को धर्मांतरण मे 3 से 4 

हरिजन धर्मांतरण मे 2से3 

आदिवाशी को 1 से 2 लाख 

आदि तरह तरह के प्रलोभन सुख सुविधा देने कि बात करेंगे 

इसे प्रका मुस्लिम भी कर रहे है विदेशो से काफी अच्छी फंडिग आती है इन सब का उद्देश्य अल्प संख्यक से बहु संख्यक होना भारत मे अपना अधिपत्य लाना आदि है 

अपने धर्म मे अडिग रहे विचलित ना हो हमारे धर्म मे जिनको माने आप उनकी पूजा अर्चना कर सक्ते है प्रति दिन तीत त्योहार है ब्रत उपवाश आदि नदिओ पेड पौधो की भी पूजा की जाती है 

जी हा सत्य सनातन धर्म की जय जय श्री राम 🚩🛕👏

20220910

🌸पितृ श्राद्ध आरम्भ*🌸


*🌸विशेष - पितरों के लिए महत्वपूर्ण जानकारी आप सभी के बीच रखने का प्रयास कर रहा हूँ ।इसे पूरा अवश्य पढ़े क्योंकि पढ़ने से भी पितरों को शांति मिलती है*


पूर्णिमा श्राद्ध -10/9/2022,शनिवार


1 प्रतिपदा श्राद्ध - 11/9/2022 रविवार

2 द्वितीया श्राद्ध - 12/9/2022 सोमवार 

3 तृतीया श्राद्ध- 13/9/2022 मंगलवार

4 चतुर्थी श्राद्ध-14/9/2022 बुद्धवार

5 पंचमी श्राद्ध- 15/9/2022 गुरुवार

6 षष्ठी श्राद्ध-16/9/2022 शुक्रवार

7 सप्तमी श्राद्ध- 17/9/2022 शनिवार 

8 अष्टमी श्राद्ध- 18/9/2022 रविवार

9 नवमी श्राद्ध- 19/9/2022 सोमवार

10 दशमी श्राद्ध- 20/9/2022 मंगलवार

11 एकादशी श्राद्ध- 21/9/2022 बुद्धवार

12 द्वादशी श्राद्ध- 22/9/2022 गुरुवार

13 त्रयोदशी श्राद्ध- 23/9 /2022 शुक्रवार

14 चतुर्दशी श्राद्ध- 24/9/ 2022 शनिवार

15 सर्वपितृ अमावस श्राद्ध 25/9/2022 रविवार


*🌸 घर के प्रेत या पितर रुष्ट होने के लक्षण और उपाय*

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बहुत जिज्ञासा होती है आखिर ये पितृदोष है क्या? पितृ -दोष शांति के सरल उपाय पितृ या पितृ गण कौन हैं ?आपकी जिज्ञासा को शांत करती विस्तृत प्रस्तुति।


पितृ गण हमारे पूर्वज हैं जिनका ऋण हमारे ऊपर है ,क्योंकि उन्होंने कोई ना कोई उपकार हमारे जीवन के लिए किया है मनुष्य लोक से ऊपर पितृ लोक है,पितृ लोक के ऊपर सूर्य लोक है एवं इस से भी ऊपर स्वर्ग लोक है।


 आत्मा जब अपने शरीर को त्याग कर सबसे पहले ऊपर उठती है तो वह पितृ लोक में जाती है ,वहाँ हमारे पूर्वज मिलते हैं अगर उस आत्मा के अच्छे पुण्य हैं तो ये हमारे पूर्वज भी उसको प्रणाम कर अपने को धन्य मानते हैं की इस अमुक आत्मा ने हमारे कुल में जन्म लेकर हमें धन्य किया इसके आगे आत्मा अपने पुण्य के आधार पर सूर्य लोक की तरफ बढती है।


वहाँ से आगे ,यदि और अधिक पुण्य हैं, तो आत्मा सूर्य लोक को भेज कर स्वर्ग लोक की तरफ चली जाती है,लेकिन करोड़ों में एक आध आत्मा ही ऐसी होती है ,जो परमात्मा में समाहित होती है जिसे दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता मनुष्य लोक एवं पितृ लोक में बहुत सारी आत्माएं पुनः अपनी इच्छा वश ,मोह वश अपने कुल में जन्म लेती हैं।


*🌸 पितृ दोष क्या होता है* ??

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 हमारे ये ही पूर्वज सूक्ष्म व्यापक शरीर से अपने परिवार को जब देखते हैं ,और महसूस करते हैं कि हमारे परिवार के लोग ना तो हमारे प्रति श्रद्धा रखते हैं और न ही इन्हें कोई प्यार या स्नेह है और ना ही किसी भी अवसर पर ये हमको याद करते हैं,ना ही अपने ऋण चुकाने का प्रयास ही करते हैं तो ये आत्माएं दुखी होकर अपने वंशजों को श्राप दे देती हैं,जिसे "पितृ- दोष" कहा जाता है।


पितृ दोष एक अदृश्य बाधा है .ये बाधा पितरों द्वारा रुष्ट होने के कारण होती है पितरों के रुष्ट होने के बहुत से कारण हो सकते हैं ,आपके आचरण से,किसी परिजन द्वारा की गयी गलती से ,श्राद्ध आदि कर्म ना करने से ,अंत्येष्टि कर्म आदि में हुई किसी त्रुटि के कारण भी हो सकता है।


इसके अलावा मानसिक अवसाद,व्यापार में नुक्सान ,परिश्रम के अनुसार फल न मिलना , विवाह या वैवाहिक जीवन में समस्याएं,कैरिअर में समस्याएं या संक्षिप्त में कहें तो जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति और उसके परिवार को बाधाओं का सामना करना पड़ता है पितृ दोष होने पर अनुकूल ग्रहों की स्थिति ,गोचर ,दशाएं होने पर भी शुभ फल नहीं मिल पाते,कितना भी पूजा पाठ ,देवी ,देवताओं की अर्चना की जाए ,उसका शुभ फल नहीं मिल पाता।


*🌸पितृ दोष दो प्रकार से प्रभावित करता है*


1.अधोगति वाले पितरों के कारण

2.उर्ध्वगति वाले पितरों के कारण


अधोगति वाले पितरों के दोषों का मुख्य कारण परिजनों द्वारा किया गया गलत आचरण,की अतृप्त इच्छाएं ,जायदाद के प्रति मोह और उसका गलत लोगों द्वारा उपभोग होने पर,विवाहादिमें परिजनों द्वारा गलत निर्णय .परिवार के किसी प्रियजन को अकारण कष्ट देने पर पितर क्रुद्ध हो जाते हैं ,परिवार जनों को श्राप दे देते हैं और अपनी शक्ति से नकारात्मक फल प्रदान करते हैं।


उर्ध्व गति वाले पितर सामान्यतः पितृदोष उत्पन्न नहीं करते ,परन्तु उनका किसी भी रूप में अपमान होने पर अथवा परिवार के पारंपरिक रीति-रिवाजों का निर्वहन नहीं करने पर वह पितृदोष उत्पन्न करते हैं।


इनके द्वारा उत्पन्न पितृदोष से व्यक्ति की भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति बिलकुल बाधित हो जाती है ,फिर चाहे कितने भी प्रयास क्यों ना किये जाएँ ,कितने भी पूजा पाठ क्यों ना किये जाएँ,उनका कोई भी कार्य ये पितृदोष सफल नहीं होने देता। पितृ दोष निवारण के लिए सबसे पहले ये जानना ज़रूरी होता है कि किस गृह के कारण और किस प्रकार का पितृ दोष उत्पन्न हो रहा है ?


जन्म पत्रिका और पितृ दोष जन्म पत्रिका में लग्न ,पंचम ,अष्टम और द्वादश भाव से पितृदोष का विचार किया जाता है। पितृ दोष में ग्रहों में मुख्य रूप से सूर्य, चन्द्रमा, गुरु, शनि और राहू -केतु की स्थितियों से पितृ दोष का विचार किया जाता है।


इनमें से भी गुरु ,शनि और राहु की भूमिका प्रत्येक पितृ दोष में महत्वपूर्ण होती है इनमें सूर्य से पिता या पितामह , चन्द्रमा से माता या मातामह ,मंगल से भ्राता या भगिनी और शुक्र से पत्नी का विचार किया जाता है।


अधिकाँश लोगों की जन्म पत्रिका में मुख्य रूप से क्योंकि गुरु ,शनि और राहु से पीड़ित होने पर ही पितृ दोष उत्पन्न होता है ,इसलिए विभिन्न उपायों को करने के साथ साथ व्यक्ति यदि पंचमुखी ,सातमुखी और आठ मुखी रुद्राक्ष भी धारण कर ले , तो पितृ दोष का निवारण शीघ्र हो जाता है।


पितृ दोष निवारण के लिए इन रुद्राक्षों को धारण करने के अतिरिक्त इन ग्रहों के अन्य उपाय जैसे मंत्र जप और स्तोत्रों का पाठ करना भी श्रेष्ठ होता है।


*🌸 विभिन्न ऋण और पितृ दोष*

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हमारे ऊपर मुख्य रूप से 5 ऋण होते हैं जिनका कर्म न करने(ऋण न चुकाने पर ) हमें निश्चित रूप से श्राप मिलता है ,ये ऋण हैं : मातृ ऋण ,पितृ ऋण ,मनुष्य ऋण ,देव ऋण और ऋषि ऋण।


*🌸 मातृ ऋण*

👉 माता एवं माता पक्ष के सभी लोग जिनमेंमा,मामी ,नाना ,नानी ,मौसा ,मौसी और इनके तीन पीढ़ी के पूर्वज होते हैं ,क्योंकि माँ का स्थान परमात्मा से भी ऊंचा माना गया है अतः यदि माता के प्रति कोई गलत शब्द बोलता है ,अथवा माता के पक्ष को कोई कष्ट देता रहता है,तो इसके फलस्वरूप उसको नाना प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं। इतना ही नहीं ,इसके बाद भी कलह और कष्टों का दौर भी परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चलता ही रहता है।


*🌸पितृ ऋण*

👉 पिता पक्ष के लोगों जैसे बाबा ,ताऊ ,चाचा, दादा-दादी और इसके पूर्व की तीन पीढ़ी का श्राप हमारे जीवन को प्रभावित करता है पिता हमें आकाश की तरह छत्रछाया देता है,हमारा जिंदगी भर पालन -पोषण करता है ,और अंतिम समय तक हमारे सारे दुखों को खुद झेलता रहता है।


पर आज के के इस भौतिक युग में पिता का सम्मान क्या नयी पीढ़ी कर रही है ?पितृ -भक्ति करना मनुष्य का धर्म है ,इस धर्म का पालन न करने पर उनका श्राप नयी पीढ़ी को झेलना ही पड़ता है ,इसमें घर में आर्थिक अभाव,दरिद्रता ,संतानहीनता ,संतान को विभिन्न प्रकार के कष्ट आना या संतान अपंग रह जाने से जीवन भर कष्ट की प्राप्ति आदि।


*🌸 देव ऋण*

 👉 माता-पिता प्रथम देवता हैं,जिसके कारण भगवान गणेश महान बने |इसके बाद हमारे इष्ट भगवान शंकर जी ,दुर्गा माँ ,भगवान विष्णु आदि आते हैं ,जिनको हमारा कुल मानता आ रहा है ,हमारे पूर्वज भी भी अपने अपने कुल देवताओं को मानते थे , लेकिन नयी पीढ़ी ने बिलकुल छोड़ दिया है इसी कारण भगवान /कुलदेवी /कुलदेवता उन्हें नाना प्रकार के कष्ट /श्राप देकर उन्हें अपनी उपस्थिति का आभास कराते हैं।


*🌸ऋषि ऋण*

 👉 जिस ऋषि के गोत्र में पैदा हुए ,वंश वृद्धि की ,उन ऋषियों का नाम अपने नाम के साथ जोड़ने में नयी पीढ़ी कतराती है ,उनके ऋषि तर्पण आदि नहीं करती है इस कारण उनके घरों में कोई मांगलिक कार्य नहीं होते हैं,इसलिए उनका श्राप पीडी दर पीढ़ी प्राप्त होता रहता है।


*🌸 मनुष्य ऋण*

 👉 माता -पिता के अतिरिक्त जिन अन्य मनुष्यों ने हमें प्यार दिया ,दुलार दिया ,हमारा ख्याल रखा ,समय समय पर मदद की गाय आदि पशुओं का दूध पिया जिन अनेक मनुष्यों ,पशुओं ,पक्षियों ने हमारी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मदद की ,उनका ऋण भी हमारे ऊपर हो गया।


लेकिन लोग आजकल गरीब ,बेबस ,लाचार लोगों की धन संपत्ति हरण करके अपने को ज्यादा गौरवान्वित महसूस करते हैं। इसी कारण देखने में आया है कि ऐसे लोगों का पूरा परिवार जीवन भर नहीं बस पाता है,वंश हीनता ,संतानों का गलत संगति में पड़ जाना,परिवार के सदस्यों का आपस में सामंजस्य न बन पाना ,परिवार कि सदस्यों का किसी असाध्य रोग से ग्रस्त रहना इत्यादि दोष उस परिवार में उत्पन्न हो जाते हैं।


ऐसे परिवार को पितृ दोष युक्त या शापित परिवार कहा जाता है रामायण में श्रवण कुमार के माता -पिता के श्राप के कारण दशरथ के परिवार को हमेशा कष्ट झेलना पड़ा,ये जग -ज़ाहिर है इसलिए परिवार कि सर्वोन्नती के पितृ दोषों का निवारण करना बहुत आवश्यक है।


*🌸 पितृों के रूष्ट होने के लक्षण*

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पितरों के रुष्ट होने के कुछ असामान्‍य लक्षण जो मैंने अपने निजी अनुभव के आधार एकत्रित किए है वे क्रमशः इस प्रकार हो सकते है।


*🌸 खाने में से बाल निकलना*

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अक्सर खाना खाते समय यदि आपके भोजन में से बाल निकलता है तो इसे नजरअंदाज न करें


बहुत बार परिवार के किसी एक ही सदस्य के साथ होता है कि उसके खाने में से बाल निकलता है, यह बाल कहां से आया इसका कुछ पता नहीं चलता। यहां तक कि वह व्यक्ति यदि रेस्टोरेंट आदि में भी जाए तो वहां पर भी उसके ही खाने में से बाल निकलता है और परिवार के लोग उसे ही दोषी मानते हुए उसका मजाक तक उडाते है।


*🌸 बदबू या दुर्गंध*

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कुछ लोगों की समस्या रहती है कि उनके घर से दुर्गंध आती है, यह भी नहीं पता चलता कि दुर्गंध कहां से आ रही है। कई बार इस दुर्गंध के इतने अभ्‍यस्‍त हो जाते है कि उन्हें यह दुर्गंध महसूस भी नहीं होती लेकिन बाहर के लोग उन्हें बताते हैं कि ऐसा हो रहा है अब जबकि परेशानी का स्रोत पता ना चले तो उसका इलाज कैसे संभव है


*🌸 पूर्वजों का स्वप्न में बार बार आना*

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मेरे एक मित्र ने बताया कि उनका अपने पिता के साथ झगड़ा हो गया है और वह झगड़ा काफी सालों तक चला पिता ने मरते समय अपने पुत्र से मिलने की इच्छा जाहिर की परंतु पुत्र मिलने नहीं आया, पिता का स्वर्गवास हो गया हुआ। कुछ समय पश्चात मेरे मित्र मेरे पास आते हैं और कहते हैं कि उन्होंने अपने पिता को बिना कपड़ों के देखा है ऐसा स्‍वप्‍न पहले भी कई बार आ चुका है।


*🌸 शुभ कार्य में अड़चन*

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कभी-कभी ऐसा होता है कि आप कोई त्यौहार मना रहे हैं या कोई उत्सव आपके घर पर हो रहा है ठीक उसी समय पर कुछ ना कुछ ऐसा घटित हो जाता है कि जिससे रंग में भंग डल जाता है। ऐसी घटना घटित होती है कि खुशी का माहौल बदल जाता है। मेरे कहने का तात्‍पर्य है कि शुभ अवसर पर कुछ अशुभ घटित होना पितरों की असंतुष्टि का संकेत है।


*🌸 घर के किसी एक सदस्य का कुंवारा रह जाना*

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बहुत बार आपने अपने आसपास या फिर रिश्‍तेदारी में देखा होगा या अनुभव किया होगा कि बहुत अच्‍छा युवक है, कहीं कोई कमी नहीं है लेकिन फिर भी शादी नहीं हो रही है। एक लंबी उम्र निकल जाने के पश्चात भी शादी नहीं हो पाना कोई अच्‍छा संकेत नहीं है। यदि घर में पहले ही किसी कुंवारे व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है तो उपरोक्त स्थिति बनने के आसार बढ़ जाते हैं। इस समस्‍या के कारण का भी पता नहीं चलता।


*🌸मकान या प्रॉपर्टी की खरीद फरोख्त में दिक्कत आना*

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आपने देखा होगा कि कि एक बहुत अच्छी प्रॉपर्टी, मकान, दुकान या जमीन का एक हिस्सा किन्ही कारणों से बिक नहीं पा रहा यदि कोई खरीदार मिलता भी है तो बात नहीं बनती। यदि कोई खरीदार मिल भी जाता है और सब कुछ हो जाता है तो अंतिम समय पर सौदा कैंसिल हो जाता है। इस तरह की स्थिति यदि लंबे समय से चली आ रही है तो यह मान लेना चाहिए कि इसके पीछे अवश्य ही कोई ऐसी कोई अतृप्‍त आत्‍मा है जिसका उस भूमि या जमीन के टुकड़े से कोई संबंध रहा हो।


*🌸 संतान ना होना*

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मेडिकल रिपोर्ट में सब कुछ सामान्य होने के बावजूद संतान सुख से वंचित है हालांकि आपके पूर्वजों का इस से संबंध होना लाजमी नहीं है परंतु ऐसा होना बहुत हद तक संभव है जो भूमि किसी निसंतान व्यक्ति से खरीदी गई हो वह भूमि अपने नए मालिक को संतानहीन बना देती है


उपरोक्त सभी प्रकार की घटनाएं या समस्याएं आप में से बहुत से लोगों ने अनुभव की होंगी इसके निवारण के लिए लोग समय और पैसा नष्ट कर देते हैं परंतु समस्या का समाधान नहीं हो पाता। क्या पता हमारे इस लेख से ऐसे ही किसी पीड़ित व्यक्ति को कुछ प्रेरणा मिले इसलिए निवारण भी स्पष्ट कर रहा हूं।


*🌸पितृ दोष कि शांति के उपाय*

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1👉 सामान्य उपायों में षोडश पिंड दान ,सर्प पूजा ,ब्राह्मण को गौ -दान ,कन्या -दान,कुआं ,बावड़ी ,तालाब आदि बनवाना ,मंदिर प्रांगण में पीपल ,बड़(बरगद) आदि देव वृक्ष लगवाना एवं विष्णु मन्त्रों का जाप आदि करना ,प्रेत श्राप को दूर करने के लिए श्रीमद्द्भागवत का पाठ करना चाहिए।


2👉 वेदों और पुराणों में पितरों की संतुष्टि के लिए मंत्र ,स्तोत्र एवं सूक्तों का वर्णन है जिसके नित्य पठन से किसी भी प्रकार की पितृ बाधा क्यों ना हो ,शांत हो जाती है अगर नित्य पठन संभव ना हो , तो कम से कम प्रत्येक माह की अमावस्या और आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या अर्थात पितृपक्ष में अवश्य करना चाहिए।

वैसे तो कुंडली में किस प्रकार का पितृ दोष है उस पितृ दोष के प्रकार के हिसाब से पितृदोष शांति करवाना अच्छा होता है।


3👉 भगवान भोलेनाथ की तस्वीर या प्रतिमा के समक्ष बैठ कर या घर में ही भगवान भोलेनाथ का ध्यान कर निम्न मंत्र की एक माला नित्य जाप करने से समस्त प्रकार के पितृ- दोष संकट बाधा आदि शांत होकर शुभत्व की प्राप्ति होती है |मंत्र जाप प्रातः या सायंकाल कभी भी कर सकते हैं :


मंत्र : "ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय च धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात।


4👉 अमावस्या को पितरों के निमित्त पवित्रता पूर्वक बनाया गया भोजन तथा चावल बूरा ,घी एवं एक रोटी गाय को खिलाने से पितृ दोष शांत होता है।


5👉 अपने माता -पिता ,बुजुर्गों का सम्मान,सभी स्त्री कुल का आदर /सम्मान करने और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करते रहने से पितर हमेशा प्रसन्न रहते हैं।



6👉 पितृ दोष जनित संतान कष्ट को दूर करने के लिए "हरिवंश पुराण " का श्रवण करें या स्वयं नियमित रूप से पाठ करें।


7👉 प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती या सुन्दर काण्ड का पाठ करने से भी इस दोष में कमी आती है।


8👉 सूर्य पिता है अतः ताम्बे के लोटे में जल भर कर ,उसमें लाल फूल ,लाल चन्दन का चूरा ,रोली आदि डाल कर सूर्य देव को अर्घ्य देकर ११ बार "ॐ घृणि सूर्याय नमः " मंत्र का जाप करने से पितरों की प्रसन्नता एवं उनकी ऊर्ध्व गति होती है।


9👉 अमावस्या वाले दिन अवश्य अपने पूर्वजों के नाम दुग्ध ,चीनी ,सफ़ेद कपडा ,दक्षिणा आदि किसी मंदिर में अथवा किसी योग्य ब्राह्मण को दान करना चाहिए।


10👉 पितृ पक्ष में पीपल की परिक्रमा अवश्य करें अगर १०८ परिक्रमा लगाई जाएँ ,तो पितृ दोष अवश्य दूर होगा।


*🌸विशिष्ट उपाय* :


1👉 किसी मंदिर के परिसर में पीपल अथवा बड़ का वृक्ष लगाएं और रोज़ उसमें जल डालें ,उसकी देख -भाल करें ,जैसे-जैसे वृक्ष फलता -फूलता जाएगा,पितृ -दोष दूर होता जाएगा,क्योकि इन वृक्षों पर ही सारे देवी -देवता ,इतर -योनियाँ ,पितर आदि निवास करते हैं।


2👉 यदि आपने किसी का हक छीना है,या किसी मजबूर व्यक्ति की धन संपत्ति का हरण किया है,तो उसका हक या संपत्ति उसको अवश्य लौटा दें।


3👉 पितृ दोष से पीड़ित व्यक्ति को किसी भी एक अमावस्या से लेकर दूसरी अमावस्या तक अर्थात एक माह तक किसी पीपल के वृक्ष के नीचे सूर्योदय काल में एक शुद्ध घी का दीपक लगाना चाहिए,ये क्रम टूटना नहीं चाहिए।


*एक माह बीतने पर जो अमावस्या आये उस दिन एक प्रयोग और करें*


इसके लिए किसी देसी गाय या दूध देने वाली गाय का थोडा सा गौ -मूत्र प्राप्त करें उसे थोड़े जल में मिलाकर इस जल को पीपल वृक्ष की जड़ों में डाल दें इसके बाद पीपल वृक्ष के नीचे ५ अगरबत्ती ,एक नारियल और शुद्ध घी का दीपक लगाकर अपने पूर्वजों से श्रद्धा पूर्वक अपने कल्याण की कामना करें,और घर आकर उसी दिन दोपहर में कुछ गरीबों को भोजन करा दें ऐसा करने पर पितृ दोष शांत हो जायेगा।


4👉 घर में कुआं हो या पीने का पानी रखने की जगह हो ,उस जगह की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें,क्योंके ये पितृ स्थान माना जाता है इसके अलावा पशुओं के लिए पीने का पानी भरवाने तथा प्याऊ लगवाने अथवा आवारा कुत्तों को जलेबी खिलाने से भी पितृ दोष शांत होता है।


5 👉 अगर पितृ दोष के कारण अत्यधिक परेशानी हो,संतान हानि हो या संतान को कष्ट हो तो किसी शुभ समय अपने पितरों को प्रणाम कर उनसे प्रण होने की प्रार्थना करें और अपने द्वारा जाने-अनजाने में किये गए अपराध / उपेक्षा के लिए क्षमा याचना करें ,फिर घर अथवा शिवालय में पितृ गायत्री मंत्र का सवा लाख विधि से जाप कराएं जाप के उपरांत दशांश हवन के बाद संकल्प ले की इसका पूर्ण फल पितरों को प्राप्त हो ऐसा करने से पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं ,क्योंके उनकी मुक्ति का मार्ग आपने प्रशस्त किया होता है।


6👉 पितृ दोष की शांति हेतु ये उपाय बहुत ही अनुभूत और अचूक फल देने वाला देखा गया है,वोह ये कि- किसी गरीब की कन्या के विवाह में गुप्त रूप से अथवा प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक सहयोग करना |(लेकिन ये सहयोग पूरे दिल से होना चाहिए ,केवल दिखावे या अपनी बढ़ाई कराने के लिए नहीं )|इस से पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं ,क्योंकि इसके परिणाम स्वरुप मिलने वाले पुण्य फल से पितरों को बल और तेज़ मिलता है ,जिस से वह ऊर्ध्व लोकों की ओरगति करते हुए पुण्य लोकों को प्राप्त होते हैं.|


7👉 अगर किसी विशेष कामना को लेकर किसी परिजन की आत्मा पितृ दोष उत्पन्न करती है तो तो ऐसी स्थिति में मोह को त्याग कर उसकी सदगति के लिए "गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र " का पाठ करना चाहिए।


8👉 पितृ दोष दूर करने का अत्यंत सरल उपाय : इसके लिए सम्बंधित व्यक्ति को अपने घर के वायव्य कोण (N -W )में नित्य सरसों का तेल में बराबर मात्रा में अगर का तेल मिलाकर दीपक पूरे पितृ पक्ष में नित्य लगाना चाहिए+दिया पीतल का हो तो ज्यादा अच्छा है ,दीपक कम से कम 10 मिनट नित्य जलना आवश्यक है।


इन उपायों के अतिरिक्त वर्ष की प्रत्येक अमावस्या को दोपहर के समय गूगल की धूनी पूरे घर में सब जगह घुमाएं ,शाम को आंध्र होने के बाद पितरों के निमित्त शुद्ध भोजन बनाकर एक दोने में साड़ी सामग्री रख कर किसी बबूल के वृक्ष अथवा पीपल या बड़ किजद में रख कर आ जाएँ,पीछे मुड़कर न देखें। नित्य प्रति घर में देसी कपूर जाया करें। ये कुछ ऐसे उपाय हैं,जो सरल भी हैं और प्रभावी भी,और हर कोई सरलता से इन्हें कर पितृ दोषों से मुक्ति पा सकता है। लेकिन किसी भी प्रयोग की सफलता आपकी पितरों के प्रति श्रद्धा के ऊपर निर्भर करती है।


*पितृदोष निवारण के लिए करें विशेष उपाय* ( *नारायणबलि नागबलि*)

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अक्सर हम देखते हैं कि कई लोगों के जीवन में परेशानियां समाप्त होने का नाम ही नहीं लेती। वे चाहे जितना भी समय और धन खर्च कर लें लेकिन काम सफल नहीं होता। ऐसे लोगों की कुंडली में निश्चित रूप से पितृदोष होता है।


यह दोषी पीढ़ी दर पीढ़ी कष्ट पहुंचाता रहता है, जब तक कि इसका विधि-विधानपूर्वक निवारण न किया जाए। आने वाली पीढ़ीयों को भी कष्ट देता है। इस दोष के निवारण के लिए कुछ विशेष दिन और समय तय हैं जिनमें इसका पूर्ण निवारण होता है। श्राद्ध पक्ष यही अवसर है जब पितृदोष से मुक्ति पाई जा सकती है। इस दोष के निवारण के लिए शास्त्रों में नारायणबलि का विधान बताया गया है। इसी तरह नागबलि भी होती है।


*क्या है नारायणबलि और नागबलि*

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नारायणबलि और नागबलि दोनों विधि मनुष्य की अपूर्ण इच्छाओं और अपूर्ण कामनाओं की पूर्ति के लिए की जाती है। इसलिए दोनों को काम्य कहा जाता है। नारायणबलि और नागबलि दो अलग-अलग विधियां हैं। नारायणबलि का मुख्य उद्देश्य पितृदोष निवारण करना है और नागबलि का उद्देश्य सर्प या नाग की हत्या के दोष का निवारण करना है। इनमें से कोई भी एक विधि करने से उद्देश्य पूरा नहीं होता इसलिए दोनों को एक साथ ही संपन्न करना पड़ता है।


*इन कारणों से की जाती है नारायणबलि पूजा*


जिस परिवार के किसी सदस्य या पूर्वज का ठीक प्रकार से अंतिम संस्कार, पिंडदान और तर्पण नहीं हुआ हो उनकी आगामी पीढि़यों में पितृदोष उत्पन्न होता है। ऐसे व्यक्तियों का संपूर्ण जीवन कष्टमय रहता है, जब तक कि पितरों के निमित्त नारायणबलि विधान न किया जाए।प्रेतयोनी से होने वाली पीड़ा दूर करने के लिए नारायणबलि की जाती है।परिवार के किसी सदस्य की आकस्मिक मृत्यु हुई हो। आत्महत्या, पानी में डूबने से, आग में जलने से, दुर्घटना में मृत्यु होने से ऐसा दोष उत्पन्न होता है।


*क्यों की जाती है यह पूजा* ...?

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शास्त्रों में पितृदोष निवारण के लिए नारायणबलि-नागबलि कर्म करने का विधान है। यह कर्म किस प्रकार और कौन कर सकता है इसकी पूर्ण जानकारी होना भी जरूरी है। यह कर्म प्रत्येक वह व्यक्ति कर सकता है जो अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता है। जिन जातकों के माता-पिता जीवित हैं वे भी यह विधान कर सकते हैं।संतान प्राप्ति, वंश वृद्धि, कर्ज मुक्ति, कार्यों में आ रही बाधाओं के निवारण के लिए यह कर्म पत्नी सहित करना चाहिए। यदि पत्नी जीवित न हो तो कुल के उद्धार के लिए पत्नी के बिना भी यह कर्म किया जा सकता है।यदि पत्नी गर्भवती हो तो गर्भ धारण से पांचवें महीने तक यह कर्म किया जा सकता है। घर में कोई भी मांगलिक कार्य हो तो ये कर्म एक साल तक नहीं किए जा सकते हैं। माता-पिता की मृत्यु होने पर भी एक साल तक यह कर्म करना निषिद्ध माना गया है।


*कब नहीं की जा सकती है नारायणबलि नागबलि*

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नारायणबलि गुरु, शुक्र के अस्त होने पर नहीं किए जाने चाहिए। लेकिन प्रमुख ग्रंथ निर्णण सिंधु के मतानुसार इस कर्म के लिए केवल नक्षत्रों के गुण व दोष देखना ही उचित है। नारायणबलि कर्म के लिए धनिष्ठा पंचक और त्रिपाद नक्षत्र को निषिद्ध माना गया है।धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरण, शततारका, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद एवं रेवती, इन साढ़े चार नक्षत्रों को धनिष्ठा पंचक कहा जाता है। कृतिका, पुनर्वसु, विशाखा, उत्तराषाढ़ा और उत्तराभाद्रपद ये छह नक्षत्र त्रिपाद नक्षत्र माने गए हैं। इनके अलावा सभी समय यह कर्म किया जा सकता है।


*पितृपक्ष सर्वाधिक श्रेष्ठ समय*

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नारायणबलि- नागबलि के लिए पितृपक्ष सर्वाधिक श्रेष्ठ समय बताया गया है। इसमें किसी योग्य पुरोहित से समय निकलवाकर यह कर्म करवाना चाहिए। यह कर्म गंगा तट अथवा अन्य किसी नदी सरोवर के किनारे में भी संपन्न कराया जाता है। संपूर्ण पूजा तीन दिनों की होती है।

संकलित

*श्री पित्रलोक अधीश्वर अर्यमा पित्रराजाय नमः*

🌸🌸🌸🌸🌸🌸

*एक विशेष उपाय*



पितृ पक्ष में प्रतिदिन दक्षिण दिशा में मुंह कर के दिन में देढ़ बजे के पहले कंडा गर्म कर के 

उस पर गुड़ घी की 5-7 आहुतियां सर्व पितरेभ्यो स्वधा

या पुरखों के नाम से छोडे बाद में सीधी हथेली में जल ले कर धूप पर तीन बार घुमाकर अंगूठे से जमीन पर छोड़ें

जिन पुरखों का गया श्राद्ध हो चूका हो उनके लिए भी किया जा सकता है

शास्त्रों में कोई मनाही नहीं है

भ्रम में न रहे

किसी को भोजन पर आमंत्रित करने से कोई कैसे नाराज हो सकता है


आप अपने सभी दिवंगत संबंधियों नातेदारों रिश्ते दालों ननिहाल पक्ष दादा दादी का परिवार सहित अपने दिवंगत मित्र मंडली सहित अपने दिवंगत पालतू पशु पक्षियों सहित देश पर शहीद जवानों को भी आमंत्रित कर उनसे आपका आतिथ्य ग्रहण करने की प्रार्थना कर सकते हैं

कयी लोग अकाल मृत्यु मर जाते हैं आप उनसे भी निवेदन कर सकते हैं

अभी कयी गोवंश गायों की लिंपी वायरस बिमारी से अकाल मृत्यु हुई है आप उन्हें भी आमंत्रित कर उनकी आत्म शांति के लिए प्रार्थना कर सकते हैं

ये एक नया आध्यात्मिक अनुभव होगा

जो कर सकते हैं अवश्य ही करें

🙏🕉️


🌞 *पितृपक्ष सोलह श्राद्ध के समय एवं नियमों की रूपरेखा-----*🌞


०१)10/09/22- शनिवार- पूर्णिमा 

०२) 11/09/22- रविवार- प्रतिपदा

०३) 12/09/22- सोमवार- द्वितीया

०४) 13/09/22- मंगलवार- तृतीया

०५) 14/09/22- बुधवार- चतुर्थी

०६) 15/09/22-। गुरुवार- पंचमी

०७) 16/09/22- शुक्रवार- षष्ठी

०८) 17/09/22- शनिवार- सप्तमी

०९) 18/09/22- रविवार- अष्टमी

१०) 19/09/22- सोमवार- नवमी

११) 20/09/22- मंगलवार-दशमी

१२) 21/09/22- बुधवार- एकादशी

१३) 22/09/22- गुरुवार- द्वादशी

१४) 23/09/22- शुक्रवार- तृयोदशी

१५) 24/09/22- शनिवार- चतुर्दशी

१६) 25/06/22- रविवार- अमावस्या

👉*श्राद्ध कर्म से जुड़े कुछ बिन्दुओं को सेव कर रखें-*🙏

👉 श्राद्ध कर्म करने और ब्राह्मण भोजन का समय *प्रातः 11:36 बजे से मध्याह्न 12:24 बजे* तक का है। इस समय को *कुतप वेला* कहते हैं। यह समय मुख्य रूप से *श्राद्ध* के लिए प्रशस्त है।

👉 धर्मग्रन्थों के अनुसार श्राद्ध के सोलह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी तिथि पर श्राद्ध करते हैं।

👉 ऐसी मान्यता है कि पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है। वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है।

👉 पूर्णिमा तिथि के दिन देहान्त होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है। इसी दिन से महालय (श्राद्ध) का प्रारम्भ भी माना जाता है।

👉 श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए।

👉 पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण *वर्षभर* तक प्रसन्न और तृप्त रहते हैं। 

👉 धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि पितरों को पिण्ड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है।

👉 श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्ड दान तथा तिलांजलि प्रदान कर सन्तुष्ट करेंगे। इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। यही कारण है कि धर्मशास्त्रों में प्रत्येक गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करने के लिए कहा गया है।

🌞 *कुछ विशेष बातें-*🌞

👉 1- श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए। दस दिन के अन्दर बछड़े को जन्म देने वाली गाय के दूध का उपयोग श्राद्ध कर्म में नहीं करना चाहिए।

👉 2- श्राद्ध में चॉंदी के बर्तनों का उपयोग व दान पुण्यदायक तो है ही, राक्षसों का नाश करने वाला भी माना गया है। पितरों के लिए चॉंदी के बर्तन में सिर्फ पानी ही दिया जाए तो वह अक्षय और तृप्तिकारक होता है। पितरों के लिए अर्घ्य, पिण्ड और भोजन के बर्तन भी चॉंदी के हों तो और भी श्रेष्ठ माना जाता है।

👉 3- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाते समय परोसने के बर्तन दोनों हाथों से पकड़कर लाने चाहिए, एक हाथ से लाए अन्न पात्र से परोसा हुआ भोजन राक्षस छीन लेते हैं।

👉 4- ब्राह्मण को भोजन 'मौन रहकर' एवं व्यञ्जनों की प्रशंसा किए बगैर करना चाहिए, क्योंकि पितर तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं, जब तक ब्राह्मण मौन रहकर भोजन करें !

👉 5- जो पितृ, शस्त्र आदि से मारे गए हों उनका श्राद्ध *मुख्य तिथि के अतिरिक्त चतुर्दशी* को भी करना चाहिए। इससे वे प्रसन्न होते हैं। 

👉 श्राद्ध गुप्त रूप से करना चाहिए। पिण्डदान पर कुदृष्टि पड़ने से वह पितरों तक नहीं पहुॅंचता है।

  👉 6- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाना आवश्यक है, जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण के श्राद्ध कर्म करता है, उसके घर में पितर भोजन नहीं करते हैं। वे शाप देकर लौट जाते हैं। 

👉 7- श्राद्ध में जौं, कांगनी, मटर और सरसों का उपयोग श्रेष्ठ रहता है। तिल की मात्रा अधिक होने पर श्राद्ध अक्षय हो जाता है। तिल वास्तव में पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं। कुशा (एक प्रकार की घास) राक्षसों से बचाती है।

👉 8- दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए। वन, पर्वत, पुण्यतीर्थ एवं मन्दिर दूसरे की भूमि पर श्राद्ध किया जा सकता है, क्योंकि इन पर किसी का स्वामित्व नहीं माना गया है। 

👉 9- चाहे मनुष्य देवकार्य में ब्राह्मण का चयन करते समय न सोचे, लेकिन पितृ कार्य में योग्य ब्राह्मण का ही चयन करना चाहिए, क्योंकि श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों द्वारा ही होती है।

👉 10- जो व्यक्ति किसी कारणवश एक ही नगर में रहने वाली अपनी बहिन, दामाद और भाऩजे को श्राद्ध में भोजन नहीं कराता, उसके यहॉं पितर के साथ ही देवता भी अन्न ग्रहण नहीं करते।

👉 11- श्राद्ध करते समय यदि कोई भिक्षुक आ जाए तो उसे आदरपूर्वक भोजन करवाना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसे समय में घर आए याच़क को भगा देता है उसका श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता है।

👉 धर्मग्रन्थों के अनुसार सायंकाल का समय राक्षसों के लिए होता है, यह समय सभी कार्यों के लिए निन्दित है। अत: शाम के समय श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए।

👉 13- श्राद्ध में प्रसन्न पितृगण मनुष्यों को पुत्र, धन, विद्या, आयु, आरोग्य, लौकिक सुख, मोक्ष और स्वर्ग प्रदान करते हैं। श्राद्ध के लिए कृष्णपक्ष श्रेष्ठ माना गया है।

👉 14- जैसा कि रात्रि को राक्षसी समय माना गया है, रात में श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए। वैसे ही दोनों सन्ध्याओं के समय प्रातः काल व सायं भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए। दिन के आठवें मुहूर्त्त (कुतपकाल) अपराह्न में पितरों के लिए दिया गया दान अक्षय होता है।

👉 15- श्राद्ध में ये चीजें होना महत्त्वपूर्ण हैं- गङ्गा जल, दूध, शहद, दौहित्र, कुश और तिल।

👉 केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध है। सोने, चॉंदी, कांसे, ताम्बा,पीतल के पात्र उत्तम हैं। इनके अभाव में पत्तल उपयोग में लाई जा सकती है।

👉 16- तुलसी से पितृगण प्रसन्न होते हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि पितृगण गरुड़ पर सवार होकर विष्णुलोक चले जाते हैं। तुलसी से पिण्ड की पूजा करने से पितर लोग प्रलयकाल तक सन्तुष्ट रहते हैं।

👉 17- रेशमी, कम्बल, ऊन, लकड़ी, तृण, पर्ण, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ हैं। आसन में लोहा (स्टील) किसी भी रूप में प्रयुक्त नहीं होना चाहिए।

👉 18- चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, अपवित्र फल या अन्न श्राद्ध में निषेध हैं।

*🌞 श्राद्ध के प्रमुख अङ्ग इस प्रकार हैं-*🌞

👉 तर्पण- इसमें दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गन्ध मिश्रित जल पितरों को तृप्त करने हेतु दिया जाता है। श्राद्ध पक्ष में इसे नित्य करने का विधान है।

👉 भोजन व पिण्ड दान- पितरों के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन दिया जाता है। श्राद्ध करते समय चावल या जौं के पिण्ड दान भी किए जाते हैं।

👉 वस्त्र दान करना श्राद्ध का मुख्य लक्ष्य भी है।

👉 यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है। जब तक भोजन कराकर वस्त्र और दक्षिणा नहीं दी जाती उसका फल नहीं मिलता।

👉 21 - श्राद्ध तिथि के पूर्व ही यथाशक्ति विद्वान ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलावा दें

👉 22- पितरों की पसन्द का भोजन दूध, दही, घी और शहद के साथ अन्न से बनाए गए पकवान जैसे खीर आदि है। 

👉 23- तैयार भोजन में से गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए थोड़ा सा भाग निकालें।

👉 इसके बाद हाथ में जल, अक्षत (चावल), चन्दन, फूल और तिल लेकर संकल्प करें।

👉 24- श्वान और कौए के निमित्त निकाला भोजन कुत्ते और कौए को ही कराएं, किन्तु देवता और चींटी का भोजन गाय को खिला सकते हैं। इसके बाद ही ब्राह्मणों को भोजन कराएं। 

👉 पूर्ण तृप्ति से भोजन कराने के बाद ब्राह्मण को तिलक लगाकर यथाशक्ति कपड़े, अन्न और दक्षिणा दान देकर आशीर्वाद पाएं।

👉 25- इसके बाद परिजनों, मित्रों और रिश्तेदारों को भोजन कराएं।

👉 26- पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है। पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में सपिण्डों (एक ही परिवार के) को श्राद्ध करना चाहिए । एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध करता है।

     👉 पितृ पक्ष सोलह दिन की समयावधि होती है, जिसमें पुत्र या सगोत्र अपने पूर्वजों को भोजन अर्पण कर दिया समाधान


 पितृपक्ष ( महालय ) के आरंभ होने से कुछ दिन पूर्व ही लोगों में पितृपक्ष को लेकर अनेक तरह की शंकाये उत्पन्न होती हैं और वे पंडितों से इस के संदर्भ में प्रश्न करना शुरू कर देते हैं ।

श्राद्ध क्या है, कब करें, कैसे करें, तिथि कौन सी होगी इत्यादि। प्रस्तुत लेख में मैंने इस तरह की सभी शंकाओं का समाधान करने का प्रयास किया है । साथ ही इस वर्ष किस तिथि का श्राद्ध किस तारीख में पड़ेगा उसकी सूची संलग्न की है । सभी लोग इसका लाभ उठावे ।


श्राद्ध क्या है

 पितृगणों के निमित्त श्रद्धा पूर्वक किए जाने वाले कर्म विशेष को श्राद्ध कहते हैं ।

 "श्रद्धया इदं श्राद्धम"

 श्राद्ध कर्म में वाक्य की शुद्धता तथा क्रिया की शुद्धता मुख्य रूप से आवश्यक है ।

" पितरों वाक्यमिच्छन्ति भावमिच्छन्ति देवता"


महालय में मुख्यतः दो तरह के श्राद्ध किए जाते 

1. पार्वण श्राद्ध 2. एकोदिष्ट श्राद्ध, परंतु कुछ लोग जो मृत्यु के समय सपिण्डन नहीं करवा पाए वे इन दिनों में सपिण्डन भी करवाते हैं ।

        जिस श्राद्ध में प्रेत पिंड का पितृ पिण्डों में सम्मेलन किया जाता है उसे सपिण्डन श्राद्ध कहते हैं । इसी सपिण्डन श्राद्ध को सामान्य बोलचाल की भाषा में पितृ मेलन या पटा में मिलाना कहते हैं ।

प्रश्न उठता है सपिण्डन कब करना चाहिए?

सपिण्डन के विषय में तत्वदर्शी मुनियों ने अंत्येष्टि से 12 वे दिन, तीन पक्ष, 6 माह में या 1 वर्ष पूर्ण होने पर सपिण्डन करने को कहा है । 1 वर्ष पूर्ण होने पर भी यदि सपिण्डन नहीं किया गया है तो 1 वर्ष उपरांत कभी भी किया जा सकता है परंतु जब तक सपिण्डन क्रिया संपन्न नहीं हो जाती तब तक सूतक से निवृत्ति नहीं मानी जाती जिसका उल्लेख गरुड़ पुराण के 13 वे अध्याय में किया गया है और कर्म का लोप होने से दोष का भागी भी बनना पड़ता है ।

श्राद्ध करना क्यों आवश्यक है ।

इस सृष्टि में हर वस्तु का जोड़ा है सभी चीजें अपने जोड़े की पूरक हैं उन्हीं जोड़ों में एक जोड़ा दृश्य और अदृश्य जगत का भी है और यह दोनों एक दूसरे पर निर्भर हैं । पितृलोक भी अदृश्य जगत का हिस्सा है और अपनी सक्रियता के लिए दृश्य जगत के श्राद्ध पर निर्भर है । तो उनकी सक्रियता के निमित्त हमें श्राद्ध करना चाहिए । अर्यमा भगवान श्री नारायण का अवतार हैं एवं संपूर्ण जगत के प्राणियों के पितृ हैं । तो जब हम पितरों के निमित्त कोई कार्य करते ह

🙏 अपने वंशजों से क्या चाहते हैं पितर,पितृ गीत भावार्थ सहित...*


👉 विष्णुपुराण में पितरों के द्वारा कहे गये वे श्लोक हैं जो *पितृ गीत* के नाम से जाने जाते हैं।


इस गीत से पता लगता है कि पितरगण अपने वंशजों (संतानों) से पिण्ड-जल और नमस्कार आदि पाने के लिए

कितने लालायित रहते हैं।


यह अनुभूति ही पितरों की अपने वंशजों से भावनात्मक लगाव की परिचायक है। 


*कूर्मपुराण के अनुसार पितर अपने पूर्व गृह यह जानने के लिए आते हैं कि उनके परिवार के लोग उन्हें विस्मृत तो नहीं कर चुके हैं।*


इस पितृ गीत का सार यह है कि मनुष्य को अपनी शक्ति व सामर्थ्यानुसार पितरों के उद्देश्य से अन्न,फल,जल,फूल आदि

कुछ-न-कुछ अवश्य अर्पण करना चाहिए। 


*जिनको भगवान ने सम्पत्ति दी है,उनको तो दिल खोल कर पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध व दान करना चाहिए।*


*जिनकी आय सीमित है उनको भी परलोक में पितरों को सुख पहुंचाने के लिए स्वयं कष्ट सहकर श्राद्ध-तर्पण आदि करना चाहिए।*


जो लोग अपने मृत माता-पिता और प्रियजनों को भूल जाते हैं और श्राद्ध के माध्यम से पितृपक्ष में उन्हें याद नहीं करते हैं, उनके लिए कुछ भी नहीं करते हैं, उनके पितर दु:खी व निराश होकर शाप देकर अपने लोक वापिस लौट जाते हैं फिर इस अभिशप्त परिवार को जीवन भर कष्ट-ही-कष्ट झेलना पड़ता है और मरने के बाद नरक में जाना पड़ता है। 


*मार्कण्डेयपुराण में बताया गया है कि जिस कुल में श्राद्ध नहीं होता है, उसमें दीर्घायु, नीरोग व वीर संतान जन्म नहीं लेती है और परिवार में कभी मंगल नहीं होता है ।*


यदि परिजन श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करते हैं तो पितर उन्हें आशीर्वाद देकर अपने लोक चले जाते हैं । श्राद्ध से बढ़कर और कोई कल्याणकारी कार्य नहीं है और वंशवृद्धि के लिए तो पितरों की आराधना ही एकमात्र उपाय है । परिवार में किसी संतान का जन्म होने वाला हो तो पितर अच्छी आत्माओं को संतान रूप में भेजने में सहयोग करते हैं, पितरगण हमारी मदद करते हैं, प्रेरणा देते है, प्रकाश देते हैं, तथा आनन्द और शान्ति देते हैं।


*पितृ गीत - हिन्दी अर्थ सहित....*👇


*अपि धन्य: कुले जायादस्माकं मतिमान्नार: ।*

*अकुर्वन्वित्तशाठ्यं य: पिण्डान्नो निर्वपिष्यति ।।*


पितृगण कहते हैं — हमारे कुल में भी क्या कोई ऐसा बुद्धिमान, धन्य पुरुष पैदा होगा जो धन के लोभ को छोड़कर हमें पिण्डदान करेगा ।


*रत्नं वस्त्रं महायानं सर्वभोगादिकं वसु ।*

*विभवे सति विप्रेभ्यो योऽस्मानुद्दिश्य दास्यति।।*


जो प्रचुर सम्पत्ति का स्वामी होने पर हमारे लिए ब्राह्मणों को बढ़िया-बढ़िया रत्न, वस्त्र, सवारियां और सब प्रकार की भोग-सामग्री देगा।


*अन्नं न वा यथाशक्त्या कालेऽस्मिन्भक्तिनम्रधो:।*

*भोजयिष्यति विप्राग्रयांस्तन्मात्रविभवो नर: ।।*


बड़ी सम्पत्ति न होगी, केवल खाने-पहनने लायक होगी तो जो श्राद्ध के समय भक्ति के साथ विनम्र बुद्धि से श्रेष्ठ ब्राह्मणों को शक्ति भर भोजन ही करा देगा।


*असमर्थोऽन्नदानस्य धान्यमामं स्वशक्तित: ।*

*प्रदास्यतिद्विजाग्येभ्य: स्वल्पाल्पां वापि दक्षिणाम् ।।*


भोजन कराने में भी असमर्थ होने पर जो श्रेष्ठ ब्राह्मणों को कच्चा धान और थोड़ी सी दक्षिणा ही दे देगा।


*तत्राप्यसामर्थ्ययुत: कराग्राग्रस्थितांस्तिलान् ।*

*प्रणम्य द्विजमुख्याय कस्मैचिद्भूप दास्यति ।।*


यदि इसमें भी असमर्थ होगा तो किन्हीं श्रेष्ठ ब्राह्मण को एक मुट्ठी तिल ही दे देगा।


*तिलैस्सप्ताष्टभिर्वापि समवेतं जलांजलिम् ।*

*भक्तिनम्रस्समुद्दिश्य भुव्यस्माकं प्रदास्यति ।।*


अथवा हमारे उद्देश्य से भक्तिपूर्वक विनम्र-चित्त से सात-आठ तिल से युक्त जल की अंजलि ही दे देगा।


*यत: कुतश्चित्सम्प्राप्य गोभ्यो वापि गवाह्निकम्।*

*अभावे प्रोणयन्नस्मांछ्रद्धायुक्त: प्रदास्यति ।।*


इसका भी अभाव होगा तो कहीं से एक दिन का चारा ही लाकर प्रेम और श्रद्धापूर्वक हमारे लिए गौ को खिला देगा।


*सर्वाभावे वनं गत्वा कक्षमूलप्रदर्शक: ।*

*सूर्यादिलोकपालानामिदमुच्चैर्वदिष्यति ।।*


इन सभी वस्तुओं का अभाव होने पर जो वन में जाकर दोनों हाथ ऊंचे उठाकर कांख दिखाता हुआ पुकार कर सूर्य आदि लोकपालों से कहेगा कि—


*न मेऽस्ति वित्तं धनं च नान्यंच्छ्राद्धोपयोग्यंस्वपितृन्नतोऽस्मि* ।

*तृप्यन्तु भक्त्यापितरो मयैतौ कृतौ भुजौ वर्त्मनि मारुतस्य ।।*


मेरे पास श्राद्ध के योग्य न वित्त है, न धन है, न कोई अन्य सामग्री है, अत: मैं अपने पितरों को नमस्कार करता हूँ । वे मेरी भक्ति से ही तृप्त हों। मैंने अपनी दोनों भुजायें दीनता से आकाश में उठा रखी हैं।


*इस प्रकार पितरों के प्रति श्रद्धाभाव ही उन्हें सबसे बड़ी तृप्ति प्रदान करता है....*


*सदैव प्रसन्न रहिये। जो प्राप्त है, पर्याप्त है....* बस इसी सोच के साथ आप अपना व अपने परिवार का ख्याल रखते हुयें सदा हंसते - मुस्कुराते रहें और सदा चलते रहें जोश, जुनून और जज्बे के साथ ....✍️

*🙏जय श्री श्याम - जय श्री राम 🙏*

🌸पितृ श्राद्ध आरम्भ*🌸


*🌸विशेष - पितरों के लिए महत्वपूर्ण जानकारी आप सभी के बीच रखने का प्रयास कर रहा हूँ ।इसे पूरा अवश्य पढ़े क्योंकि पढ़ने से भी पितरों को शांति मिलती है*


पूर्णिमा श्राद्ध -10/9/2022,शनिवार


1 प्रतिपदा श्राद्ध - 11/9/2022 रविवार

2 द्वितीया श्राद्ध - 12/9/2022 सोमवार 

3 तृतीया श्राद्ध- 13/9/2022 मंगलवार

4 चतुर्थी श्राद्ध-14/9/2022 बुद्धवार

5 पंचमी श्राद्ध- 15/9/2022 गुरुवार

6 षष्ठी श्राद्ध-16/9/2022 शुक्रवार

7 सप्तमी श्राद्ध- 17/9/2022 शनिवार 

8 अष्टमी श्राद्ध- 18/9/2022 रविवार

9 नवमी श्राद्ध- 19/9/2022 सोमवार

10 दशमी श्राद्ध- 20/9/2022 मंगलवार

11 एकादशी श्राद्ध- 21/9/2022 बुद्धवार

12 द्वादशी श्राद्ध- 22/9/2022 गुरुवार

13 त्रयोदशी श्राद्ध- 23/9 /2022 शुक्रवार

14 चतुर्दशी श्राद्ध- 24/9/ 2022 शनिवार

15 सर्वपितृ अमावस श्राद्ध 25/9/2022 रविवार


*🌸 घर के प्रेत या पितर रुष्ट होने के लक्षण और उपाय*

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बहुत जिज्ञासा होती है आखिर ये पितृदोष है क्या? पितृ -दोष शांति के सरल उपाय पितृ या पितृ गण कौन हैं ?आपकी जिज्ञासा को शांत करती विस्तृत प्रस्तुति।


पितृ गण हमारे पूर्वज हैं जिनका ऋण हमारे ऊपर है ,क्योंकि उन्होंने कोई ना कोई उपकार हमारे जीवन के लिए किया है मनुष्य लोक से ऊपर पितृ लोक है,पितृ लोक के ऊपर सूर्य लोक है एवं इस से भी ऊपर स्वर्ग लोक है।


 आत्मा जब अपने शरीर को त्याग कर सबसे पहले ऊपर उठती है तो वह पितृ लोक में जाती है ,वहाँ हमारे पूर्वज मिलते हैं अगर उस आत्मा के अच्छे पुण्य हैं तो ये हमारे पूर्वज भी उसको प्रणाम कर अपने को धन्य मानते हैं की इस अमुक आत्मा ने हमारे कुल में जन्म लेकर हमें धन्य किया इसके आगे आत्मा अपने पुण्य के आधार पर सूर्य लोक की तरफ बढती है।


वहाँ से आगे ,यदि और अधिक पुण्य हैं, तो आत्मा सूर्य लोक को भेज कर स्वर्ग लोक की तरफ चली जाती है,लेकिन करोड़ों में एक आध आत्मा ही ऐसी होती है ,जो परमात्मा में समाहित होती है जिसे दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता मनुष्य लोक एवं पितृ लोक में बहुत सारी आत्माएं पुनः अपनी इच्छा वश ,मोह वश अपने कुल में जन्म लेती हैं।


*🌸 पितृ दोष क्या होता है* ??

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 हमारे ये ही पूर्वज सूक्ष्म व्यापक शरीर से अपने परिवार को जब देखते हैं ,और महसूस करते हैं कि हमारे परिवार के लोग ना तो हमारे प्रति श्रद्धा रखते हैं और न ही इन्हें कोई प्यार या स्नेह है और ना ही किसी भी अवसर पर ये हमको याद करते हैं,ना ही अपने ऋण चुकाने का प्रयास ही करते हैं तो ये आत्माएं दुखी होकर अपने वंशजों को श्राप दे देती हैं,जिसे "पितृ- दोष" कहा जाता है।


पितृ दोष एक अदृश्य बाधा है .ये बाधा पितरों द्वारा रुष्ट होने के कारण होती है पितरों के रुष्ट होने के बहुत से कारण हो सकते हैं ,आपके आचरण से,किसी परिजन द्वारा की गयी गलती से ,श्राद्ध आदि कर्म ना करने से ,अंत्येष्टि कर्म आदि में हुई किसी त्रुटि के कारण भी हो सकता है।


इसके अलावा मानसिक अवसाद,व्यापार में नुक्सान ,परिश्रम के अनुसार फल न मिलना , विवाह या वैवाहिक जीवन में समस्याएं,कैरिअर में समस्याएं या संक्षिप्त में कहें तो जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति और उसके परिवार को बाधाओं का सामना करना पड़ता है पितृ दोष होने पर अनुकूल ग्रहों की स्थिति ,गोचर ,दशाएं होने पर भी शुभ फल नहीं मिल पाते,कितना भी पूजा पाठ ,देवी ,देवताओं की अर्चना की जाए ,उसका शुभ फल नहीं मिल पाता।


*🌸पितृ दोष दो प्रकार से प्रभावित करता है*


1.अधोगति वाले पितरों के कारण

2.उर्ध्वगति वाले पितरों के कारण


अधोगति वाले पितरों के दोषों का मुख्य कारण परिजनों द्वारा किया गया गलत आचरण,की अतृप्त इच्छाएं ,जायदाद के प्रति मोह और उसका गलत लोगों द्वारा उपभोग होने पर,विवाहादिमें परिजनों द्वारा गलत निर्णय .परिवार के किसी प्रियजन को अकारण कष्ट देने पर पितर क्रुद्ध हो जाते हैं ,परिवार जनों को श्राप दे देते हैं और अपनी शक्ति से नकारात्मक फल प्रदान करते हैं।


उर्ध्व गति वाले पितर सामान्यतः पितृदोष उत्पन्न नहीं करते ,परन्तु उनका किसी भी रूप में अपमान होने पर अथवा परिवार के पारंपरिक रीति-रिवाजों का निर्वहन नहीं करने पर वह पितृदोष उत्पन्न करते हैं।


इनके द्वारा उत्पन्न पितृदोष से व्यक्ति की भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति बिलकुल बाधित हो जाती है ,फिर चाहे कितने भी प्रयास क्यों ना किये जाएँ ,कितने भी पूजा पाठ क्यों ना किये जाएँ,उनका कोई भी कार्य ये पितृदोष सफल नहीं होने देता। पितृ दोष निवारण के लिए सबसे पहले ये जानना ज़रूरी होता है कि किस गृह के कारण और किस प्रकार का पितृ दोष उत्पन्न हो रहा है ?


जन्म पत्रिका और पितृ दोष जन्म पत्रिका में लग्न ,पंचम ,अष्टम और द्वादश भाव से पितृदोष का विचार किया जाता है। पितृ दोष में ग्रहों में मुख्य रूप से सूर्य, चन्द्रमा, गुरु, शनि और राहू -केतु की स्थितियों से पितृ दोष का विचार किया जाता है।


इनमें से भी गुरु ,शनि और राहु की भूमिका प्रत्येक पितृ दोष में महत्वपूर्ण होती है इनमें सूर्य से पिता या पितामह , चन्द्रमा से माता या मातामह ,मंगल से भ्राता या भगिनी और शुक्र से पत्नी का विचार किया जाता है।


अधिकाँश लोगों की जन्म पत्रिका में मुख्य रूप से क्योंकि गुरु ,शनि और राहु से पीड़ित होने पर ही पितृ दोष उत्पन्न होता है ,इसलिए विभिन्न उपायों को करने के साथ साथ व्यक्ति यदि पंचमुखी ,सातमुखी और आठ मुखी रुद्राक्ष भी धारण कर ले , तो पितृ दोष का निवारण शीघ्र हो जाता है।


पितृ दोष निवारण के लिए इन रुद्राक्षों को धारण करने के अतिरिक्त इन ग्रहों के अन्य उपाय जैसे मंत्र जप और स्तोत्रों का पाठ करना भी श्रेष्ठ होता है।


*🌸 विभिन्न ऋण और पितृ दोष*

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हमारे ऊपर मुख्य रूप से 5 ऋण होते हैं जिनका कर्म न करने(ऋण न चुकाने पर ) हमें निश्चित रूप से श्राप मिलता है ,ये ऋण हैं : मातृ ऋण ,पितृ ऋण ,मनुष्य ऋण ,देव ऋण और ऋषि ऋण।


*🌸 मातृ ऋण*

👉 माता एवं माता पक्ष के सभी लोग जिनमेंमा,मामी ,नाना ,नानी ,मौसा ,मौसी और इनके तीन पीढ़ी के पूर्वज होते हैं ,क्योंकि माँ का स्थान परमात्मा से भी ऊंचा माना गया है अतः यदि माता के प्रति कोई गलत शब्द बोलता है ,अथवा माता के पक्ष को कोई कष्ट देता रहता है,तो इसके फलस्वरूप उसको नाना प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं। इतना ही नहीं ,इसके बाद भी कलह और कष्टों का दौर भी परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चलता ही रहता है।


*🌸पितृ ऋण*

👉 पिता पक्ष के लोगों जैसे बाबा ,ताऊ ,चाचा, दादा-दादी और इसके पूर्व की तीन पीढ़ी का श्राप हमारे जीवन को प्रभावित करता है पिता हमें आकाश की तरह छत्रछाया देता है,हमारा जिंदगी भर पालन -पोषण करता है ,और अंतिम समय तक हमारे सारे दुखों को खुद झेलता रहता है।


पर आज के के इस भौतिक युग में पिता का सम्मान क्या नयी पीढ़ी कर रही है ?पितृ -भक्ति करना मनुष्य का धर्म है ,इस धर्म का पालन न करने पर उनका श्राप नयी पीढ़ी को झेलना ही पड़ता है ,इसमें घर में आर्थिक अभाव,दरिद्रता ,संतानहीनता ,संतान को विभिन्न प्रकार के कष्ट आना या संतान अपंग रह जाने से जीवन भर कष्ट की प्राप्ति आदि।


*🌸 देव ऋण*

 👉 माता-पिता प्रथम देवता हैं,जिसके कारण भगवान गणेश महान बने |इसके बाद हमारे इष्ट भगवान शंकर जी ,दुर्गा माँ ,भगवान विष्णु आदि आते हैं ,जिनको हमारा कुल मानता आ रहा है ,हमारे पूर्वज भी भी अपने अपने कुल देवताओं को मानते थे , लेकिन नयी पीढ़ी ने बिलकुल छोड़ दिया है इसी कारण भगवान /कुलदेवी /कुलदेवता उन्हें नाना प्रकार के कष्ट /श्राप देकर उन्हें अपनी उपस्थिति का आभास कराते हैं।


*🌸ऋषि ऋण*

 👉 जिस ऋषि के गोत्र में पैदा हुए ,वंश वृद्धि की ,उन ऋषियों का नाम अपने नाम के साथ जोड़ने में नयी पीढ़ी कतराती है ,उनके ऋषि तर्पण आदि नहीं करती है इस कारण उनके घरों में कोई मांगलिक कार्य नहीं होते हैं,इसलिए उनका श्राप पीडी दर पीढ़ी प्राप्त होता रहता है।


*🌸 मनुष्य ऋण*

 👉 माता -पिता के अतिरिक्त जिन अन्य मनुष्यों ने हमें प्यार दिया ,दुलार दिया ,हमारा ख्याल रखा ,समय समय पर मदद की गाय आदि पशुओं का दूध पिया जिन अनेक मनुष्यों ,पशुओं ,पक्षियों ने हमारी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मदद की ,उनका ऋण भी हमारे ऊपर हो गया।


लेकिन लोग आजकल गरीब ,बेबस ,लाचार लोगों की धन संपत्ति हरण करके अपने को ज्यादा गौरवान्वित महसूस करते हैं। इसी कारण देखने में आया है कि ऐसे लोगों का पूरा परिवार जीवन भर नहीं बस पाता है,वंश हीनता ,संतानों का गलत संगति में पड़ जाना,परिवार के सदस्यों का आपस में सामंजस्य न बन पाना ,परिवार कि सदस्यों का किसी असाध्य रोग से ग्रस्त रहना इत्यादि दोष उस परिवार में उत्पन्न हो जाते हैं।


ऐसे परिवार को पितृ दोष युक्त या शापित परिवार कहा जाता है रामायण में श्रवण कुमार के माता -पिता के श्राप के कारण दशरथ के परिवार को हमेशा कष्ट झेलना पड़ा,ये जग -ज़ाहिर है इसलिए परिवार कि सर्वोन्नती के पितृ दोषों का निवारण करना बहुत आवश्यक है।


*🌸 पितृों के रूष्ट होने के लक्षण*

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पितरों के रुष्ट होने के कुछ असामान्‍य लक्षण जो मैंने अपने निजी अनुभव के आधार एकत्रित किए है वे क्रमशः इस प्रकार हो सकते है।


*🌸 खाने में से बाल निकलना*

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अक्सर खाना खाते समय यदि आपके भोजन में से बाल निकलता है तो इसे नजरअंदाज न करें


बहुत बार परिवार के किसी एक ही सदस्य के साथ होता है कि उसके खाने में से बाल निकलता है, यह बाल कहां से आया इसका कुछ पता नहीं चलता। यहां तक कि वह व्यक्ति यदि रेस्टोरेंट आदि में भी जाए तो वहां पर भी उसके ही खाने में से बाल निकलता है और परिवार के लोग उसे ही दोषी मानते हुए उसका मजाक तक उडाते है।


*🌸 बदबू या दुर्गंध*

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कुछ लोगों की समस्या रहती है कि उनके घर से दुर्गंध आती है, यह भी नहीं पता चलता कि दुर्गंध कहां से आ रही है। कई बार इस दुर्गंध के इतने अभ्‍यस्‍त हो जाते है कि उन्हें यह दुर्गंध महसूस भी नहीं होती लेकिन बाहर के लोग उन्हें बताते हैं कि ऐसा हो रहा है अब जबकि परेशानी का स्रोत पता ना चले तो उसका इलाज कैसे संभव है


*🌸 पूर्वजों का स्वप्न में बार बार आना*

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मेरे एक मित्र ने बताया कि उनका अपने पिता के साथ झगड़ा हो गया है और वह झगड़ा काफी सालों तक चला पिता ने मरते समय अपने पुत्र से मिलने की इच्छा जाहिर की परंतु पुत्र मिलने नहीं आया, पिता का स्वर्गवास हो गया हुआ। कुछ समय पश्चात मेरे मित्र मेरे पास आते हैं और कहते हैं कि उन्होंने अपने पिता को बिना कपड़ों के देखा है ऐसा स्‍वप्‍न पहले भी कई बार आ चुका है।


*🌸 शुभ कार्य में अड़चन*

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कभी-कभी ऐसा होता है कि आप कोई त्यौहार मना रहे हैं या कोई उत्सव आपके घर पर हो रहा है ठीक उसी समय पर कुछ ना कुछ ऐसा घटित हो जाता है कि जिससे रंग में भंग डल जाता है। ऐसी घटना घटित होती है कि खुशी का माहौल बदल जाता है। मेरे कहने का तात्‍पर्य है कि शुभ अवसर पर कुछ अशुभ घटित होना पितरों की असंतुष्टि का संकेत है।


*🌸 घर के किसी एक सदस्य का कुंवारा रह जाना*

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बहुत बार आपने अपने आसपास या फिर रिश्‍तेदारी में देखा होगा या अनुभव किया होगा कि बहुत अच्‍छा युवक है, कहीं कोई कमी नहीं है लेकिन फिर भी शादी नहीं हो रही है। एक लंबी उम्र निकल जाने के पश्चात भी शादी नहीं हो पाना कोई अच्‍छा संकेत नहीं है। यदि घर में पहले ही किसी कुंवारे व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है तो उपरोक्त स्थिति बनने के आसार बढ़ जाते हैं। इस समस्‍या के कारण का भी पता नहीं चलता।


*🌸मकान या प्रॉपर्टी की खरीद फरोख्त में दिक्कत आना*

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आपने देखा होगा कि कि एक बहुत अच्छी प्रॉपर्टी, मकान, दुकान या जमीन का एक हिस्सा किन्ही कारणों से बिक नहीं पा रहा यदि कोई खरीदार मिलता भी है तो बात नहीं बनती। यदि कोई खरीदार मिल भी जाता है और सब कुछ हो जाता है तो अंतिम समय पर सौदा कैंसिल हो जाता है। इस तरह की स्थिति यदि लंबे समय से चली आ रही है तो यह मान लेना चाहिए कि इसके पीछे अवश्य ही कोई ऐसी कोई अतृप्‍त आत्‍मा है जिसका उस भूमि या जमीन के टुकड़े से कोई संबंध रहा हो।


*🌸 संतान ना होना*

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मेडिकल रिपोर्ट में सब कुछ सामान्य होने के बावजूद संतान सुख से वंचित है हालांकि आपके पूर्वजों का इस से संबंध होना लाजमी नहीं है परंतु ऐसा होना बहुत हद तक संभव है जो भूमि किसी निसंतान व्यक्ति से खरीदी गई हो वह भूमि अपने नए मालिक को संतानहीन बना देती है


उपरोक्त सभी प्रकार की घटनाएं या समस्याएं आप में से बहुत से लोगों ने अनुभव की होंगी इसके निवारण के लिए लोग समय और पैसा नष्ट कर देते हैं परंतु समस्या का समाधान नहीं हो पाता। क्या पता हमारे इस लेख से ऐसे ही किसी पीड़ित व्यक्ति को कुछ प्रेरणा मिले इसलिए निवारण भी स्पष्ट कर रहा हूं।


*🌸पितृ दोष कि शांति के उपाय*

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1👉 सामान्य उपायों में षोडश पिंड दान ,सर्प पूजा ,ब्राह्मण को गौ -दान ,कन्या -दान,कुआं ,बावड़ी ,तालाब आदि बनवाना ,मंदिर प्रांगण में पीपल ,बड़(बरगद) आदि देव वृक्ष लगवाना एवं विष्णु मन्त्रों का जाप आदि करना ,प्रेत श्राप को दूर करने के लिए श्रीमद्द्भागवत का पाठ करना चाहिए।


2👉 वेदों और पुराणों में पितरों की संतुष्टि के लिए मंत्र ,स्तोत्र एवं सूक्तों का वर्णन है जिसके नित्य पठन से किसी भी प्रकार की पितृ बाधा क्यों ना हो ,शांत हो जाती है अगर नित्य पठन संभव ना हो , तो कम से कम प्रत्येक माह की अमावस्या और आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या अर्थात पितृपक्ष में अवश्य करना चाहिए।

वैसे तो कुंडली में किस प्रकार का पितृ दोष है उस पितृ दोष के प्रकार के हिसाब से पितृदोष शांति करवाना अच्छा होता है।


3👉 भगवान भोलेनाथ की तस्वीर या प्रतिमा के समक्ष बैठ कर या घर में ही भगवान भोलेनाथ का ध्यान कर निम्न मंत्र की एक माला नित्य जाप करने से समस्त प्रकार के पितृ- दोष संकट बाधा आदि शांत होकर शुभत्व की प्राप्ति होती है |मंत्र जाप प्रातः या सायंकाल कभी भी कर सकते हैं :


मंत्र : "ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय च धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात।


4👉 अमावस्या को पितरों के निमित्त पवित्रता पूर्वक बनाया गया भोजन तथा चावल बूरा ,घी एवं एक रोटी गाय को खिलाने से पितृ दोष शांत होता है।


5👉 अपने माता -पिता ,बुजुर्गों का सम्मान,सभी स्त्री कुल का आदर /सम्मान करने और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करते रहने से पितर हमेशा प्रसन्न रहते हैं।



6👉 पितृ दोष जनित संतान कष्ट को दूर करने के लिए "हरिवंश पुराण " का श्रवण करें या स्वयं नियमित रूप से पाठ करें।


7👉 प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती या सुन्दर काण्ड का पाठ करने से भी इस दोष में कमी आती है।


8👉 सूर्य पिता है अतः ताम्बे के लोटे में जल भर कर ,उसमें लाल फूल ,लाल चन्दन का चूरा ,रोली आदि डाल कर सूर्य देव को अर्घ्य देकर ११ बार "ॐ घृणि सूर्याय नमः " मंत्र का जाप करने से पितरों की प्रसन्नता एवं उनकी ऊर्ध्व गति होती है।


9👉 अमावस्या वाले दिन अवश्य अपने पूर्वजों के नाम दुग्ध ,चीनी ,सफ़ेद कपडा ,दक्षिणा आदि किसी मंदिर में अथवा किसी योग्य ब्राह्मण को दान करना चाहिए।


10👉 पितृ पक्ष में पीपल की परिक्रमा अवश्य करें अगर १०८ परिक्रमा लगाई जाएँ ,तो पितृ दोष अवश्य दूर होगा।


*🌸विशिष्ट उपाय* :


1👉 किसी मंदिर के परिसर में पीपल अथवा बड़ का वृक्ष लगाएं और रोज़ उसमें जल डालें ,उसकी देख -भाल करें ,जैसे-जैसे वृक्ष फलता -फूलता जाएगा,पितृ -दोष दूर होता जाएगा,क्योकि इन वृक्षों पर ही सारे देवी -देवता ,इतर -योनियाँ ,पितर आदि निवास करते हैं।


2👉 यदि आपने किसी का हक छीना है,या किसी मजबूर व्यक्ति की धन संपत्ति का हरण किया है,तो उसका हक या संपत्ति उसको अवश्य लौटा दें।


3👉 पितृ दोष से पीड़ित व्यक्ति को किसी भी एक अमावस्या से लेकर दूसरी अमावस्या तक अर्थात एक माह तक किसी पीपल के वृक्ष के नीचे सूर्योदय काल में एक शुद्ध घी का दीपक लगाना चाहिए,ये क्रम टूटना नहीं चाहिए।


*एक माह बीतने पर जो अमावस्या आये उस दिन एक प्रयोग और करें*


इसके लिए किसी देसी गाय या दूध देने वाली गाय का थोडा सा गौ -मूत्र प्राप्त करें उसे थोड़े जल में मिलाकर इस जल को पीपल वृक्ष की जड़ों में डाल दें इसके बाद पीपल वृक्ष के नीचे ५ अगरबत्ती ,एक नारियल और शुद्ध घी का दीपक लगाकर अपने पूर्वजों से श्रद्धा पूर्वक अपने कल्याण की कामना करें,और घर आकर उसी दिन दोपहर में कुछ गरीबों को भोजन करा दें ऐसा करने पर पितृ दोष शांत हो जायेगा।


4👉 घर में कुआं हो या पीने का पानी रखने की जगह हो ,उस जगह की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें,क्योंके ये पितृ स्थान माना जाता है इसके अलावा पशुओं के लिए पीने का पानी भरवाने तथा प्याऊ लगवाने अथवा आवारा कुत्तों को जलेबी खिलाने से भी पितृ दोष शांत होता है।


5 👉 अगर पितृ दोष के कारण अत्यधिक परेशानी हो,संतान हानि हो या संतान को कष्ट हो तो किसी शुभ समय अपने पितरों को प्रणाम कर उनसे प्रण होने की प्रार्थना करें और अपने द्वारा जाने-अनजाने में किये गए अपराध / उपेक्षा के लिए क्षमा याचना करें ,फिर घर अथवा शिवालय में पितृ गायत्री मंत्र का सवा लाख विधि से जाप कराएं जाप के उपरांत दशांश हवन के बाद संकल्प ले की इसका पूर्ण फल पितरों को प्राप्त हो ऐसा करने से पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं ,क्योंके उनकी मुक्ति का मार्ग आपने प्रशस्त किया होता है।


6👉 पितृ दोष की शांति हेतु ये उपाय बहुत ही अनुभूत और अचूक फल देने वाला देखा गया है,वोह ये कि- किसी गरीब की कन्या के विवाह में गुप्त रूप से अथवा प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक सहयोग करना |(लेकिन ये सहयोग पूरे दिल से होना चाहिए ,केवल दिखावे या अपनी बढ़ाई कराने के लिए नहीं )|इस से पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं ,क्योंकि इसके परिणाम स्वरुप मिलने वाले पुण्य फल से पितरों को बल और तेज़ मिलता है ,जिस से वह ऊर्ध्व लोकों की ओरगति करते हुए पुण्य लोकों को प्राप्त होते हैं.|


7👉 अगर किसी विशेष कामना को लेकर किसी परिजन की आत्मा पितृ दोष उत्पन्न करती है तो तो ऐसी स्थिति में मोह को त्याग कर उसकी सदगति के लिए "गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र " का पाठ करना चाहिए।


8👉 पितृ दोष दूर करने का अत्यंत सरल उपाय : इसके लिए सम्बंधित व्यक्ति को अपने घर के वायव्य कोण (N -W )में नित्य सरसों का तेल में बराबर मात्रा में अगर का तेल मिलाकर दीपक पूरे पितृ पक्ष में नित्य लगाना चाहिए+दिया पीतल का हो तो ज्यादा अच्छा है ,दीपक कम से कम 10 मिनट नित्य जलना आवश्यक है।


इन उपायों के अतिरिक्त वर्ष की प्रत्येक अमावस्या को दोपहर के समय गूगल की धूनी पूरे घर में सब जगह घुमाएं ,शाम को आंध्र होने के बाद पितरों के निमित्त शुद्ध भोजन बनाकर एक दोने में साड़ी सामग्री रख कर किसी बबूल के वृक्ष अथवा पीपल या बड़ किजद में रख कर आ जाएँ,पीछे मुड़कर न देखें। नित्य प्रति घर में देसी कपूर जाया करें। ये कुछ ऐसे उपाय हैं,जो सरल भी हैं और प्रभावी भी,और हर कोई सरलता से इन्हें कर पितृ दोषों से मुक्ति पा सकता है। लेकिन किसी भी प्रयोग की सफलता आपकी पितरों के प्रति श्रद्धा के ऊपर निर्भर करती है।


*पितृदोष निवारण के लिए करें विशेष उपाय* ( *नारायणबलि नागबलि*)

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अक्सर हम देखते हैं कि कई लोगों के जीवन में परेशानियां समाप्त होने का नाम ही नहीं लेती। वे चाहे जितना भी समय और धन खर्च कर लें लेकिन काम सफल नहीं होता। ऐसे लोगों की कुंडली में निश्चित रूप से पितृदोष होता है।


यह दोषी पीढ़ी दर पीढ़ी कष्ट पहुंचाता रहता है, जब तक कि इसका विधि-विधानपूर्वक निवारण न किया जाए। आने वाली पीढ़ीयों को भी कष्ट देता है। इस दोष के निवारण के लिए कुछ विशेष दिन और समय तय हैं जिनमें इसका पूर्ण निवारण होता है। श्राद्ध पक्ष यही अवसर है जब पितृदोष से मुक्ति पाई जा सकती है। इस दोष के निवारण के लिए शास्त्रों में नारायणबलि का विधान बताया गया है। इसी तरह नागबलि भी होती है।


*क्या है नारायणबलि और नागबलि*

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नारायणबलि और नागबलि दोनों विधि मनुष्य की अपूर्ण इच्छाओं और अपूर्ण कामनाओं की पूर्ति के लिए की जाती है। इसलिए दोनों को काम्य कहा जाता है। नारायणबलि और नागबलि दो अलग-अलग विधियां हैं। नारायणबलि का मुख्य उद्देश्य पितृदोष निवारण करना है और नागबलि का उद्देश्य सर्प या नाग की हत्या के दोष का निवारण करना है। इनमें से कोई भी एक विधि करने से उद्देश्य पूरा नहीं होता इसलिए दोनों को एक साथ ही संपन्न करना पड़ता है।


*इन कारणों से की जाती है नारायणबलि पूजा*


जिस परिवार के किसी सदस्य या पूर्वज का ठीक प्रकार से अंतिम संस्कार, पिंडदान और तर्पण नहीं हुआ हो उनकी आगामी पीढि़यों में पितृदोष उत्पन्न होता है। ऐसे व्यक्तियों का संपूर्ण जीवन कष्टमय रहता है, जब तक कि पितरों के निमित्त नारायणबलि विधान न किया जाए।प्रेतयोनी से होने वाली पीड़ा दूर करने के लिए नारायणबलि की जाती है।परिवार के किसी सदस्य की आकस्मिक मृत्यु हुई हो। आत्महत्या, पानी में डूबने से, आग में जलने से, दुर्घटना में मृत्यु होने से ऐसा दोष उत्पन्न होता है।


*क्यों की जाती है यह पूजा* ...?

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शास्त्रों में पितृदोष निवारण के लिए नारायणबलि-नागबलि कर्म करने का विधान है। यह कर्म किस प्रकार और कौन कर सकता है इसकी पूर्ण जानकारी होना भी जरूरी है। यह कर्म प्रत्येक वह व्यक्ति कर सकता है जो अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता है। जिन जातकों के माता-पिता जीवित हैं वे भी यह विधान कर सकते हैं।संतान प्राप्ति, वंश वृद्धि, कर्ज मुक्ति, कार्यों में आ रही बाधाओं के निवारण के लिए यह कर्म पत्नी सहित करना चाहिए। यदि पत्नी जीवित न हो तो कुल के उद्धार के लिए पत्नी के बिना भी यह कर्म किया जा सकता है।यदि पत्नी गर्भवती हो तो गर्भ धारण से पांचवें महीने तक यह कर्म किया जा सकता है। घर में कोई भी मांगलिक कार्य हो तो ये कर्म एक साल तक नहीं किए जा सकते हैं। माता-पिता की मृत्यु होने पर भी एक साल तक यह कर्म करना निषिद्ध माना गया है।


*कब नहीं की जा सकती है नारायणबलि नागबलि*

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नारायणबलि गुरु, शुक्र के अस्त होने पर नहीं किए जाने चाहिए। लेकिन प्रमुख ग्रंथ निर्णण सिंधु के मतानुसार इस कर्म के लिए केवल नक्षत्रों के गुण व दोष देखना ही उचित है। नारायणबलि कर्म के लिए धनिष्ठा पंचक और त्रिपाद नक्षत्र को निषिद्ध माना गया है।धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरण, शततारका, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद एवं रेवती, इन साढ़े चार नक्षत्रों को धनिष्ठा पंचक कहा जाता है। कृतिका, पुनर्वसु, विशाखा, उत्तराषाढ़ा और उत्तराभाद्रपद ये छह नक्षत्र त्रिपाद नक्षत्र माने गए हैं। इनके अलावा सभी समय यह कर्म किया जा सकता है।


*पितृपक्ष सर्वाधिक श्रेष्ठ समय*

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नारायणबलि- नागबलि के लिए पितृपक्ष सर्वाधिक श्रेष्ठ समय बताया गया है। इसमें किसी योग्य पुरोहित से समय निकलवाकर यह कर्म करवाना चाहिए। यह कर्म गंगा तट अथवा अन्य किसी नदी सरोवर के किनारे में भी संपन्न कराया जाता है। संपूर्ण पूजा तीन दिनों की होती है।

संकलित

*श्री पित्रलोक अधीश्वर अर्यमा पित्रराजाय नमः*

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*एक विशेष उपाय*



पितृ पक्ष में प्रतिदिन दक्षिण दिशा में मुंह कर के दिन में देढ़ बजे के पहले कंडा गर्म कर के 

उस पर गुड़ घी की 5-7 आहुतियां सर्व पितरेभ्यो स्वधा

या पुरखों के नाम से छोडे बाद में सीधी हथेली में जल ले कर धूप पर तीन बार घुमाकर अंगूठे से जमीन पर छोड़ें

जिन पुरखों का गया श्राद्ध हो चूका हो उनके लिए भी किया जा सकता है

शास्त्रों में कोई मनाही नहीं है

भ्रम में न रहे

किसी को भोजन पर आमंत्रित करने से कोई कैसे नाराज हो सकता है


आप अपने सभी दिवंगत संबंधियों नातेदारों रिश्ते दालों ननिहाल पक्ष दादा दादी का परिवार सहित अपने दिवंगत मित्र मंडली सहित अपने दिवंगत पालतू पशु पक्षियों सहित देश पर शहीद जवानों को भी आमंत्रित कर उनसे आपका आतिथ्य ग्रहण करने की प्रार्थना कर सकते हैं

कयी लोग अकाल मृत्यु मर जाते हैं आप उनसे भी निवेदन कर सकते हैं

अभी कयी गोवंश गायों की लिंपी वायरस बिमारी से अकाल मृत्यु हुई है आप उन्हें भी आमंत्रित कर उनकी आत्म शांति के लिए प्रार्थना कर सकते हैं

ये एक नया आध्यात्मिक अनुभव होगा

जो कर सकते हैं अवश्य ही करें

🙏🕉️


🌞 *पितृपक्ष सोलह श्राद्ध के समय एवं नियमों की रूपरेखा-----*🌞


०१)10/09/22- शनिवार- पूर्णिमा 

०२) 11/09/22- रविवार- प्रतिपदा

०३) 12/09/22- सोमवार- द्वितीया

०४) 13/09/22- मंगलवार- तृतीया

०५) 14/09/22- बुधवार- चतुर्थी

०६) 15/09/22-। गुरुवार- पंचमी

०७) 16/09/22- शुक्रवार- षष्ठी

०८) 17/09/22- शनिवार- सप्तमी

०९) 18/09/22- रविवार- अष्टमी

१०) 19/09/22- सोमवार- नवमी

११) 20/09/22- मंगलवार-दशमी

१२) 21/09/22- बुधवार- एकादशी

१३) 22/09/22- गुरुवार- द्वादशी

१४) 23/09/22- शुक्रवार- तृयोदशी

१५) 24/09/22- शनिवार- चतुर्दशी

१६) 25/06/22- रविवार- अमावस्या

👉*श्राद्ध कर्म से जुड़े कुछ बिन्दुओं को सेव कर रखें-*🙏

👉 श्राद्ध कर्म करने और ब्राह्मण भोजन का समय *प्रातः 11:36 बजे से मध्याह्न 12:24 बजे* तक का है। इस समय को *कुतप वेला* कहते हैं। यह समय मुख्य रूप से *श्राद्ध* के लिए प्रशस्त है।

👉 धर्मग्रन्थों के अनुसार श्राद्ध के सोलह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी तिथि पर श्राद्ध करते हैं।

👉 ऐसी मान्यता है कि पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है। वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है।

👉 पूर्णिमा तिथि के दिन देहान्त होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है। इसी दिन से महालय (श्राद्ध) का प्रारम्भ भी माना जाता है।

👉 श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए।

👉 पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण *वर्षभर* तक प्रसन्न और तृप्त रहते हैं। 

👉 धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि पितरों को पिण्ड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है।

👉 श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्ड दान तथा तिलांजलि प्रदान कर सन्तुष्ट करेंगे। इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। यही कारण है कि धर्मशास्त्रों में प्रत्येक गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करने के लिए कहा गया है।

🌞 *कुछ विशेष बातें-*🌞

👉 1- श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए। दस दिन के अन्दर बछड़े को जन्म देने वाली गाय के दूध का उपयोग श्राद्ध कर्म में नहीं करना चाहिए।

👉 2- श्राद्ध में चॉंदी के बर्तनों का उपयोग व दान पुण्यदायक तो है ही, राक्षसों का नाश करने वाला भी माना गया है। पितरों के लिए चॉंदी के बर्तन में सिर्फ पानी ही दिया जाए तो वह अक्षय और तृप्तिकारक होता है। पितरों के लिए अर्घ्य, पिण्ड और भोजन के बर्तन भी चॉंदी के हों तो और भी श्रेष्ठ माना जाता है।

👉 3- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाते समय परोसने के बर्तन दोनों हाथों से पकड़कर लाने चाहिए, एक हाथ से लाए अन्न पात्र से परोसा हुआ भोजन राक्षस छीन लेते हैं।

👉 4- ब्राह्मण को भोजन 'मौन रहकर' एवं व्यञ्जनों की प्रशंसा किए बगैर करना चाहिए, क्योंकि पितर तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं, जब तक ब्राह्मण मौन रहकर भोजन करें !

👉 5- जो पितृ, शस्त्र आदि से मारे गए हों उनका श्राद्ध *मुख्य तिथि के अतिरिक्त चतुर्दशी* को भी करना चाहिए। इससे वे प्रसन्न होते हैं। 

👉 श्राद्ध गुप्त रूप से करना चाहिए। पिण्डदान पर कुदृष्टि पड़ने से वह पितरों तक नहीं पहुॅंचता है।

  👉 6- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाना आवश्यक है, जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण के श्राद्ध कर्म करता है, उसके घर में पितर भोजन नहीं करते हैं। वे शाप देकर लौट जाते हैं। 

👉 7- श्राद्ध में जौं, कांगनी, मटर और सरसों का उपयोग श्रेष्ठ रहता है। तिल की मात्रा अधिक होने पर श्राद्ध अक्षय हो जाता है। तिल वास्तव में पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं। कुशा (एक प्रकार की घास) राक्षसों से बचाती है।

👉 8- दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए। वन, पर्वत, पुण्यतीर्थ एवं मन्दिर दूसरे की भूमि पर श्राद्ध किया जा सकता है, क्योंकि इन पर किसी का स्वामित्व नहीं माना गया है। 

👉 9- चाहे मनुष्य देवकार्य में ब्राह्मण का चयन करते समय न सोचे, लेकिन पितृ कार्य में योग्य ब्राह्मण का ही चयन करना चाहिए, क्योंकि श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों द्वारा ही होती है।

👉 10- जो व्यक्ति किसी कारणवश एक ही नगर में रहने वाली अपनी बहिन, दामाद और भाऩजे को श्राद्ध में भोजन नहीं कराता, उसके यहॉं पितर के साथ ही देवता भी अन्न ग्रहण नहीं करते।

👉 11- श्राद्ध करते समय यदि कोई भिक्षुक आ जाए तो उसे आदरपूर्वक भोजन करवाना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसे समय में घर आए याच़क को भगा देता है उसका श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता है।

👉 धर्मग्रन्थों के अनुसार सायंकाल का समय राक्षसों के लिए होता है, यह समय सभी कार्यों के लिए निन्दित है। अत: शाम के समय श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए।

👉 13- श्राद्ध में प्रसन्न पितृगण मनुष्यों को पुत्र, धन, विद्या, आयु, आरोग्य, लौकिक सुख, मोक्ष और स्वर्ग प्रदान करते हैं। श्राद्ध के लिए कृष्णपक्ष श्रेष्ठ माना गया है।

👉 14- जैसा कि रात्रि को राक्षसी समय माना गया है, रात में श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए। वैसे ही दोनों सन्ध्याओं के समय प्रातः काल व सायं भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए। दिन के आठवें मुहूर्त्त (कुतपकाल) अपराह्न में पितरों के लिए दिया गया दान अक्षय होता है।

👉 15- श्राद्ध में ये चीजें होना महत्त्वपूर्ण हैं- गङ्गा जल, दूध, शहद, दौहित्र, कुश और तिल।

👉 केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध है। सोने, चॉंदी, कांसे, ताम्बा,पीतल के पात्र उत्तम हैं। इनके अभाव में पत्तल उपयोग में लाई जा सकती है।

👉 16- तुलसी से पितृगण प्रसन्न होते हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि पितृगण गरुड़ पर सवार होकर विष्णुलोक चले जाते हैं। तुलसी से पिण्ड की पूजा करने से पितर लोग प्रलयकाल तक सन्तुष्ट रहते हैं।

👉 17- रेशमी, कम्बल, ऊन, लकड़ी, तृण, पर्ण, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ हैं। आसन में लोहा (स्टील) किसी भी रूप में प्रयुक्त नहीं होना चाहिए।

👉 18- चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, अपवित्र फल या अन्न श्राद्ध में निषेध हैं।

*🌞 श्राद्ध के प्रमुख अङ्ग इस प्रकार हैं-*🌞

👉 तर्पण- इसमें दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गन्ध मिश्रित जल पितरों को तृप्त करने हेतु दिया जाता है। श्राद्ध पक्ष में इसे नित्य करने का विधान है।

👉 भोजन व पिण्ड दान- पितरों के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन दिया जाता है। श्राद्ध करते समय चावल या जौं के पिण्ड दान भी किए जाते हैं।

👉 वस्त्र दान करना श्राद्ध का मुख्य लक्ष्य भी है।

👉 यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है। जब तक भोजन कराकर वस्त्र और दक्षिणा नहीं दी जाती उसका फल नहीं मिलता।

👉 21 - श्राद्ध तिथि के पूर्व ही यथाशक्ति विद्वान ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलावा दें

👉 22- पितरों की पसन्द का भोजन दूध, दही, घी और शहद के साथ अन्न से बनाए गए पकवान जैसे खीर आदि है। 

👉 23- तैयार भोजन में से गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए थोड़ा सा भाग निकालें।

👉 इसके बाद हाथ में जल, अक्षत (चावल), चन्दन, फूल और तिल लेकर संकल्प करें।

👉 24- श्वान और कौए के निमित्त निकाला भोजन कुत्ते और कौए को ही कराएं, किन्तु देवता और चींटी का भोजन गाय को खिला सकते हैं। इसके बाद ही ब्राह्मणों को भोजन कराएं। 

👉 पूर्ण तृप्ति से भोजन कराने के बाद ब्राह्मण को तिलक लगाकर यथाशक्ति कपड़े, अन्न और दक्षिणा दान देकर आशीर्वाद पाएं।

👉 25- इसके बाद परिजनों, मित्रों और रिश्तेदारों को भोजन कराएं।

👉 26- पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है। पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में सपिण्डों (एक ही परिवार के) को श्राद्ध करना चाहिए । एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध करता है।

     👉 पितृ पक्ष सोलह दिन की समयावधि होती है, जिसमें पुत्र या सगोत्र अपने पूर्वजों को भोजन अर्पण कर दिया समाधान


 पितृपक्ष ( महालय ) के आरंभ होने से कुछ दिन पूर्व ही लोगों में पितृपक्ष को लेकर अनेक तरह की शंकाये उत्पन्न होती हैं और वे पंडितों से इस के संदर्भ में प्रश्न करना शुरू कर देते हैं ।

श्राद्ध क्या है, कब करें, कैसे करें, तिथि कौन सी होगी इत्यादि। प्रस्तुत लेख में मैंने इस तरह की सभी शंकाओं का समाधान करने का प्रयास किया है । साथ ही इस वर्ष किस तिथि का श्राद्ध किस तारीख में पड़ेगा उसकी सूची संलग्न की है । सभी लोग इसका लाभ उठावे ।


श्राद्ध क्या है

 पितृगणों के निमित्त श्रद्धा पूर्वक किए जाने वाले कर्म विशेष को श्राद्ध कहते हैं ।

 "श्रद्धया इदं श्राद्धम"

 श्राद्ध कर्म में वाक्य की शुद्धता तथा क्रिया की शुद्धता मुख्य रूप से आवश्यक है ।

" पितरों वाक्यमिच्छन्ति भावमिच्छन्ति देवता"


महालय में मुख्यतः दो तरह के श्राद्ध किए जाते 

1. पार्वण श्राद्ध 2. एकोदिष्ट श्राद्ध, परंतु कुछ लोग जो मृत्यु के समय सपिण्डन नहीं करवा पाए वे इन दिनों में सपिण्डन भी करवाते हैं ।

        जिस श्राद्ध में प्रेत पिंड का पितृ पिण्डों में सम्मेलन किया जाता है उसे सपिण्डन श्राद्ध कहते हैं । इसी सपिण्डन श्राद्ध को सामान्य बोलचाल की भाषा में पितृ मेलन या पटा में मिलाना कहते हैं ।

प्रश्न उठता है सपिण्डन कब करना चाहिए?

सपिण्डन के विषय में तत्वदर्शी मुनियों ने अंत्येष्टि से 12 वे दिन, तीन पक्ष, 6 माह में या 1 वर्ष पूर्ण होने पर सपिण्डन करने को कहा है । 1 वर्ष पूर्ण होने पर भी यदि सपिण्डन नहीं किया गया है तो 1 वर्ष उपरांत कभी भी किया जा सकता है परंतु जब तक सपिण्डन क्रिया संपन्न नहीं हो जाती तब तक सूतक से निवृत्ति नहीं मानी जाती जिसका उल्लेख गरुड़ पुराण के 13 वे अध्याय में किया गया है और कर्म का लोप होने से दोष का भागी भी बनना पड़ता है ।

श्राद्ध करना क्यों आवश्यक है ।

इस सृष्टि में हर वस्तु का जोड़ा है सभी चीजें अपने जोड़े की पूरक हैं उन्हीं जोड़ों में एक जोड़ा दृश्य और अदृश्य जगत का भी है और यह दोनों एक दूसरे पर निर्भर हैं । पितृलोक भी अदृश्य जगत का हिस्सा है और अपनी सक्रियता के लिए दृश्य जगत के श्राद्ध पर निर्भर है । तो उनकी सक्रियता के निमित्त हमें श्राद्ध करना चाहिए । अर्यमा भगवान श्री नारायण का अवतार हैं एवं संपूर्ण जगत के प्राणियों के पितृ हैं । तो जब हम पितरों के निमित्त कोई कार्य करते ह

🙏 अपने वंशजों से क्या चाहते हैं पितर,पितृ गीत भावार्थ सहित...*


👉 विष्णुपुराण में पितरों के द्वारा कहे गये वे श्लोक हैं जो *पितृ गीत* के नाम से जाने जाते हैं।


इस गीत से पता लगता है कि पितरगण अपने वंशजों (संतानों) से पिण्ड-जल और नमस्कार आदि पाने के लिए

कितने लालायित रहते हैं।


यह अनुभूति ही पितरों की अपने वंशजों से भावनात्मक लगाव की परिचायक है। 


*कूर्मपुराण के अनुसार पितर अपने पूर्व गृह यह जानने के लिए आते हैं कि उनके परिवार के लोग उन्हें विस्मृत तो नहीं कर चुके हैं।*


इस पितृ गीत का सार यह है कि मनुष्य को अपनी शक्ति व सामर्थ्यानुसार पितरों के उद्देश्य से अन्न,फल,जल,फूल आदि

कुछ-न-कुछ अवश्य अर्पण करना चाहिए। 


*जिनको भगवान ने सम्पत्ति दी है,उनको तो दिल खोल कर पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध व दान करना चाहिए।*


*जिनकी आय सीमित है उनको भी परलोक में पितरों को सुख पहुंचाने के लिए स्वयं कष्ट सहकर श्राद्ध-तर्पण आदि करना चाहिए।*


जो लोग अपने मृत माता-पिता और प्रियजनों को भूल जाते हैं और श्राद्ध के माध्यम से पितृपक्ष में उन्हें याद नहीं करते हैं, उनके लिए कुछ भी नहीं करते हैं, उनके पितर दु:खी व निराश होकर शाप देकर अपने लोक वापिस लौट जाते हैं फिर इस अभिशप्त परिवार को जीवन भर कष्ट-ही-कष्ट झेलना पड़ता है और मरने के बाद नरक में जाना पड़ता है। 


*मार्कण्डेयपुराण में बताया गया है कि जिस कुल में श्राद्ध नहीं होता है, उसमें दीर्घायु, नीरोग व वीर संतान जन्म नहीं लेती है और परिवार में कभी मंगल नहीं होता है ।*


यदि परिजन श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करते हैं तो पितर उन्हें आशीर्वाद देकर अपने लोक चले जाते हैं । श्राद्ध से बढ़कर और कोई कल्याणकारी कार्य नहीं है और वंशवृद्धि के लिए तो पितरों की आराधना ही एकमात्र उपाय है । परिवार में किसी संतान का जन्म होने वाला हो तो पितर अच्छी आत्माओं को संतान रूप में भेजने में सहयोग करते हैं, पितरगण हमारी मदद करते हैं, प्रेरणा देते है, प्रकाश देते हैं, तथा आनन्द और शान्ति देते हैं।


*पितृ गीत - हिन्दी अर्थ सहित....*👇


*अपि धन्य: कुले जायादस्माकं मतिमान्नार: ।*

*अकुर्वन्वित्तशाठ्यं य: पिण्डान्नो निर्वपिष्यति ।।*


पितृगण कहते हैं — हमारे कुल में भी क्या कोई ऐसा बुद्धिमान, धन्य पुरुष पैदा होगा जो धन के लोभ को छोड़कर हमें पिण्डदान करेगा ।


*रत्नं वस्त्रं महायानं सर्वभोगादिकं वसु ।*

*विभवे सति विप्रेभ्यो योऽस्मानुद्दिश्य दास्यति।।*


जो प्रचुर सम्पत्ति का स्वामी होने पर हमारे लिए ब्राह्मणों को बढ़िया-बढ़िया रत्न, वस्त्र, सवारियां और सब प्रकार की भोग-सामग्री देगा।


*अन्नं न वा यथाशक्त्या कालेऽस्मिन्भक्तिनम्रधो:।*

*भोजयिष्यति विप्राग्रयांस्तन्मात्रविभवो नर: ।।*


बड़ी सम्पत्ति न होगी, केवल खाने-पहनने लायक होगी तो जो श्राद्ध के समय भक्ति के साथ विनम्र बुद्धि से श्रेष्ठ ब्राह्मणों को शक्ति भर भोजन ही करा देगा।


*असमर्थोऽन्नदानस्य धान्यमामं स्वशक्तित: ।*

*प्रदास्यतिद्विजाग्येभ्य: स्वल्पाल्पां वापि दक्षिणाम् ।।*


भोजन कराने में भी असमर्थ होने पर जो श्रेष्ठ ब्राह्मणों को कच्चा धान और थोड़ी सी दक्षिणा ही दे देगा।


*तत्राप्यसामर्थ्ययुत: कराग्राग्रस्थितांस्तिलान् ।*

*प्रणम्य द्विजमुख्याय कस्मैचिद्भूप दास्यति ।।*


यदि इसमें भी असमर्थ होगा तो किन्हीं श्रेष्ठ ब्राह्मण को एक मुट्ठी तिल ही दे देगा।


*तिलैस्सप्ताष्टभिर्वापि समवेतं जलांजलिम् ।*

*भक्तिनम्रस्समुद्दिश्य भुव्यस्माकं प्रदास्यति ।।*


अथवा हमारे उद्देश्य से भक्तिपूर्वक विनम्र-चित्त से सात-आठ तिल से युक्त जल की अंजलि ही दे देगा।


*यत: कुतश्चित्सम्प्राप्य गोभ्यो वापि गवाह्निकम्।*

*अभावे प्रोणयन्नस्मांछ्रद्धायुक्त: प्रदास्यति ।।*


इसका भी अभाव होगा तो कहीं से एक दिन का चारा ही लाकर प्रेम और श्रद्धापूर्वक हमारे लिए गौ को खिला देगा।


*सर्वाभावे वनं गत्वा कक्षमूलप्रदर्शक: ।*

*सूर्यादिलोकपालानामिदमुच्चैर्वदिष्यति ।।*


इन सभी वस्तुओं का अभाव होने पर जो वन में जाकर दोनों हाथ ऊंचे उठाकर कांख दिखाता हुआ पुकार कर सूर्य आदि लोकपालों से कहेगा कि—


*न मेऽस्ति वित्तं धनं च नान्यंच्छ्राद्धोपयोग्यंस्वपितृन्नतोऽस्मि* ।

*तृप्यन्तु भक्त्यापितरो मयैतौ कृतौ भुजौ वर्त्मनि मारुतस्य ।।*


मेरे पास श्राद्ध के योग्य न वित्त है, न धन है, न कोई अन्य सामग्री है, अत: मैं अपने पितरों को नमस्कार करता हूँ । वे मेरी भक्ति से ही तृप्त हों। मैंने अपनी दोनों भुजायें दीनता से आकाश में उठा रखी हैं।


*इस प्रकार पितरों के प्रति श्रद्धाभाव ही उन्हें सबसे बड़ी तृप्ति प्रदान करता है....*


*सदैव प्रसन्न रहिये। जो प्राप्त है, पर्याप्त है....* बस इसी सोच के साथ आप अपना व अपने परिवार का ख्याल रखते हुयें सदा हंसते - मुस्कुराते रहें और सदा चलते रहें जोश, जुनून और जज्बे के साथ ....✍️

*🙏जय श्री श्याम - जय श्री राम 🙏*

20220731

 Study while others are sleeping : work while others are loafing : prepare while others are playing ; and dream while others are wishing .

                                        William Arther Ward Shivaji says to Parvati - " Nar tan sam nahi kabniun dehi " Is man really this The best creation of the universe? Man is the only creature, who keeps his head high and straight, he is expected not to do any such thing that he has to lower his head, he is the only animal that can openly use his hands We can see any creature, it takes the work of feet with hands, but human walks with feet and does many useful work through hands, all the artifacts of the world are the gift of human hands, these artifacts are meaningful to the creativity of the creator. If there was no man, then why would the creations of the world which we call miracles or wonders, why would they be possible? Looking at the activities of human beings , it is natural to wonder why this small creature has become so powerful , which makes every substance of the world useful for itself , and even subdues the big and violent creatures . It is quite natural to be surprised to see the ability of a mahout, who can control a giant elephant-like creature with the control of just one inch. To find out the secret of human potential, man started the search. This important fact came to his hands that nature has given the basic instincts called reproduction and self-defense to the living beings, all the energy of the living beings is spent in the satisfaction of these two instincts, but even after the satisfaction of these two instincts, human beings have something. The energy remains, this energy of his, in the form of his creative instinct or working talent.

It is manifested in Pratibha, by the satisfaction of this instinct, man makes new discoveries and presents works of art. Those artifacts keep getting destroyed due to rain, heat and the wrath of nature, then they provide the material of research and texts to the future researchers, the barriers of ancient civilizations, which were hidden in the womb of the earth and in the sea, human beings put in their efforts. exposes them and keeps on exposing its ancient traditions. The story of the development of life is written in the core of nature in the form of rocks and remains. Those who have the ability to read it, they can say that after the process of hundred years of development, the creation of the human body has become possible, every part of it has passed through which steps of development, its complete account is nature. marked on the pages. The sages of Indian knowledge science, aiming at this process, have said that after enjoying eighty four lakh vaginas, a human vagina is obtained. Only a man who has attained this superior yoni can hypothesize that the fundamental unity of life is a fact of nature. To talk of universal brotherhood is the practical form of this fact, which knows that the only source of all living beings is the one supreme element. , he also believes that living beings are bound together by a cord of kinship like the children of the same father . The scholars of consciousness development or self-development have presented the conclusion that only human being is such a living being who is born with an independent personality, the boon of human life is that he is a free will person and he can act according to his will. The curse of an independent personality is that he finds himself a completely different being, self-similar, he does not find anyone else, his separate personality is like the thorns of his personality, struggling at every step, facing conflict becomes his destiny. The person should continue to behave according to his free will and keep fighting, it is the ultimate of life even from human beings.

Purushartha is possible, when a person eliminates the thorns of the characteristics of his personality and makes them smooth (rounded), which is capable of doing this, the society seeing him in the form of a seeker human, in the form of an incarnate man. I worship a person who is called an Avatar, considers everyone equal to himself and tries to meet him by considering himself as his equal. When Shri Ram ji comes back to Ayodhya after a long penance, then he gives an example of the above type of behavior, viz. Amit rupa pakate tehikala. Jatha jog met everyone kripala Intellectualism is the specialty of human being, it gives man the tendency to analyze, by which he is engaged in the scientific study of the visible world, as well as it gives the person the nature to do more than one and accordingly make him self-centred and selfish. gives. A selfish person by his conduct sometimes leaves the animals behind. Seeing this category of people, Madam D. The more I see of men , the more I admire dogs . That is, "The more I see about man, the more I love dogs." It is also true that a dog who eats salt protects the owner's property from a thief, a watchman who eats salt or a servant steals. Becomes a thief's assistant. Now he is also seen playing the role of a helper in misdemeanors like kidnapping , rape , murder . Human life is situated on the ground of reality, his dreams are his ideals, from which he draws inspiration for progress, development and upward movement. By fulfilling dreams, he moves on the path of development and accomplishes Abhyudaya and Nirshreyas, how meaningful is the statement of famous English novelist Ruskin, the practice of humanity is as beautiful and pleasant as the morning sun, dreams are the chemistry of creativity to the reality of human life. The importance of man is not in achievement, but in what he does spiritual practice to achieve.


              जीवन को एक साधना समझिये


Study while others are sleeping : work while others are loafing : prepare while others are playing ; and dream while others are wishing . " - William Arther Ward





 शिवजी पार्वतीजी से कहते हैं- " नर तन सम नहिं कबनिउँ देही " क्या मनुष्य वास्तव में इस सृष्टि की सर्वोत्तम कृति है ? मनुष्य ही एक ऐसा जीवधारी है , जो अपना सिर ऊँचा एवं सीधा रखता है उससे आशा की जाती है कि वह कोई ऐसा काम न करे , जिससे उसे सिर नीचा करना पड़े केवल वही एक ऐसा प्राणी है , जो खुलकर अपने हाथों का प्रयोग कर सकता है हम किसी भी जीव को देख लें वह हाथों से पैरों का काम लेता है , परन्तु मानव पैरों से चलता फिरता है और हाथों द्वारा जीवनोपयोगी अनेकानेक कार्य करता है विश्व की समस्त कलाकृतियों मनुष्य के हाथों की ही देन हैं , ये कलाकृतियों सृजनहार की सृजनशीलता को सार्थक करती हैं यदि मनुष्य न होता , तो विश्व की जिन कृतियों को हम चमत्कार अथवा आश्चर्य की संज्ञा प्रदान करते हैं , वे क्योंकर सम्भव होतीं ? मानव के कार्यकलापों को देखकर यह सोचना स्वाभाविक है कि यह छोटा सा जीव इतना सामर्थ्यवान क्योंकर बन सका है , जो विश्व के प्रत्येक पदार्थ को अपने लिए उपयोगी बना लेता है , यहाँ तक कि बड़े बड़े हिंसक जीवों को भी वश में कर लेता है . हाथी सदृश विशालकाय जीव को मात्र एक इंच के अंकुश द्वारा अपने वश में करने वाले महावत की सामर्थ्य को देखकर आश्चर्यचकित हो जाना सर्वथा स्वाभाविक है क्षुब्ध अथाह महासागर की उत्ताल लहरों को चीरते हुए जलपोत मानव की संघर्ष वृत्ति के परिचायक हैं . मानव की सामर्थ्य के रहस्य का पता लगाने के लिए मानव ने खोज आरम्भ की . यह महत्वपूर्ण तथ्य उसके हाथ लगा कि प्रजनन और आत्मरक्षा नाम मूल वृत्तियाँ प्रकृति ने ईश्वर ने जीवमात्र को प्रदान की हैं जीवों की समस्त ऊर्जा इन दो वृत्तियों की सन्तुष्टि में व्यय हो जाती है , परन्तु इन दोनों वृत्तियों की सन्तुष्टि के उपरान्त भी मानव के पास कुछ ऊर्जा शेष रह जाती है , उसकी यह ऊर्जा , उसकी सृजन - वृत्ति अथवा कारयित्री प्रतिभा के रूप

में प्रकट होती है , प्रतिभा नामक इस वृत्ति की सन्तुष्टि द्वारा मानव नवीन अन्वेषण करता है और कला - कृतियाँ प्रस्तुत करता है . वर्षा , आतप एवं प्रकृति के प्रकोप के थपेड़े खाकर वे कलाकृतियाँ नष्ट होती रहती हैं , तब वे भविष्य के शोधकर्ताओं को शोध एवं ग्रन्थ प्रणयन की सामग्री प्रदान करती हैं प्राचीन सभ्यताओं के जो अवरोध पृथ्वी के गर्भ में एवं समुद्र में छिपे पड़े रहते मनुष्य अपने प्रयत्नों द्वारा उन्हें उजागर करता है और अपनी प्राचीन परम्पराओं को उजागर करता रहता है . चट्टानों और अवशेषों के रूप में प्रकृति के क्रोड़ में जीवन के विकास की कहानी अंकित है . इसको पढ़ने की सामर्थ्य जिन्हें प्राप्त है , वे कह सकते हैं कि विकास की शत साहस वर्षों की प्रक्रिया के उपरान्त मानव शरीर का निर्माण सम्भव हुआ है , उसका एक - एक अंग विकास की किन - किन सीढ़ियों में होकर गुजरा है , इसका पूरा लेखा प्रकृति के पृष्ठों पर अंकित है . भारतीय ज्ञान विज्ञान के मनीषियों ने इस प्रक्रिया को लक्ष्य करके कहा है कि चौरासी लाख योनियों को भोगने के बाद मनुष्य योनि प्राप्त होती है . इस श्रेष्ठ योनि को प्राप्त करने वाला मनुष्य ही इस प्रकार की परिकल्पना कर सकता है कि जीवन की मूलभूत एकता प्रकृति का एक तथ्य है विश्वबन्धुत्व की बात करना इस तथ्य का व्यावहारिक रूप है , जो यह जानता है कि जीवमात्र का स्रोत एक ही परम तत्व है , वह यह भी मानता है कि जीवमात्र एक ही पिता की सन्तान के समान बन्धुत्व की रज्जु द्वारा परस्पर आबद्ध हैं . चेतना विकास या आत्म विकास के अध्येताओं ने यह निष्कर्ष प्रस्तुत किया है कि केवल मनुष्य ही एक ऐसा जीव है जो एक स्वतंत्र व्यक्तित्व लेकर जन्म लेता है , मनुष्य जीवन का वरदान यह है कि वह स्वतंत्र इच्छा प्राप्त व्यक्ति है और वह इच्छानुसार कार्य कर सकता है स्वतंत्र व्यक्तित्व का अभिशाप यह है कि वह अपने को सर्वथा भिन्न प्राणी पाता है आत्म - सदृश वह अन्य किसी को नहीं पाता है उसका पृथक् व्यक्तित्व उसके व्यक्तित्व के कौंटों के समान होता है पग - पग पर संघर्ष करना टकराव झेलना उसकी नियति बन जाती है . व्यक्ति अपनी स्वतंत्र इच्छानुसार आचरण भी करता रहे और संघर्ष बचता रहे यह मानव से भी जीवन का परमपुरुषार्थ है यह तब सम्भव होता है , जब मनुष्य अपने व्यक्तित्व की विशिष्टताओं रूपी काँटों ( Angularities ) को समाप्त करके उन्हें चिकना ( Rounded ) बना लेता है , जो ऐसा करने में समर्थ होता है समाज उसे साधक मानव के रूप में देखकर अवतारी पुरुष के रूप में पूजता है अवतारी कहा जाने वाला व्यक्ति सबको अपने समान समझता है और अपने को उनके समान समझकर मिलने का प्रयत्न करता है मिस के अमौलियस रुक्का ने कहा था कि हमें प्रत्येक के साथ समान धरातल ( Level ) पर मिलने का प्रयत्न करना चाहिए 14 वर्ष की दीर्घकालीन तपस्या के उपरान्त जब श्रीराम जी अयोध्या वापस आते हैं , तब वे उक्त प्रकार के व्यवहार का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं , यथा अमित रूप प्रकटे तेहिकाला । जथा जोग मिले सबहिं कृपाला ॥ बौद्धिकता मानव की विशिष्टता है , वह मनुष्य को विश्लेषण की प्रवृत्ति प्रदान करती है , जिसके द्वारा वह दृश्यमान जगत् के वैज्ञानिक अध्ययन में प्रवृत्त होता है साथ ही वह व्यक्ति को एक से अनेक करने का स्वभाव प्रदान कर देती है और तदनुसार उसको आत्मकेन्द्रित एवं स्वार्थी बना देती है . स्वार्थाध व्यक्ति अपने आचरण द्वारा कभी कभी पशुओं को पीछे छोड़ देता है . इस कोटि के मनुष्यों को देखकर मैडम डी . सीविज ने लिखा है कि The more I see of men , the more I admire dogs . अर्थात् " मनुष्य के बारे में जितना अधिक मैं देखती हूँ , उतना ही अधिक में कुत्तों को प्यार करती हूँ . " बात भी सही है नमक खाने वाला कुत्ता चोर से स्वामी की सम्पत्ति की रक्षा करता है , नमक खाने वाला चौकीदार या नौकर चोरी करने वाले चोर का सहायक बन जाता है . अब तो वह अपहरण , बलात्कार , हत्या जैसे कुकृत्यों में भी सहायक की भूमिका का निर्वाह करते हुए देखा जाता है . मानव जीवन यथार्थ की भूमि पर स्थित है , उसके स्वप्न उसके आदर्श होते हैं , जिनसे वह प्रगति विकास एवं ऊर्ध्वगामी होने की प्रेरणा ग्रहण करता है . स्वप्नों को साकार करके वह विकास के मार्ग पर अग्रसर होता है तथा अभ्युदय एवं निरश्रेयस् की सिद्धि करता है ख्यातिनामा अंग्रेजी उपन्यासकार रस्किन का कथन कितना सार्थक है मानवता की साधना प्रातः कालीन सूर्य के समान सुन्दर और सुखद है स्वप्न मानव जीवन के यथार्थ को रचनाधर्मिता की रसायन द्वारा पर्यवेष्टित कर देते हैं मानव की महत्ता उपलब्धि में नहीं है , बल्कि इसमें है कि वह क्या उपलब्ध करने के लिए साधना करता है .





 Study while others are sleeping : work while others are loafing : prepare while others are playing ; and dream while others are wishing .

                                        William Arther Ward Shivaji says to Parvati - " Nar tan sam nahi kabniun dehi " Is man really this The best creation of the universe? Man is the only creature, who keeps his head high and straight, he is expected not to do any such thing that he has to lower his head, he is the only animal that can openly use his hands We can see any creature, it takes the work of feet with hands, but human walks with feet and does many useful work through hands, all the artifacts of the world are the gift of human hands, these artifacts are meaningful to the creativity of the creator. If there was no man, then why would the creations of the world which we call miracles or wonders, why would they be possible? Looking at the activities of human beings , it is natural to wonder why this small creature has become so powerful , which makes every substance of the world useful for itself , and even subdues the big and violent creatures . It is quite natural to be surprised to see the ability of a mahout, who can control a giant elephant-like creature with the control of just one inch. To find out the secret of human potential, man started the search. This important fact came to his hands that nature has given the basic instincts called reproduction and self-defense to the living beings, all the energy of the living beings is spent in the satisfaction of these two instincts, but even after the satisfaction of these two instincts, human beings have something. The energy remains, this energy of his, in the form of his creative instinct or working talent.

It is manifested in Pratibha, by the satisfaction of this instinct, man makes new discoveries and presents works of art. Those artifacts keep getting destroyed due to rain, heat and the wrath of nature, then they provide the material of research and texts to the future researchers, the barriers of ancient civilizations, which were hidden in the womb of the earth and in the sea, human beings put in their efforts. exposes them and keeps on exposing its ancient traditions. The story of the development of life is written in the core of nature in the form of rocks and remains. Those who have the ability to read it, they can say that after the process of hundred years of development, the creation of the human body has become possible, every part of it has passed through which steps of development, its complete account is nature. marked on the pages. The sages of Indian knowledge science, aiming at this process, have said that after enjoying eighty four lakh vaginas, a human vagina is obtained. Only a man who has attained this superior yoni can hypothesize that the fundamental unity of life is a fact of nature. To talk of universal brotherhood is the practical form of this fact, which knows that the only source of all living beings is the one supreme element. , he also believes that living beings are bound together by a cord of kinship like the children of the same father . The scholars of consciousness development or self-development have presented the conclusion that only human being is such a living being who is born with an independent personality, the boon of human life is that he is a free will person and he can act according to his will. The curse of an independent personality is that he finds himself a completely different being, self-similar, he does not find anyone else, his separate personality is like the thorns of his personality, struggling at every step, facing conflict becomes his destiny. The person should continue to behave according to his free will and keep fighting, it is the ultimate of life even from human beings.

Purushartha is possible, when a person eliminates the thorns of the characteristics of his personality and makes them smooth (rounded), which is capable of doing this, the society seeing him in the form of a seeker human, in the form of an incarnate man. I worship a person who is called an Avatar, considers everyone equal to himself and tries to meet him by considering himself as his equal. When Shri Ram ji comes back to Ayodhya after a long penance, then he gives an example of the above type of behavior, viz. Amit rupa pakate tehikala. Jatha jog met everyone kripala Intellectualism is the specialty of human being, it gives man the tendency to analyze, by which he is engaged in the scientific study of the visible world, as well as it gives the person the nature to do more than one and accordingly make him self-centred and selfish. gives. A selfish person by his conduct sometimes leaves the animals behind. Seeing this category of people, Madam D. The more I see of men , the more I admire dogs . That is, "The more I see about man, the more I love dogs." It is also true that a dog who eats salt protects the owner's property from a thief, a watchman who eats salt or a servant steals. Becomes a thief's assistant. Now he is also seen playing the role of a helper in misdemeanors like kidnapping , rape , murder . Human life is situated on the ground of reality, his dreams are his ideals, from which he draws inspiration for progress, development and upward movement. By fulfilling dreams, he moves on the path of development and accomplishes Abhyudaya and Nirshreyas, how meaningful is the statement of famous English novelist Ruskin, the practice of humanity is as beautiful and pleasant as the morning sun, dreams are the chemistry of creativity to the reality of human life. The importance of man is not in achievement, but in what he does spiritual practice to achieve.


              जीवन को एक साधना समझिये


Study while others are sleeping : work while others are loafing : prepare while others are playing ; and dream while others are wishing . " - William Arther Ward





 शिवजी पार्वतीजी से कहते हैं- " नर तन सम नहिं कबनिउँ देही " क्या मनुष्य वास्तव में इस सृष्टि की सर्वोत्तम कृति है ? मनुष्य ही एक ऐसा जीवधारी है , जो अपना सिर ऊँचा एवं सीधा रखता है उससे आशा की जाती है कि वह कोई ऐसा काम न करे , जिससे उसे सिर नीचा करना पड़े केवल वही एक ऐसा प्राणी है , जो खुलकर अपने हाथों का प्रयोग कर सकता है हम किसी भी जीव को देख लें वह हाथों से पैरों का काम लेता है , परन्तु मानव पैरों से चलता फिरता है और हाथों द्वारा जीवनोपयोगी अनेकानेक कार्य करता है विश्व की समस्त कलाकृतियों मनुष्य के हाथों की ही देन हैं , ये कलाकृतियों सृजनहार की सृजनशीलता को सार्थक करती हैं यदि मनुष्य न होता , तो विश्व की जिन कृतियों को हम चमत्कार अथवा आश्चर्य की संज्ञा प्रदान करते हैं , वे क्योंकर सम्भव होतीं ? मानव के कार्यकलापों को देखकर यह सोचना स्वाभाविक है कि यह छोटा सा जीव इतना सामर्थ्यवान क्योंकर बन सका है , जो विश्व के प्रत्येक पदार्थ को अपने लिए उपयोगी बना लेता है , यहाँ तक कि बड़े बड़े हिंसक जीवों को भी वश में कर लेता है . हाथी सदृश विशालकाय जीव को मात्र एक इंच के अंकुश द्वारा अपने वश में करने वाले महावत की सामर्थ्य को देखकर आश्चर्यचकित हो जाना सर्वथा स्वाभाविक है क्षुब्ध अथाह महासागर की उत्ताल लहरों को चीरते हुए जलपोत मानव की संघर्ष वृत्ति के परिचायक हैं . मानव की सामर्थ्य के रहस्य का पता लगाने के लिए मानव ने खोज आरम्भ की . यह महत्वपूर्ण तथ्य उसके हाथ लगा कि प्रजनन और आत्मरक्षा नाम मूल वृत्तियाँ प्रकृति ने ईश्वर ने जीवमात्र को प्रदान की हैं जीवों की समस्त ऊर्जा इन दो वृत्तियों की सन्तुष्टि में व्यय हो जाती है , परन्तु इन दोनों वृत्तियों की सन्तुष्टि के उपरान्त भी मानव के पास कुछ ऊर्जा शेष रह जाती है , उसकी यह ऊर्जा , उसकी सृजन - वृत्ति अथवा कारयित्री प्रतिभा के रूप

में प्रकट होती है , प्रतिभा नामक इस वृत्ति की सन्तुष्टि द्वारा मानव नवीन अन्वेषण करता है और कला - कृतियाँ प्रस्तुत करता है . वर्षा , आतप एवं प्रकृति के प्रकोप के थपेड़े खाकर वे कलाकृतियाँ नष्ट होती रहती हैं , तब वे भविष्य के शोधकर्ताओं को शोध एवं ग्रन्थ प्रणयन की सामग्री प्रदान करती हैं प्राचीन सभ्यताओं के जो अवरोध पृथ्वी के गर्भ में एवं समुद्र में छिपे पड़े रहते मनुष्य अपने प्रयत्नों द्वारा उन्हें उजागर करता है और अपनी प्राचीन परम्पराओं को उजागर करता रहता है . चट्टानों और अवशेषों के रूप में प्रकृति के क्रोड़ में जीवन के विकास की कहानी अंकित है . इसको पढ़ने की सामर्थ्य जिन्हें प्राप्त है , वे कह सकते हैं कि विकास की शत साहस वर्षों की प्रक्रिया के उपरान्त मानव शरीर का निर्माण सम्भव हुआ है , उसका एक - एक अंग विकास की किन - किन सीढ़ियों में होकर गुजरा है , इसका पूरा लेखा प्रकृति के पृष्ठों पर अंकित है . भारतीय ज्ञान विज्ञान के मनीषियों ने इस प्रक्रिया को लक्ष्य करके कहा है कि चौरासी लाख योनियों को भोगने के बाद मनुष्य योनि प्राप्त होती है . इस श्रेष्ठ योनि को प्राप्त करने वाला मनुष्य ही इस प्रकार की परिकल्पना कर सकता है कि जीवन की मूलभूत एकता प्रकृति का एक तथ्य है विश्वबन्धुत्व की बात करना इस तथ्य का व्यावहारिक रूप है , जो यह जानता है कि जीवमात्र का स्रोत एक ही परम तत्व है , वह यह भी मानता है कि जीवमात्र एक ही पिता की सन्तान के समान बन्धुत्व की रज्जु द्वारा परस्पर आबद्ध हैं . चेतना विकास या आत्म विकास के अध्येताओं ने यह निष्कर्ष प्रस्तुत किया है कि केवल मनुष्य ही एक ऐसा जीव है जो एक स्वतंत्र व्यक्तित्व लेकर जन्म लेता है , मनुष्य जीवन का वरदान यह है कि वह स्वतंत्र इच्छा प्राप्त व्यक्ति है और वह इच्छानुसार कार्य कर सकता है स्वतंत्र व्यक्तित्व का अभिशाप यह है कि वह अपने को सर्वथा भिन्न प्राणी पाता है आत्म - सदृश वह अन्य किसी को नहीं पाता है उसका पृथक् व्यक्तित्व उसके व्यक्तित्व के कौंटों के समान होता है पग - पग पर संघर्ष करना टकराव झेलना उसकी नियति बन जाती है . व्यक्ति अपनी स्वतंत्र इच्छानुसार आचरण भी करता रहे और संघर्ष बचता रहे यह मानव से भी जीवन का परमपुरुषार्थ है यह तब सम्भव होता है , जब मनुष्य अपने व्यक्तित्व की विशिष्टताओं रूपी काँटों ( Angularities ) को समाप्त करके उन्हें चिकना ( Rounded ) बना लेता है , जो ऐसा करने में समर्थ होता है समाज उसे साधक मानव के रूप में देखकर अवतारी पुरुष के रूप में पूजता है अवतारी कहा जाने वाला व्यक्ति सबको अपने समान समझता है और अपने को उनके समान समझकर मिलने का प्रयत्न करता है मिस के अमौलियस रुक्का ने कहा था कि हमें प्रत्येक के साथ समान धरातल ( Level ) पर मिलने का प्रयत्न करना चाहिए 14 वर्ष की दीर्घकालीन तपस्या के उपरान्त जब श्रीराम जी अयोध्या वापस आते हैं , तब वे उक्त प्रकार के व्यवहार का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं , यथा अमित रूप प्रकटे तेहिकाला । जथा जोग मिले सबहिं कृपाला ॥ बौद्धिकता मानव की विशिष्टता है , वह मनुष्य को विश्लेषण की प्रवृत्ति प्रदान करती है , जिसके द्वारा वह दृश्यमान जगत् के वैज्ञानिक अध्ययन में प्रवृत्त होता है साथ ही वह व्यक्ति को एक से अनेक करने का स्वभाव प्रदान कर देती है और तदनुसार उसको आत्मकेन्द्रित एवं स्वार्थी बना देती है . स्वार्थाध व्यक्ति अपने आचरण द्वारा कभी कभी पशुओं को पीछे छोड़ देता है . इस कोटि के मनुष्यों को देखकर मैडम डी . सीविज ने लिखा है कि The more I see of men , the more I admire dogs . अर्थात् " मनुष्य के बारे में जितना अधिक मैं देखती हूँ , उतना ही अधिक में कुत्तों को प्यार करती हूँ . " बात भी सही है नमक खाने वाला कुत्ता चोर से स्वामी की सम्पत्ति की रक्षा करता है , नमक खाने वाला चौकीदार या नौकर चोरी करने वाले चोर का सहायक बन जाता है . अब तो वह अपहरण , बलात्कार , हत्या जैसे कुकृत्यों में भी सहायक की भूमिका का निर्वाह करते हुए देखा जाता है . मानव जीवन यथार्थ की भूमि पर स्थित है , उसके स्वप्न उसके आदर्श होते हैं , जिनसे वह प्रगति विकास एवं ऊर्ध्वगामी होने की प्रेरणा ग्रहण करता है . स्वप्नों को साकार करके वह विकास के मार्ग पर अग्रसर होता है तथा अभ्युदय एवं निरश्रेयस् की सिद्धि करता है ख्यातिनामा अंग्रेजी उपन्यासकार रस्किन का कथन कितना सार्थक है मानवता की साधना प्रातः कालीन सूर्य के समान सुन्दर और सुखद है स्वप्न मानव जीवन के यथार्थ को रचनाधर्मिता की रसायन द्वारा पर्यवेष्टित कर देते हैं मानव की महत्ता उपलब्धि में नहीं है , बल्कि इसमें है कि वह क्या उपलब्ध करने के लिए साधना करता है .





 Keep the ego away "If you have ego and you get angry, then you don't need any other enemy in life. Arjuna, the heroic Gandiv, was the main motive in attainment. After the war, arrogance emerged in Arjuna's mind about the victory, he started thinking that I am truly invincible. Ji said to Arjuna - I have some urgent work here for some time. Come to these gopikas to reach Dwarkapuri, it is a matter of good luck, a community of Bhils in the forests of Madhya Pradesh surrounded Arjun and looted the gopis. Arjun mute spectator By aiming at the above incident, this proverb became popular that Manuj could not do turtle, God, the mighty Bheelan looted Gopika, he was Arjuna, he was the arrow. the splendor of it ends in a moment It is. God or Mahaprakriti has not suffered arrogance. Ravana in the past and Hitler in modern times are vivid examples of the fact that - "Garab Gupalahin Bhavat Nahi." Kavindra Rabindra has written that elephants, horses, etc. This type of food does not require external help, it instinctively keeps a person intoxicated and leads him to collapse and destruction. Ego is an essential part of consciousness. This gives rise to the feeling of "I am", but as soon as it reaches this limit

express. You start thinking that I have the ability to get the best marks in the examination, so I should work hard continuously, on the other hand, if you consider this your great achievement, then you start behaving disobediently towards your peers, it means That you are haunted by the ego of this small achievement and you have closed the doors of great achievement. This situation can happen in whatever context of success. The level at which this mentality comes under the influence of ego, at the same level the doors of progress are closed. This makes a person rude and jealous and hesitant to acquire additional knowledge, because his ego prevents him from treating anyone with respect, we believe our readers will never allow their mentality to get such distortion and ego Won't let you raise your head. Always try to know by introspection whether the sprout of ego is growing in any corner of my mind. The ego is like a snake that is wrapped under a flower and waits for an opportunity to bite the enjoyer of the flower . The egoistic person stays away from importance, because he does not want his ego to feel small in any condition. On the contrary, a humble person, who is free from smallness, always moves towards importance, there is a lot of space in his heart for importance. Smallness always pushes him towards importance and a person free from smallness keeps imbibing importance uninterruptedly. The process of absorption of importance in its smallness goes on continuously. You write the following statement of a thinking scholar named Ruskin and keep it in your study room in a proper place and try to inculcate it in the practice of assimilating it regularly "It is completely settled in my mind that the root of almost all big mistakes is I have egoism. All other impulses sometimes do good too, but whenever an egoist puts his hand in some work, he goes wrong."

After crossing the limit of "I am", in the same way I am everything in the person's bite - the intoxication of "Hum Chuni Digra Naist" goes home. The person who attains this stage gradually becomes intolerant, oppressor according to his ability, etc. Those who are intelligent, they do not allow the ego to dominate them and go on moving on the path of their fixed interests. Otherwise, what happens to the egoists, it is well known? Those who are acquainted with the omnipresent and omnipresent power of the ego, they try to control it and make positive use of its immense power. Only a person capable of doing this attains the rank of a great personality. The great scientist Newton used to say this after great achievements, I have not even entered the ocean of knowledge, I am still collecting shellfish snails on the beach. In reality . Ego first frustrates a person's conscience. The behavior of a person attacked by the ego begins to be contrary to the society, because he knows only 'I' - " you or not me " does not have any meaning and does not exist for him . The example of Ravana is sufficient to explain the conduct of such a person . He was a great scholar of many scriptures. Efforts have been made to explain the intensity of his knowledge by the symbol of his ten heads, but the ego had molded his conduct like a complete fool. With this the head of a donkey has been made on its top place. An arrogant person without achieving any achievements or becomes arrogant after a small achievement is called Vaisakha Nandan. You get first place in your class. You can react to it in two ways.

                      अहंकार को दूर रखिए "

 अगर आप में अहंकार है और आपको क्रोध आता है , तो जिंदगी में आपको किसी और शत्रु की आवश्यकता नहीं . ** - चाणक्य सर्वविदित कि पाण्डवों ने योगेश्वर श्रीकृष्ण के कुशल नेतृत्व में महाभारत में विजयश्री का वरण किया था . विजय प्राप्ति में मुख्य हेतु रहे थे वीरवर गाण्डीवधारी अर्जुन . युद्धोपरांत अर्जुन के मन में विजय प्राप्ति को लेकर अहंकार का उदय हुआ वह सोचने लगे कि मैं वास्तव में अजेय हूँ मैंने अनेकानेक दुधर्ष एवं ख्यातिनामा वीरों पर विजय प्राप्त की है . अर्जुन के मनोभावों को देखकर श्रीकृष्ण जी ने अर्जुन से कहा- मुझे यहाँ कुछ समय तक कुछ आवश्यक कार्य हैं . इन गोपिकाओं को तुम द्वारकापुरी पहुँचा आओ होनहार की बात , मध्य प्रदेश के वनों में भीलों के एक समुदाय ने अर्जुन को घेर लिया और गोपियों को लूट लिया . अर्जुन मूक दर्शक बने रहे उक्त घटना को लक्ष्य करके यह लोकोक्ति प्रचलित हो गई ने मनुज कछू ना कर सके , प्रभु इच्छा बलवान भीलन लूटी गोपिका , वे ही अर्जुन , वे ही बाण भारतीय साहित्य में ऐसे अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं , जो यह बताते हैं कि अहंकार व्यक्ति का वैभव पल भर में ही समाप्त कर देत ा है . भगवान को अथवा महाप्रकृति को अहंकार सहा नहीं है . अतीत में रावण और आधुनिक काल में हिटलर इस तथ्य के ज्वलन्त उदाहरण हैं कि- " गरब गुपालहिं भावत नाहीं । " कवीन्द्र रबीन्द्र ने लिखा है कि हाथी , घोड़े आदि को दाना - घास आदि की आवश्यकता होती है , परन्तु अहंकार को पनपने के लिए किसी प्रकार के भोजन की बाह्य सहायता की आवश्यकता नहीं होती है , वह सहजभाव से व्यक्ति को मदहोश बनाता रहता है और उसे पतन एवं विनाश की ओर ले जाता है . अहंकार चेतना का आवश्यक अंग है . यह " मैं हूँ " के भाव को जन्म देता है , परन्तु जैसे ही वह इस सीमा

व्यक्त करते हैं . आप सोचने लगते हैं कि मैं परीक्षा में श्रेष्ठ अंक लाने की क्षमता रखता हूँ अतः मुझे निरन्तर कठिन परिश्रम करना चाहिए , दूसरी ओर यदि आप इसे अपनी बहुत बड़ी उपलब्धि मानते हैं , तो अपने साथियों के प्रति अवज्ञा का व्यवहार करने लगते हैं , इसका अर्थ है कि आप इस छोटी - सी उपलब्धि के अहंकार द्वारा आक्रांत हैं तथा बड़ी उपलब्धि के द्वार आपने बन्द कर दिए हैं . यह स्थिति चाहे जिस सफलता के सन्दर्भ में हो सकती है . जिस स्तर पर यह मानसिकता अहंकार के प्रभाव में आ जाती है , उसी स्तर पर प्रगति के द्वार बन्द हो जाते हैं ज्ञान द्वारा उत्पन्न अहंकार से विकृत मानसिक दशा को विद्या ज्ञान का अहंकार ( Intellectual conceits ) कहा जाता है . यह व्यक्ति को अशिष्ट और ईर्ष्यालु बना देता है और अतिरिक्त ज्ञानार्जन के प्रति संकोचशील बना देते हैं , क्योंकि उसका अहंकार किसी के प्रति गुरुवत् व्यवहार करने से रोक देता है , हमें विश्वास है हमारे पाठक अपनी मानसिकता को ऐसी विकृति प्राप्त कदापि नहीं होने देंगे और अहंकार को अपना सिर नहीं उठाने देंगे . सदैव आत्म निरीक्षण द्वारा यह जानने का प्रयत्न करते रहें कि मेरे मन मस्तिष्क के किसी कोने में अहंकार का अंकुर पनप तो नहीं रहा है . अहंकार उस सर्प के समान है , जो फूल के नीचे लिपटा रहता है और फूल के भोक्ता को काट लेने के अवसर की ताक में रहता है . अहंकारी व्यक्ति महत्व दूर रहता है , क्योंकि वह अपने अहंकार को किसी भी दशा में लघुत्व का अनुभव नहीं करने देना चाहता है . इसके विपरीत विनम्र यानी लघुत्व से मुक्त व्यक्ति सदा महत्व की ओर अग्रसर होता रहता है उसके हृदय में महत्व के लिए काफी स्थान रहता है . लघुत्व उसको सदैव महत्व के प्रति धकेलता रहता है और लघुत्व से मुक्त व्यक्ति अबाध रूप से महत्व को आत्मसात् करता रहता है . उसके लघुत्व में महत्व के समाहित हो जाने की प्रक्रिया अनवरत् रूप से चालू रहती है . आप रस्किन नामक विचारक विद्वान के निम्नलिखित कथन को लिखकर अपने अध्ययन कक्ष में उचित स्थान पर रख लीजिए और नित्य उसको आत्मसात् करने का व्यवहार में ढालने का प्रयत्न करें " यह बात मेरे दिमाग में पूरी तरह से बैठ गई है कि प्रायः समस्त बड़ी गलतियों की जड़ में अहंकार होता है . अन्य समस्त मनोवेग कभी - कभी अच्छाई भी कर देते हैं , परन्तु अहंकारी जब भी किसी काम में हाथ लगा देता है , तो वह गलत हो जाता है . "

को पार करके " मैं ही हूँ " की सीमा में प्रवेश करने लगता है , वैसे ही उसका दंश व्यक्ति में मैं ही सर्वस्व हूँ- " हम चुनी दीगरा नैस्त " का नशा घर कर जाता है . इस अवस्था को प्राप्त व्यक्ति क्रमशः असहिष्णु बनने लगता है , सामर्थ्यानुसार उत्पीड़क बनने लगता है आदि , जो समझदार होते है , वे अहंकार को अपने ऊपर हावी नहीं होने देते हैं और अपने निर्धारित हित जीवन पथ पर बढ़ते चले जाते हैं . अन्यथा अहंकारियों की क्या दुर्गति होती है , यह सर्वविदित है ? जो व्यक्ति अहंकार की सर्वव्यापकता एवं सर्वग्रासिनी शक्ति से परिचित होते हैं , वे प्रयत्नपूर्वक उसको अपने वश में कर लेते हैं और उसकी विपुल शक्ति का सकारात्मक प्रयोग करते हैं . ऐसा करने में समर्थ व्यक्ति ही महान विभूति के पद को प्राप्त होते हैं . महान् वैज्ञानिक न्यूटन महान् उपलब्धियों के उपरान्त यही कह दिया करता था मैंने अभी ज्ञान के सागर में प्रवेश भी नहीं किया है मैं तो अभी समुद्र तट के सीपी घोंघे ही एकत्र कर रहा हूँ . अस्तु . अहंकार सर्वप्रथम व्यक्ति का विवेक कुण्ठित कर देता है . अहंकार द्वारा आक्रांत व्यक्ति का आचरण समाज के विपरीत होने लगता है , क्योंकि वह केवल ' मैं ' को जानता है- " तू या मैं नहीं " उसके लिए न कोई अर्थ रखते हैं और न अस्तित्व रखते हैं . ऐसे व्यक्ति का आचरण स्पष्ट करने के लिए रावण का उदाहरण पर्याप्त है . वह अनेक शास्त्रों का प्रकाण्ड पण्डित था उसके ज्ञान की प्रचण्डता को उसके दस सिरों के प्रतीक द्वारा स्पष्ट करने का प्रयत्न किया गया है , परन्तु अहंकार ने उसके आचरण को निपट मूर्ख की भाँति ढाल दिया था . इसी से उसके शीर्ष स्थान पर गधे का सिर बना दिया गया है . अहंकारी व्यक्ति बिना उपलब्धियाँ प्राप्त किए अथवा स्वल्प उपलब्धि के बाद अहंकार से फूल उठे तो उसको वैशाख नंदन कह दिया जाता है . आप अपनी कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करते हैं . इसकी प्रतिक्रिया आप दो प्रकार से




























 Keep the ego away "If you have ego and you get angry, then you don't need any other enemy in life. Arjuna, the heroic Gandiv, was the main motive in attainment. After the war, arrogance emerged in Arjuna's mind about the victory, he started thinking that I am truly invincible. Ji said to Arjuna - I have some urgent work here for some time. Come to these gopikas to reach Dwarkapuri, it is a matter of good luck, a community of Bhils in the forests of Madhya Pradesh surrounded Arjun and looted the gopis. Arjun mute spectator By aiming at the above incident, this proverb became popular that Manuj could not do turtle, God, the mighty Bheelan looted Gopika, he was Arjuna, he was the arrow. the splendor of it ends in a moment It is. God or Mahaprakriti has not suffered arrogance. Ravana in the past and Hitler in modern times are vivid examples of the fact that - "Garab Gupalahin Bhavat Nahi." Kavindra Rabindra has written that elephants, horses, etc. This type of food does not require external help, it instinctively keeps a person intoxicated and leads him to collapse and destruction. Ego is an essential part of consciousness. This gives rise to the feeling of "I am", but as soon as it reaches this limit

express. You start thinking that I have the ability to get the best marks in the examination, so I should work hard continuously, on the other hand, if you consider this your great achievement, then you start behaving disobediently towards your peers, it means That you are haunted by the ego of this small achievement and you have closed the doors of great achievement. This situation can happen in whatever context of success. The level at which this mentality comes under the influence of ego, at the same level the doors of progress are closed. This makes a person rude and jealous and hesitant to acquire additional knowledge, because his ego prevents him from treating anyone with respect, we believe our readers will never allow their mentality to get such distortion and ego Won't let you raise your head. Always try to know by introspection whether the sprout of ego is growing in any corner of my mind. The ego is like a snake that is wrapped under a flower and waits for an opportunity to bite the enjoyer of the flower . The egoistic person stays away from importance, because he does not want his ego to feel small in any condition. On the contrary, a humble person, who is free from smallness, always moves towards importance, there is a lot of space in his heart for importance. Smallness always pushes him towards importance and a person free from smallness keeps imbibing importance uninterruptedly. The process of absorption of importance in its smallness goes on continuously. You write the following statement of a thinking scholar named Ruskin and keep it in your study room in a proper place and try to inculcate it in the practice of assimilating it regularly "It is completely settled in my mind that the root of almost all big mistakes is I have egoism. All other impulses sometimes do good too, but whenever an egoist puts his hand in some work, he goes wrong."

After crossing the limit of "I am", in the same way I am everything in the person's bite - the intoxication of "Hum Chuni Digra Naist" goes home. The person who attains this stage gradually becomes intolerant, oppressor according to his ability, etc. Those who are intelligent, they do not allow the ego to dominate them and go on moving on the path of their fixed interests. Otherwise, what happens to the egoists, it is well known? Those who are acquainted with the omnipresent and omnipresent power of the ego, they try to control it and make positive use of its immense power. Only a person capable of doing this attains the rank of a great personality. The great scientist Newton used to say this after great achievements, I have not even entered the ocean of knowledge, I am still collecting shellfish snails on the beach. In reality . Ego first frustrates a person's conscience. The behavior of a person attacked by the ego begins to be contrary to the society, because he knows only 'I' - " you or not me " does not have any meaning and does not exist for him . The example of Ravana is sufficient to explain the conduct of such a person . He was a great scholar of many scriptures. Efforts have been made to explain the intensity of his knowledge by the symbol of his ten heads, but the ego had molded his conduct like a complete fool. With this the head of a donkey has been made on its top place. An arrogant person without achieving any achievements or becomes arrogant after a small achievement is called Vaisakha Nandan. You get first place in your class. You can react to it in two ways.

                      अहंकार को दूर रखिए "

 अगर आप में अहंकार है और आपको क्रोध आता है , तो जिंदगी में आपको किसी और शत्रु की आवश्यकता नहीं . ** - चाणक्य सर्वविदित कि पाण्डवों ने योगेश्वर श्रीकृष्ण के कुशल नेतृत्व में महाभारत में विजयश्री का वरण किया था . विजय प्राप्ति में मुख्य हेतु रहे थे वीरवर गाण्डीवधारी अर्जुन . युद्धोपरांत अर्जुन के मन में विजय प्राप्ति को लेकर अहंकार का उदय हुआ वह सोचने लगे कि मैं वास्तव में अजेय हूँ मैंने अनेकानेक दुधर्ष एवं ख्यातिनामा वीरों पर विजय प्राप्त की है . अर्जुन के मनोभावों को देखकर श्रीकृष्ण जी ने अर्जुन से कहा- मुझे यहाँ कुछ समय तक कुछ आवश्यक कार्य हैं . इन गोपिकाओं को तुम द्वारकापुरी पहुँचा आओ होनहार की बात , मध्य प्रदेश के वनों में भीलों के एक समुदाय ने अर्जुन को घेर लिया और गोपियों को लूट लिया . अर्जुन मूक दर्शक बने रहे उक्त घटना को लक्ष्य करके यह लोकोक्ति प्रचलित हो गई ने मनुज कछू ना कर सके , प्रभु इच्छा बलवान भीलन लूटी गोपिका , वे ही अर्जुन , वे ही बाण भारतीय साहित्य में ऐसे अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं , जो यह बताते हैं कि अहंकार व्यक्ति का वैभव पल भर में ही समाप्त कर देत ा है . भगवान को अथवा महाप्रकृति को अहंकार सहा नहीं है . अतीत में रावण और आधुनिक काल में हिटलर इस तथ्य के ज्वलन्त उदाहरण हैं कि- " गरब गुपालहिं भावत नाहीं । " कवीन्द्र रबीन्द्र ने लिखा है कि हाथी , घोड़े आदि को दाना - घास आदि की आवश्यकता होती है , परन्तु अहंकार को पनपने के लिए किसी प्रकार के भोजन की बाह्य सहायता की आवश्यकता नहीं होती है , वह सहजभाव से व्यक्ति को मदहोश बनाता रहता है और उसे पतन एवं विनाश की ओर ले जाता है . अहंकार चेतना का आवश्यक अंग है . यह " मैं हूँ " के भाव को जन्म देता है , परन्तु जैसे ही वह इस सीमा

व्यक्त करते हैं . आप सोचने लगते हैं कि मैं परीक्षा में श्रेष्ठ अंक लाने की क्षमता रखता हूँ अतः मुझे निरन्तर कठिन परिश्रम करना चाहिए , दूसरी ओर यदि आप इसे अपनी बहुत बड़ी उपलब्धि मानते हैं , तो अपने साथियों के प्रति अवज्ञा का व्यवहार करने लगते हैं , इसका अर्थ है कि आप इस छोटी - सी उपलब्धि के अहंकार द्वारा आक्रांत हैं तथा बड़ी उपलब्धि के द्वार आपने बन्द कर दिए हैं . यह स्थिति चाहे जिस सफलता के सन्दर्भ में हो सकती है . जिस स्तर पर यह मानसिकता अहंकार के प्रभाव में आ जाती है , उसी स्तर पर प्रगति के द्वार बन्द हो जाते हैं ज्ञान द्वारा उत्पन्न अहंकार से विकृत मानसिक दशा को विद्या ज्ञान का अहंकार ( Intellectual conceits ) कहा जाता है . यह व्यक्ति को अशिष्ट और ईर्ष्यालु बना देता है और अतिरिक्त ज्ञानार्जन के प्रति संकोचशील बना देते हैं , क्योंकि उसका अहंकार किसी के प्रति गुरुवत् व्यवहार करने से रोक देता है , हमें विश्वास है हमारे पाठक अपनी मानसिकता को ऐसी विकृति प्राप्त कदापि नहीं होने देंगे और अहंकार को अपना सिर नहीं उठाने देंगे . सदैव आत्म निरीक्षण द्वारा यह जानने का प्रयत्न करते रहें कि मेरे मन मस्तिष्क के किसी कोने में अहंकार का अंकुर पनप तो नहीं रहा है . अहंकार उस सर्प के समान है , जो फूल के नीचे लिपटा रहता है और फूल के भोक्ता को काट लेने के अवसर की ताक में रहता है . अहंकारी व्यक्ति महत्व दूर रहता है , क्योंकि वह अपने अहंकार को किसी भी दशा में लघुत्व का अनुभव नहीं करने देना चाहता है . इसके विपरीत विनम्र यानी लघुत्व से मुक्त व्यक्ति सदा महत्व की ओर अग्रसर होता रहता है उसके हृदय में महत्व के लिए काफी स्थान रहता है . लघुत्व उसको सदैव महत्व के प्रति धकेलता रहता है और लघुत्व से मुक्त व्यक्ति अबाध रूप से महत्व को आत्मसात् करता रहता है . उसके लघुत्व में महत्व के समाहित हो जाने की प्रक्रिया अनवरत् रूप से चालू रहती है . आप रस्किन नामक विचारक विद्वान के निम्नलिखित कथन को लिखकर अपने अध्ययन कक्ष में उचित स्थान पर रख लीजिए और नित्य उसको आत्मसात् करने का व्यवहार में ढालने का प्रयत्न करें " यह बात मेरे दिमाग में पूरी तरह से बैठ गई है कि प्रायः समस्त बड़ी गलतियों की जड़ में अहंकार होता है . अन्य समस्त मनोवेग कभी - कभी अच्छाई भी कर देते हैं , परन्तु अहंकारी जब भी किसी काम में हाथ लगा देता है , तो वह गलत हो जाता है . "

को पार करके " मैं ही हूँ " की सीमा में प्रवेश करने लगता है , वैसे ही उसका दंश व्यक्ति में मैं ही सर्वस्व हूँ- " हम चुनी दीगरा नैस्त " का नशा घर कर जाता है . इस अवस्था को प्राप्त व्यक्ति क्रमशः असहिष्णु बनने लगता है , सामर्थ्यानुसार उत्पीड़क बनने लगता है आदि , जो समझदार होते है , वे अहंकार को अपने ऊपर हावी नहीं होने देते हैं और अपने निर्धारित हित जीवन पथ पर बढ़ते चले जाते हैं . अन्यथा अहंकारियों की क्या दुर्गति होती है , यह सर्वविदित है ? जो व्यक्ति अहंकार की सर्वव्यापकता एवं सर्वग्रासिनी शक्ति से परिचित होते हैं , वे प्रयत्नपूर्वक उसको अपने वश में कर लेते हैं और उसकी विपुल शक्ति का सकारात्मक प्रयोग करते हैं . ऐसा करने में समर्थ व्यक्ति ही महान विभूति के पद को प्राप्त होते हैं . महान् वैज्ञानिक न्यूटन महान् उपलब्धियों के उपरान्त यही कह दिया करता था मैंने अभी ज्ञान के सागर में प्रवेश भी नहीं किया है मैं तो अभी समुद्र तट के सीपी घोंघे ही एकत्र कर रहा हूँ . अस्तु . अहंकार सर्वप्रथम व्यक्ति का विवेक कुण्ठित कर देता है . अहंकार द्वारा आक्रांत व्यक्ति का आचरण समाज के विपरीत होने लगता है , क्योंकि वह केवल ' मैं ' को जानता है- " तू या मैं नहीं " उसके लिए न कोई अर्थ रखते हैं और न अस्तित्व रखते हैं . ऐसे व्यक्ति का आचरण स्पष्ट करने के लिए रावण का उदाहरण पर्याप्त है . वह अनेक शास्त्रों का प्रकाण्ड पण्डित था उसके ज्ञान की प्रचण्डता को उसके दस सिरों के प्रतीक द्वारा स्पष्ट करने का प्रयत्न किया गया है , परन्तु अहंकार ने उसके आचरण को निपट मूर्ख की भाँति ढाल दिया था . इसी से उसके शीर्ष स्थान पर गधे का सिर बना दिया गया है . अहंकारी व्यक्ति बिना उपलब्धियाँ प्राप्त किए अथवा स्वल्प उपलब्धि के बाद अहंकार से फूल उठे तो उसको वैशाख नंदन कह दिया जाता है . आप अपनी कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करते हैं . इसकी प्रतिक्रिया आप दो प्रकार से




























20220410










































 श्रीराम नवमी विशेष

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 चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को प्रतिवर्ष नये विक्रम संवत्सर का प्रारंभ होता है और उसके आठ दिन बाद ही चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी को हिंदुओ का पर्व राम जन्मोत्सव जिसे रामनवमी के नाम से मनाया जाता है, इस वर्ष श्रीराम नवमी के पर्व 10 अप्रैल 2022 को मनाया जा रहा है। हमारे देश में राम और कृष्ण दो ऐसी महिमाशाली विभूतियाँ रही हैं जिनका अमिट प्रभाव समूचे भारत के जनमानस पर सदियों से अनवरत चला आ रहा है।


रामनवमी, भगवान राम की स्‍मृति को समर्पित है। राम सदाचार के प्रतीक हैं, और इन्हें "मर्यादा पुरुषोतम" कहा जाता है। रामनवमी को राम के जन्‍मदिन की स्‍मृति में मनाया जाता है। राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है, जो पृथ्वी पर अजेय रावण (मनुष्‍य रूप में असुर राजा) से युद्ध लड़ने के लिए आए। राम राज्‍य (राम का शासन) शांति व समृद्धि की अवधि का पर्यायवाची बन गया है। रामनवमी के दिन, श्रद्धालु बड़ी संख्‍या में उनके जन्‍मोत्‍सव को मनाने के लिए राम जी की मूर्तियों को पालने में झुलाते हैं। इस महान राजा की काव्‍य तुलसी रामायण में राम की कहानी का वर्णन है।


मर्यादा पुरुषोत्तम परिचय

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भगवान विष्णु ने राम रूप में असुरों का संहार करने के लिए पृथ्वी पर अवतार लिया और जीवन में मर्यादा का पालन करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। आज भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जन्मोत्सव तो धूमधाम से मनाया जाता है पर उनके आदर्शों को जीवन में नहीं उतारा जाता। अयोध्या के राजकुमार होते हुए भी भगवान राम अपने पिता के वचनों को पूरा करने के लिए संपूर्ण वैभव को त्याग 14 वर्ष के लिए वन चले गए और आज देखें तो वैभव की लालसा में ही पुत्र अपने माता-पिता का काल बन रहा है।


श्री राम का जन्म 

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पुरुषोतम भगवान राम का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में कौशल्या की कोख से हुआ था। यह दिन भारतीय जीवन में पुण्य पर्व माना जाता हैं। इस दिन सरयू नदी में स्नान करके लोग पुण्य लाभ कमाते हैं।

अगस्त्यसंहिता के अनुसार

मंगल भवन अमंगल हारी, 

दॄवहुसु दशरथ अजिर बिहारि॥

अगस्त्यसंहिता के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी, के दिन पुनर्वसु नक्षत्र, कर्कलग्‍न में जब सूर्य अन्यान्य पाँच ग्रहों की शुभ दृष्टि के साथ मेष राशि पर विराजमान थे, तभी साक्षात्‌ भगवान् श्रीराम का माता कौशल्या के गर्भ से जन्म हुआ।


धार्मिक दृष्टि से चैत्र शुक्ल नवमी का विशेष महत्व है। त्रेता युग में चैत्र शुक्ल नवमी के दिन रघुकुल शिरोमणि महाराज दशरथ एवं महारानी कौशल्या के यहाँ अखिल ब्रह्माण्ड नायक अखिलेश ने पुत्र के रूप में जन्म लिया था। राम का जन्म दिन के बारह बजे हुआ था, जैसे ही सौंदर्य निकेतन, शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण कि‌ए हु‌ए चतुर्भुजधारी श्रीराम प्रकट हु‌ए तो माता कौशल्या उन्हें देखकर विस्मित हो ग‌ईं। राम के सौंदर्य व तेज को देखकर उनके नेत्र तृप्त नहीं हो रहे थे। देवलोक भी अवध के सामने श्रीराम के जन्मोत्सव को देखकर फीका लग रहा था। जन्मोत्सव में देवता, ऋषि, किन्नर, चारण सभी शामिल होकर आनंद उठा रहे थे। हम प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल नवमी को राम जन्मोत्सव मनाते हैं और राममय होकर कीर्तन, भजन, कथा आदि में रम जाते हैं। रामनवमी के दिन ही गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना का श्रीगणेश किया था।


    रामनवमी की पूजा विधि

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हिन्दू धर्म में रामनवमी के दिन पूजा की जाती है। रामनवमी की पूजा के लिए आवश्‍यक सामग्री रोली, ऐपन, चावल, जल, फूल, एक घंटी और एक शंख हैं। पूजा के बाद परिवार की सबसे छोटी महिला सदस्‍य परिवार के सभी सदस्‍यों को टीका लगाती है। रामनवमी की पूजा में पहले देवताओं पर जल, रोली और ऐपन चढ़ाया जाता है, इसके बाद मूर्तियों पर मुट्ठी भरके चावल चढ़ाये जाते हैं। पूजा के बाद आ‍रती की जाती है और आरती के बाद गंगाजल अथवा सादा जल एकत्रित हुए सभी जनों पर छिड़का जाता है।


श्री रामनवमी व्रत विधि

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रामनवमी के दिन जो व्यक्ति पूरे दिन उपवास रखकर भगवान श्रीराम की पूजा करता है, तथा अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार दान-पुण्य करता है, वह अनेक जन्मों के पापों को भस्म करने में समर्थ होता है।


रामनवमी का व्रत महिलाओं के द्वारा किया जाता है। इस दिन व्रत करने वाली महिला को प्रात: सुबह उठना चाहिए। घर की साफ-सफाई कर घर में गंगाजल छिड़क कर शुद्ध कर लेना चाहिए। इसके पश्चात स्नान करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद एक लकड़ी के चौकोर टुकड़े पर सतिया बनाकर एक जल से भरा गिलास रखना चाहिए और अपनी अंगुली से चाँदी का छल्ला निकाल कर रखना चाहिए। इसे प्रतीक रुप से गणेशजी माना जाता है। व्रत कथा सुनते समय हाथ में गेहूँ-बाजरा आदि के दाने लेकर कहानी सुनने का भी महत्व कहा गया है। रामनवमी के व्रत के दिन मंदिर में अथवा मकान पर ध्वजा, पताका, तोरण और बंदनवार आदि से सजाने का विशेष विधि-विधान है। व्रत के दिन कलश स्थापना और राम जी के परिवार की पूजा करनी चाहिए, और भगवान श्री राम का दिनभर भजन, स्मरण, स्तोत्रपाठ, दान, पुण्य, हवन, पितृश्राद्व और उत्सव किया जाना चाहिए।


श्री रामनवमी व्रत कथा

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राम, सीता और लक्ष्मण वन में जा रहे थे। सीता जी और लक्ष्मण को थका हुआ देखकर राम जी ने थोड़ा रुककर आराम करने का विचार किया और एक बुढ़िया के घर गए। बुढिया सूत कात रही थी। बुढ़िया ने उनकी आवभगत की और बैठाया, स्नान-ध्यान करवाकर भोजन करवाया। राम जी ने कहा- बुढिया माई, "पहले मेरा हंस मोती चुगाओ, तो में भी करूं।" बुढ़िया बेचारी के पास मोती कहाँ से आवें, सूत कात कर ग़रीब गुज़ारा करती थी। अतिथि को ना कहना भी वह ठीक नहीं समझती थी। दुविधा में पड़ गई। अत: दिल को मज़बूत कर राजा के पास पहुँच गई। और अंजली मोती देने के लिये विनती करने लगी। राजा अचम्भे में पड़ा कि इसके पास खाने को दाने नहीं हैं और मोती उधार मांग रही है। इस स्थिति में बुढ़िया से मोती वापस प्राप्त होने का तो सवाल ही नहीं उठता। आखिर राजा ने अपने नौकरों से कहकर बुढ़िया को मोती दिला दिये। बुढ़िया मोती लेकर घर आई, हंस को मोती चुगाए और मेहमानों की आवभगत की। रात को आराम कर सवेरे राम जी, सीता जी और लक्ष्मण जी जाने लगे। राम जी ने जाते हुए उसके पानी रखने की जगह पर मोतियों का एक पेड़ लगा दिया। दिन बीतते गये और पेड़ बड़ा हुआ, पेड़ बढ़ने लगा, पर बुढ़िया को कु़छ पता नहीं चला। मोती के पेड़ से पास-पड़ौस के लोग चुग-चुगकर मोती ले जाने लगे। एक दिन जब बुढ़िया उसके नीचे बैठी सूत कात रही थी। तो उसकी गोद में एक मोती आकर गिरा। बुढ़िया को तब ज्ञात हुआ। उसने जल्दी से मोती बांधे और अपने कपड़े में बांधकर वह क़िले की ओर ले चली़। उसने मोती की पोटली राजा के सामने रख दी। इतने सारे मोती देख राजा अचम्भे में पड़ गया। उसके पूछने पर बुढ़िया ने राजा को सारी बात बता दी। राजा के मन में लालच आ गया। वह बुढ़िया से मोती का पेड़ मांगने लगा। बुढ़िया ने कहा कि आस-पास के सभी लोग ले जाते हैं। आप भी चाहे तो ले लें। मुझे क्या करना है। राजा ने तुरन्त पेड़ मंगवाया और अपने दरबार में लगवा दिया। पर रामजी की मर्जी, मोतियों की जगह कांटे हो गये और आते-आते लोगों के कपड़े उन कांटों से ख़राब होने लगे। एक दिन रानी की ऐड़ी में एक कांटा चुभ गया और पीड़ा करने लगा। राजा ने पेड़ उठवाकर बुढ़िया के घर वापस भिजवा दिया। पेड़ पर पहले की तरह से मोती लगने लगे। बुढ़िया आराम से रहती और ख़ूब मोती बांटती।


श्री राम नवमी व्रत का फल

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श्री रामनवमी का व्रत करने से व्यक्ति के ज्ञान में वृ्द्धि होती है। उसकी धैर्य शक्ति का विस्तार होता है। इसके अतिरिक्त उपवासक को विचार शक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, भक्ति और पवित्रता की भी वृ्द्धि होती है। इस व्रत के विषय में कहा जाता है, कि जब इस व्रत को निष्काम भाव से किया जाता है। और आजीवन किया जाता है, तो इस व्रत के फल सर्वाधिक प्राप्त होते हैं। रामनवमी और जन्माष्टमी तो उल्लासपूर्वक मनाते हैं पर उनके कर्म व संदेश को नहीं अपनाते। कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया गीता ज्ञान आज सिर्फ एक ग्रंथ बनकर रह गया है। तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में भगवान राम के जीवन का वर्णन करते हुए बताया है कि श्रीराम प्रातः अपने माता-पिता के चरण स्पर्श करते थे जबकि आज चरण स्पर्श तो दूर बच्चे माता-पिता की बात तक नहीं मानते।


  श्री रामावतार स्तुति

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भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी .

हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी ..


लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी .

भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी ..


कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता .

माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता ..


करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता .

सो मम हित लागी जन अनुरागी भयौ प्रकट श्रीकंता ..


ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै .

मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै ..


उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै .

कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ..


माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा .

कीजे सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा ..


सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा .

यह चरित जे गावहि हरिपद पावहि ते न परहिं भवकूपा ..


– दोहा –

विप्र धेनु सुर सन्त हित, लीं मनुज अवतार। निज इच्छा निर्मित कर, श्री माया गुण गोपाल।।


श्री राम स्तुति: 

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श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन

हरण भवभय दारुणं ।

नव कंज लोचन कंज मुख

कर कंज पद कंजारुणं ॥१॥


कन्दर्प अगणित अमित छवि

नव नील नीरद सुन्दरं ।

पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि

नोमि जनक सुतावरं ॥२॥


भजु दीनबन्धु दिनेश दानव

दैत्य वंश निकन्दनं ।

रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल

चन्द दशरथ नन्दनं ॥३॥


शिर मुकुट कुंडल तिलक

चारु उदारु अङ्ग विभूषणं ।

आजानु भुज शर चाप धर

संग्राम जित खरदूषणं ॥४॥


इति वदति तुलसीदास शंकर

शेष मुनि मन रंजनं ।

मम् हृदय कंज निवास कुरु

कामादि खलदल गंजनं ॥५॥


मन जाहि राच्यो मिलहि सो

वर सहज सुन्दर सांवरो ।

करुणा निधान सुजान शील

स्नेह जानत रावरो ॥६॥


एहि भांति गौरी असीस सुन सिय

सहित हिय हरषित अली।

तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि

मुदित मन मन्दिर चली ॥७॥




॥सोरठा॥

जानी गौरी अनुकूल सिय

हिय हरषु न जाइ कहि ।

मंजुल मंगल मूल वाम

अङ्ग फरकन लगे।


आप सभी धर्म प्रेमी सज्जनों को श्री राम जन्मोत्सव की हार्दिक मंगलकामनाये

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 श्रीराम नवमी विशेष

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 चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को प्रतिवर्ष नये विक्रम संवत्सर का प्रारंभ होता है और उसके आठ दिन बाद ही चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी को हिंदुओ का पर्व राम जन्मोत्सव जिसे रामनवमी के नाम से मनाया जाता है, इस वर्ष श्रीराम नवमी के पर्व 10 अप्रैल 2022 को मनाया जा रहा है। हमारे देश में राम और कृष्ण दो ऐसी महिमाशाली विभूतियाँ रही हैं जिनका अमिट प्रभाव समूचे भारत के जनमानस पर सदियों से अनवरत चला आ रहा है।


रामनवमी, भगवान राम की स्‍मृति को समर्पित है। राम सदाचार के प्रतीक हैं, और इन्हें "मर्यादा पुरुषोतम" कहा जाता है। रामनवमी को राम के जन्‍मदिन की स्‍मृति में मनाया जाता है। राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है, जो पृथ्वी पर अजेय रावण (मनुष्‍य रूप में असुर राजा) से युद्ध लड़ने के लिए आए। राम राज्‍य (राम का शासन) शांति व समृद्धि की अवधि का पर्यायवाची बन गया है। रामनवमी के दिन, श्रद्धालु बड़ी संख्‍या में उनके जन्‍मोत्‍सव को मनाने के लिए राम जी की मूर्तियों को पालने में झुलाते हैं। इस महान राजा की काव्‍य तुलसी रामायण में राम की कहानी का वर्णन है।


मर्यादा पुरुषोत्तम परिचय

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भगवान विष्णु ने राम रूप में असुरों का संहार करने के लिए पृथ्वी पर अवतार लिया और जीवन में मर्यादा का पालन करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। आज भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जन्मोत्सव तो धूमधाम से मनाया जाता है पर उनके आदर्शों को जीवन में नहीं उतारा जाता। अयोध्या के राजकुमार होते हुए भी भगवान राम अपने पिता के वचनों को पूरा करने के लिए संपूर्ण वैभव को त्याग 14 वर्ष के लिए वन चले गए और आज देखें तो वैभव की लालसा में ही पुत्र अपने माता-पिता का काल बन रहा है।


श्री राम का जन्म 

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पुरुषोतम भगवान राम का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में कौशल्या की कोख से हुआ था। यह दिन भारतीय जीवन में पुण्य पर्व माना जाता हैं। इस दिन सरयू नदी में स्नान करके लोग पुण्य लाभ कमाते हैं।

अगस्त्यसंहिता के अनुसार

मंगल भवन अमंगल हारी, 

दॄवहुसु दशरथ अजिर बिहारि॥

अगस्त्यसंहिता के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी, के दिन पुनर्वसु नक्षत्र, कर्कलग्‍न में जब सूर्य अन्यान्य पाँच ग्रहों की शुभ दृष्टि के साथ मेष राशि पर विराजमान थे, तभी साक्षात्‌ भगवान् श्रीराम का माता कौशल्या के गर्भ से जन्म हुआ।


धार्मिक दृष्टि से चैत्र शुक्ल नवमी का विशेष महत्व है। त्रेता युग में चैत्र शुक्ल नवमी के दिन रघुकुल शिरोमणि महाराज दशरथ एवं महारानी कौशल्या के यहाँ अखिल ब्रह्माण्ड नायक अखिलेश ने पुत्र के रूप में जन्म लिया था। राम का जन्म दिन के बारह बजे हुआ था, जैसे ही सौंदर्य निकेतन, शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण कि‌ए हु‌ए चतुर्भुजधारी श्रीराम प्रकट हु‌ए तो माता कौशल्या उन्हें देखकर विस्मित हो ग‌ईं। राम के सौंदर्य व तेज को देखकर उनके नेत्र तृप्त नहीं हो रहे थे। देवलोक भी अवध के सामने श्रीराम के जन्मोत्सव को देखकर फीका लग रहा था। जन्मोत्सव में देवता, ऋषि, किन्नर, चारण सभी शामिल होकर आनंद उठा रहे थे। हम प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल नवमी को राम जन्मोत्सव मनाते हैं और राममय होकर कीर्तन, भजन, कथा आदि में रम जाते हैं। रामनवमी के दिन ही गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना का श्रीगणेश किया था।


    रामनवमी की पूजा विधि

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हिन्दू धर्म में रामनवमी के दिन पूजा की जाती है। रामनवमी की पूजा के लिए आवश्‍यक सामग्री रोली, ऐपन, चावल, जल, फूल, एक घंटी और एक शंख हैं। पूजा के बाद परिवार की सबसे छोटी महिला सदस्‍य परिवार के सभी सदस्‍यों को टीका लगाती है। रामनवमी की पूजा में पहले देवताओं पर जल, रोली और ऐपन चढ़ाया जाता है, इसके बाद मूर्तियों पर मुट्ठी भरके चावल चढ़ाये जाते हैं। पूजा के बाद आ‍रती की जाती है और आरती के बाद गंगाजल अथवा सादा जल एकत्रित हुए सभी जनों पर छिड़का जाता है।


श्री रामनवमी व्रत विधि

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रामनवमी के दिन जो व्यक्ति पूरे दिन उपवास रखकर भगवान श्रीराम की पूजा करता है, तथा अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार दान-पुण्य करता है, वह अनेक जन्मों के पापों को भस्म करने में समर्थ होता है।


रामनवमी का व्रत महिलाओं के द्वारा किया जाता है। इस दिन व्रत करने वाली महिला को प्रात: सुबह उठना चाहिए। घर की साफ-सफाई कर घर में गंगाजल छिड़क कर शुद्ध कर लेना चाहिए। इसके पश्चात स्नान करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद एक लकड़ी के चौकोर टुकड़े पर सतिया बनाकर एक जल से भरा गिलास रखना चाहिए और अपनी अंगुली से चाँदी का छल्ला निकाल कर रखना चाहिए। इसे प्रतीक रुप से गणेशजी माना जाता है। व्रत कथा सुनते समय हाथ में गेहूँ-बाजरा आदि के दाने लेकर कहानी सुनने का भी महत्व कहा गया है। रामनवमी के व्रत के दिन मंदिर में अथवा मकान पर ध्वजा, पताका, तोरण और बंदनवार आदि से सजाने का विशेष विधि-विधान है। व्रत के दिन कलश स्थापना और राम जी के परिवार की पूजा करनी चाहिए, और भगवान श्री राम का दिनभर भजन, स्मरण, स्तोत्रपाठ, दान, पुण्य, हवन, पितृश्राद्व और उत्सव किया जाना चाहिए।


श्री रामनवमी व्रत कथा

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राम, सीता और लक्ष्मण वन में जा रहे थे। सीता जी और लक्ष्मण को थका हुआ देखकर राम जी ने थोड़ा रुककर आराम करने का विचार किया और एक बुढ़िया के घर गए। बुढिया सूत कात रही थी। बुढ़िया ने उनकी आवभगत की और बैठाया, स्नान-ध्यान करवाकर भोजन करवाया। राम जी ने कहा- बुढिया माई, "पहले मेरा हंस मोती चुगाओ, तो में भी करूं।" बुढ़िया बेचारी के पास मोती कहाँ से आवें, सूत कात कर ग़रीब गुज़ारा करती थी। अतिथि को ना कहना भी वह ठीक नहीं समझती थी। दुविधा में पड़ गई। अत: दिल को मज़बूत कर राजा के पास पहुँच गई। और अंजली मोती देने के लिये विनती करने लगी। राजा अचम्भे में पड़ा कि इसके पास खाने को दाने नहीं हैं और मोती उधार मांग रही है। इस स्थिति में बुढ़िया से मोती वापस प्राप्त होने का तो सवाल ही नहीं उठता। आखिर राजा ने अपने नौकरों से कहकर बुढ़िया को मोती दिला दिये। बुढ़िया मोती लेकर घर आई, हंस को मोती चुगाए और मेहमानों की आवभगत की। रात को आराम कर सवेरे राम जी, सीता जी और लक्ष्मण जी जाने लगे। राम जी ने जाते हुए उसके पानी रखने की जगह पर मोतियों का एक पेड़ लगा दिया। दिन बीतते गये और पेड़ बड़ा हुआ, पेड़ बढ़ने लगा, पर बुढ़िया को कु़छ पता नहीं चला। मोती के पेड़ से पास-पड़ौस के लोग चुग-चुगकर मोती ले जाने लगे। एक दिन जब बुढ़िया उसके नीचे बैठी सूत कात रही थी। तो उसकी गोद में एक मोती आकर गिरा। बुढ़िया को तब ज्ञात हुआ। उसने जल्दी से मोती बांधे और अपने कपड़े में बांधकर वह क़िले की ओर ले चली़। उसने मोती की पोटली राजा के सामने रख दी। इतने सारे मोती देख राजा अचम्भे में पड़ गया। उसके पूछने पर बुढ़िया ने राजा को सारी बात बता दी। राजा के मन में लालच आ गया। वह बुढ़िया से मोती का पेड़ मांगने लगा। बुढ़िया ने कहा कि आस-पास के सभी लोग ले जाते हैं। आप भी चाहे तो ले लें। मुझे क्या करना है। राजा ने तुरन्त पेड़ मंगवाया और अपने दरबार में लगवा दिया। पर रामजी की मर्जी, मोतियों की जगह कांटे हो गये और आते-आते लोगों के कपड़े उन कांटों से ख़राब होने लगे। एक दिन रानी की ऐड़ी में एक कांटा चुभ गया और पीड़ा करने लगा। राजा ने पेड़ उठवाकर बुढ़िया के घर वापस भिजवा दिया। पेड़ पर पहले की तरह से मोती लगने लगे। बुढ़िया आराम से रहती और ख़ूब मोती बांटती।


श्री राम नवमी व्रत का फल

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श्री रामनवमी का व्रत करने से व्यक्ति के ज्ञान में वृ्द्धि होती है। उसकी धैर्य शक्ति का विस्तार होता है। इसके अतिरिक्त उपवासक को विचार शक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, भक्ति और पवित्रता की भी वृ्द्धि होती है। इस व्रत के विषय में कहा जाता है, कि जब इस व्रत को निष्काम भाव से किया जाता है। और आजीवन किया जाता है, तो इस व्रत के फल सर्वाधिक प्राप्त होते हैं। रामनवमी और जन्माष्टमी तो उल्लासपूर्वक मनाते हैं पर उनके कर्म व संदेश को नहीं अपनाते। कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया गीता ज्ञान आज सिर्फ एक ग्रंथ बनकर रह गया है। तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में भगवान राम के जीवन का वर्णन करते हुए बताया है कि श्रीराम प्रातः अपने माता-पिता के चरण स्पर्श करते थे जबकि आज चरण स्पर्श तो दूर बच्चे माता-पिता की बात तक नहीं मानते।


  श्री रामावतार स्तुति

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भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी .

हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी ..


लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी .

भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी ..


कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता .

माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता ..


करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता .

सो मम हित लागी जन अनुरागी भयौ प्रकट श्रीकंता ..


ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै .

मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै ..


उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै .

कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ..


माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा .

कीजे सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा ..


सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा .

यह चरित जे गावहि हरिपद पावहि ते न परहिं भवकूपा ..


– दोहा –

विप्र धेनु सुर सन्त हित, लीं मनुज अवतार। निज इच्छा निर्मित कर, श्री माया गुण गोपाल।।


श्री राम स्तुति: 

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श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन

हरण भवभय दारुणं ।

नव कंज लोचन कंज मुख

कर कंज पद कंजारुणं ॥१॥


कन्दर्प अगणित अमित छवि

नव नील नीरद सुन्दरं ।

पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि

नोमि जनक सुतावरं ॥२॥


भजु दीनबन्धु दिनेश दानव

दैत्य वंश निकन्दनं ।

रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल

चन्द दशरथ नन्दनं ॥३॥


शिर मुकुट कुंडल तिलक

चारु उदारु अङ्ग विभूषणं ।

आजानु भुज शर चाप धर

संग्राम जित खरदूषणं ॥४॥


इति वदति तुलसीदास शंकर

शेष मुनि मन रंजनं ।

मम् हृदय कंज निवास कुरु

कामादि खलदल गंजनं ॥५॥


मन जाहि राच्यो मिलहि सो

वर सहज सुन्दर सांवरो ।

करुणा निधान सुजान शील

स्नेह जानत रावरो ॥६॥


एहि भांति गौरी असीस सुन सिय

सहित हिय हरषित अली।

तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि

मुदित मन मन्दिर चली ॥७॥




॥सोरठा॥

जानी गौरी अनुकूल सिय

हिय हरषु न जाइ कहि ।

मंजुल मंगल मूल वाम

अङ्ग फरकन लगे।


आप सभी धर्म प्रेमी सज्जनों को श्री राम जन्मोत्सव की हार्दिक मंगलकामनाये

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