किसी के आश्रित न रहें
किसी के आश्रित न रहें तुलसीदास ने लिखा है कि हा कीन्हें गाना | प्राकृत जन गुन सिर धुनि गिरा लागि पछिताना ॥ आपको अपने भीतर से ही विकास करना होता है , कोई आपको सिखा नहीं सकता . आपको सिखाने वाला कोई और नहीं सिर्फ आपकी आत्मा ही हैं - स्वामी विवेकानन्द एक बहुत पुरानी लोकोक्ति है- आस विरानी जे करें , ते होते ही मर जाएं । मन्तव्य स्पष्ट है किसी अन्य के भरोसे जीवित रहने का प्रयास करने वाला व्यक्ति मृतवत है , उसका जीवन निरर्थक है .. जो छोटी - छोटी बातों के लिए किसी का सहारा ताकता है , वह एक निष्क्रिय एवं अकर्मण्य व्यक्ति होता है महाभारत के अनुसार जो अकर्मण्य है , वह सम्मान से भ्रष्ट होकर घाव पर नमक छिड़कने के समान असहा दुःख भोगता है , इटली के तानाशाह मुसोलिनी अपनी कर्मठता के सहारे से उच्चतम पद को प्राप्त हुए थे वह कहा करते थे कि अकर्मण्यता ही मृत्यु है . जो व्यक्ति किसी के सहारे कोई कार्य करता है , वह सहारा एवं सहायता देने वाले व्यक्ति लिए एक तुच्छ एवं उपेक्षणीय व्यक्ति बन जाता है , वह स्वयं अपनी नजरों में भी हीन बन जाता है . ऐसे व्यक्ति के सन्दर्भ में स्वाभिमान एवं आत्मविश्वास सदृश उच्च गुणों की चर्चा करना सर्वथा अर्थहीन है . परावलम्बी व्यक्ति की मानसिकता दासता की हो जाती है , वह प्रत्येक अवसर पर अपने आश्रयदाता की ओर देखता है और बहुत हुआ तो एक चाटुकार का जीवन व्यतीत करता है . आश्रयदाता द्वारा हाथ खींच लेने पर आश्रित व्यक्ति सर्वथा असहाय अनुभव करने लगता है और उसकी दशा भँवर में पड़ी हुई नौका के समान हो जाती है आप यदि किसी सहपाठी से पूछ पूछकर अथवा उसकी नोटबुक से नकल करके अपना होमवर्क करते हैं , तो आपकी जो मानसिक स्थिति बन जाती है , उसका अनुभव भुक्तभोगी ही कर सकते हैं . कक्षा में आपकी स्थिति एक बहरे व्यक्ति के समान हो जाती है आप अपने विषय के ज्ञान से दूर हो जाते हैं और कक्षा में जो कुछ पढ़ाया जाता है , वह आपकी समझ में नहीं आता है और अन्ततः परीक्षा में ऐसा परीक्षार्थी सिवाय परीक्षा भवन की छत की ओर देखने के कर भी क्या सकता है ? नकल कराने वाला साथी भी सबके सामने कह देता है पूरे वर्ष मेरी नकल की , इसे फेल तो होना ही है . प्रत्येक मनुष्य को स्वतन्त्र इच्छा का वरदान जन्म के साथ प्राप्त होता है , जो ..लोग पराश्रित रहते हैं , वे मानों स्वतन्त्र इच्छा के वरदान से वंचित होकर आत्महत्या कर लेते हैं . स्वतन्त्र इच्छा के बाधित हो जाने पर प्रकृति प्रदत्त द्वितीय वरदान पुरुषार्थ भी व्यर्थ हो जाता है तथा इस स्थिति में व्यक्ति न प्रगति करते हैं और न विकास के पथ पर चल पाते हैं , जर्मनी के दार्शनिक कवि गेटे ने इस कोटि के व्यक्तियों को लक्ष्य करके लिखा है कि प्रकृति प्रगति और विकास के पथ पर निरन्तर चलती रहती है और अपने अभिशापों को अकर्मण्य व्यक्तियों के सिर मढ़ देती है . प्रगति में सहायक होता है और न चेतना- विकास के पथ को प्रशस्त करता है कहने की आवश्यकता नहीं है कि दरबारी कवियों की स्थिति प्रायः ऐसी ही रहती थी महात्मा कहने का तात्पर्य यह है कि ऐसा जीवन जिसमें सिर नीचा रखना पड़े न भौतिक जिस व्यक्ति के सहारे हम जीवनपर्यन्त चैन का जीवन व्यतीत करने का स्वप्न देखते हैं , जिसके भरोसे हमारा कोई युवा प्रतियोगी सफलता का वरण करने को आश्वस्त रहता है , वह व्यक्ति चाहे जब कह सकता है कि में तुमको यहाँ तक ले आया हूँ . अब आगे का रास्त अपने आप तर करो यदि कदाचित आपके जीवन में कभी ऐसा अवसर आ जाए , तब आप क्या करेंगे ? महाभारत में एक अवसर ऐसा आता है जब अर्जुन के बाणों की मार से विचलित दुर्योधन आचार्य द्रोण से कहता है गुरुदेव अर्जुन तो हमारा सर्वस्व ध्वंस कर रहा है . आप हमारी रक्षा कीजिए , तब गुरुदेव का मन विद्रोही स्वर में कह देता है सब कुछ में ही करता रहूँ , तुम भी कुछ करो ? यद्यपि सभी के एक से होते नहीं पुरुषार्थ हैं । तुम भी उसी कुल में हुए जिसमें हुए ये पार्थ हैं । ( मैथिलीशरण गुप्त ) दुष्परिणाम यह हुआ था कि द्रोपदी के चीर दुर्योधन का अन्न खाते रहने का हरण के अवसर पर सर्वधर्मज्ञाता भीष्म पितामह के मुँह पर ताला लग गया था आचार्य द्रोण को अपने प्रिय शिष्य अर्जुन के विरुद्ध युद्ध करना पड़ा था तथा उनके पुत्र को वीर अभिमन्यु के वध में मुख्य भूमिका का निर्वाह करना पड़ा था कारण वहीं वह जो व्यक्ति आज हमको आश्रय प्रदान कर दुर्योधन के आश्रय में रहे थे याद रखिए , रहा है , कल वह इसके प्रतिकार स्वरूप हमसे न मालूम क्या आशा करने लगे ? जीव विकास के क्रम में मनुष्य एकमात्र ऐसा प्राणी या जीव है , जिसका सिर एकदम सीधा पृथ्वी के साथ लम्ब ( Perpendicular ) बनाता है , जब मनुष्य का सिर नीचे की ओर होता है , तब वह मनुष्य के आसन से च्युत हो जाता है , अपराध , पाप अथवा लज्जा के बोध के समय मनुष्य का सिर नीचा होता है , जो व्यक्ति अन्य किसी के आश्रय से जीवनयापन करता है , उसको समाज अच्छी दृष्टि से नहीं देखता है यह कहकर यह तो चमचागीरी करके अथवा तलुवे चाटकर जीवित रहता है . इस श्रेणी के मनुष्य अपने मन में कभी - कभी ग्लानि का अनुभव करके गलते लगते हैं . कारण यह है कि आश्रयदाता की खुशामद करते हुए इनके जीवन में ऐसे क्षण आते हैं , जब इनके भीतर मनुष्य जग जाता है और ये परावलम्बन को मनुष्यता के विरोधी रूप में दिखाई देने भी यदि किसी हैं और दूसरे सफल होने का देखते हैं , तो आपको समझ लेना चाहिए कि आप परीक्षा भवन में निरीक्षक द्वारा किसी दिन पकड़े जाएंगे और आपका भविष्य संकटापन्न हो के सहारे की नकल करके सुख स्वप्न लगते हैं , आप अध्ययन करते जीवन में हमारी कामना है कि कवि रहीम का यह जाएगा आपका समस्त श्रम व्यर्थ हो जाएगा . ऐसे समाचार भी सुनने एवं पढ़ने को दोहा आपको सदैव प्रेरणा प्रदान करता रहे मिलते हैं कि अपराध - बोध के कारण उन्होंने समाज के सामने सिर झुकाने की स्थिति से बचने के लिए आत्महत्या कर ली है . कर बहियाँ बल आफ्नो छाँड़ि बिरानी आस । जाके आँगन है नदी , सो कत भरत प्यास | सतत् प्रवाहमान आपका पुरुषार्थ ही अजस स्रोत वाहक है . आप जो कुछ करें अपने भरोसे अपने लिए बिना , आप जो कुछ पढ़ेंगे . मन लगाकर , पुरुषार्थ के बल पर करें किसी का आश्रय परीक्षा के समय नकल करते हुए पकड़े जाने समझकर आत्मसात् करते हुए पढ़ेंगे तथा की आशंका से सर्वथा मुक्त रहेंगे और पूरे मनोयोग के साथ आप प्रश्न - पत्र हल कर सकेंगे .
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